- Advertisement -
लोक टुडे न्युज़ नेटवर्क
✒️ राजेश चतुर्वेदी ✒️
एक समय था जब ‘सिद्धांत‘ एक अमृत था। जो इसे पीता था, वह माँ-बाप की शिक्षा और समाज के संस्कारों से उपजे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता था।
समय बदला। वंशवाद की बेल फैली, और नवयुवकों ने स्वयं की चमक पैदा करने के बजाय, अपने परिवार के उन सिद्धांतवादी पुरखों की लोकप्रियता का ‘तेल‘ अपने दीपक में जलाना शुरू कर दिया।
आज फिर समय ने करवट ली है। अब परिवारवाद से हटकर, नवयुवक नेता बनने की फिराक में अपने वरिष्ठ नेताओं के नाम का तेल अपने दीपक में जला रहे हैं। स्वयं में ना कोई रोशनी है और ना ही कोई सिद्धांत।
दूसरे के नाम का तेल जलाकर कुकुरमुत्तों की तरह पैदा होते ये लोग, अपने सिद्धांत से समझौता कर जैसे दल बदलते हैं, लगता है राष्ट्र के उच्च पद पर बैठकर देश की अस्मिता से समझौता करने में भी नहीं हिचकेंगे, क्योंकि उनमें संस्कार और वह इच्छाशक्ति नहीं है जो देशभक्ति की लौ को जाग्रत करे।
उच्च पद पर बैठे नेता भी अपने अनुकरणकर्ताओं को सिद्धांत का पाठ नहीं पढ़ाते, क्योंकि लगता है उनमें भी अब वह सिद्धांतवादी विचारधारा मौजूद नहीं है। दोनों एक-दूसरे के पूरक होकर
‘स्वार्थ के झूले में झूलते हुए’
राजनीति में मस्त हैं।
- Advertisement -

















































