लखनऊ में दलित बुजुर्ग के साथ अमानवीय व्यवहार, मंदिर परिसर में पेशाब चटाने का आरोप

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लोक टुडे न्युज़ नेटवर्क
 — पूर्व CM अशोक गहलोत ने की कड़ी निंदा
लखनऊउत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक बेहद शर्मनाक और अमानवीय घटना सामने आई है। जानकारी के अनुसार, एक दलित बुजुर्ग व्यक्ति ने बीमारी के चलते मंदिर परिसर में पेशाब कर दिया, जिसके बाद वहां मौजूद कुछ लोगों ने उसके साथ घृणित व्यवहार किया। आरोप है कि उन लोगों ने बुजुर्ग से पेशाब चटवाया और पूरा मंदिर परिसर धुलवाया।
यह घटना सामने आने के बाद सामाजिक और राजनीतिक गलियारों में आक्रोश व्याप्त है।
⚖️ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का तीखा बयान
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा —
 “जब से देश में भाजपा की सरकार आई है, दलितों के खिलाफ अत्याचारों में वृद्धि हुई है। यह अब जगजाहिर हो गया है कि BJP और RSS के मन में दलितों के प्रति कितनी घृणा हैलखनऊ में RSS कार्यकर्ता द्वारा दलित बुजुर्ग को पेशाब चटाने की घटना शर्मनाक और निंदनीय है।”
गहलोत ने कहा कि भाजपा और RSS दलितों से केवल वोट लेने तक सीमित हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण देने में असफल रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा
 “RSS हिन्दू समाज और सनातन धर्म का रक्षक बनने का दावा करता है, लेकिन इस तरह की घटनाएं उन्हें भक्षक के रूप में दिखाती हैं। यदि ये वास्तव में हिन्दू धर्म की भावना का पालन करते हैं, तो उन्हें जातिगत भेदभाव और छुआछूत खत्म करने को शीर्ष एजेंडा बनाना चाहिए।”
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
गहलोत ने कहा कि भाजपा शासन में चाहे दलित चीफ जस्टिस हों या आम नागरिक, कोई भी सुरक्षित नहीं है।
उन्होंने दावा किया कि दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में भाजपा शासित राज्य अग्रणी हैं।
इस घटना को लेकर सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी कड़ी निंदा की है और प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है।
जांच की मांग और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
स्थानीय प्रशासन ने बताया कि मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, संबंधित आरोपियों की पहचान की जा रही है और जाति-आधारित हिंसा (SC/ST अत्याचार अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया जाएगा।
मानवता पर कलंक
यह घटना न केवल सामाजिक असमानता की याद दिलाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आज भी देश के कई हिस्सों में छुआछूत और जातिगत भेदभाव की मानसिकता जीवित है।
मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक समाज और शासन दोनों स्तरों पर समानता और सह-अस्तित्व की भावना नहीं जागेगी, तब तक ऐसी घटनाओं पर पूर्ण विराम नहीं लग पाएगा।
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