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लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
जयपुर । देश की आजादी के 78 साल बाद भी विमुक्त, घुमंतू एवं अर्ध-घुमंतू जातियों (डीएनटी) को उनके अधिकार नहीं मिल पाने के विरोध में अब निर्णायक आंदोलन का शंखनाद हो चुका है। राष्ट्रीय पशुपालक संघ एवं डीएनटी संघर्ष समिति ने ‘आजादी का महासंग्राम’ नामक एक बड़े आंदोलन की घोषणा की है, जिसकी जानकारी देते हुए समिति के नेता शेरसिंह आज़ाद और राष्ट्रीय पशुपालक संघ के अध्यक्ष लालसिंह रायका ने बताया कि 7 नवंबर 2025 को राजस्थान के पाली जिले में दिल्ली-मुंबई हाइवे स्थित बालराई गांव में लाखों लोग जुटेंगे। यह आंदोलन कोई राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति है, जिसका उद्देश्य सरकार तक अपनी मांगें पहुंचाना है। पदाधिकारियों ने जोर देकर कहा कि डीएनटी समाज आज भी पहचान, स्थायी निवास और सरकारी योजनाओं से वंचित है। “देश आजाद हो गया, लेकिन हम डीएनटी समाज को आज भी पहचान नहीं मिली है। हम आज भी अपनी रोटी, कपड़े और मकान के लिए दर-दर भटक रहे हैं,” उन्होंने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा।
ये हैं आंदोलन की प्रमुख मांगें (चार्टर ऑफ डिमांड्स)
प्रेस वार्ता में, समिति ने 11 सूत्रीय मांगों का एक चार्टर ऑफ डिमांड्स भी जारी किया। इसमें Dnt सूची में शामिल जातियों के उपनामों को सूचीबद्ध करें कुछ जाती जो डीएनटी में शामिल है और वह इस DNT की सूची से बच गई है उनको भी डीएनटी सूची में शामिल किया जाए
शिक्षा का अधिकार: डीएनटी बच्चों को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक मुफ्त शिक्षा मिले और 10% आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।
आरक्षण: सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10% आरक्षण लागू किया जाए।
रोजगार और स्थायी निवास: हुनरमंद कारीगरों को रोजगार दिया जाए और सभी डीएनटी परिवारों को स्थायी निवास के लिए भूखंड आवंटित किए जाएं।
जनगणना: जातिगत जनगणना में इन समुदायों को विशेष पहचान दी जाए।
अत्याचार निवारण: घुमंतू जातियों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए कानून बने।
इस आंदोलन में शेरसिंह आज़ाद के साथ लालजी राइका और रतननाथ कालबेलिया भी प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। यह आंदोलन डीएनटी समाज के दशकों के संघर्ष और पीड़ा का प्रतीक है, और अब वे अपनी ‘असली आजादी’ के लिए एक साथ खड़े हैं। 7 नवंबर का दिन इन समुदायों के इतिहास में एक नया अध्याय लिख सकता है।,
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