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लोक टुडे न्युज़ नेटवर्क
नीरज मेहरा
भैरों सिंह शेखावत: के साथ की पुरानी यादें
वर्ष 2002 — राजस्थान की राजनीति ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए यादगार साल। क्योंकि इस साल में राजस्थान की माटी का लाल पहली बार स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत के रूप में देश का उपराष्ट्रपति बना था। वर्ष 2002 में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था। नाम घोषित होते ही पूरा राजस्थान गर्व और उल्लास से भर उठा।
जयपुर स्थित उनके निवास पर बधाई देने वालों का तांता लग गया। सुबह से रात तक लोग आते, माला पहनाते, और इस उम्मीद के साथ लौटते कि “अब देश को एक सच्चा जननेता उपराष्ट्रपति के रूप में मिलेगा।”
जयपुर में उमड़ा जनसैलाब
मैं उस समय मैं सिटी चैनल में कार्यरत था। मेरे साथ कैमरा मैन और कुछ साथी रिपोर्टर्स लगातार दो-तीन दिनों तक भैरों सिंह जी के बंगले पर कवरेज में लगे रहे।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का वह दौर अलग था — चैनलों की संख्या कम थी, लेकिन लगन और पत्रकारिता का जज़्बा बहुत गहरा था।
मेरे (नीरज मेहरा) के साथ उस समय ईटीवी के मनु शर्मा जी, और उनके कैमरा मैन लगातार सुबह से शाम तक डटे रहते थे। अन्य अख़बारों, भास्कर टीवी और कुछ नेशनल टीवी के फोटोग्राफर और रिपोर्टर्स कवरेज करते थे।
उन दो -तीन दिनों में हमने देखा कि राजस्थान का हर कोना भैरों सिंह जी के प्रति सम्मान से भरा हुआ था। लोग दूर-दूर से बधाई देने आते — राजनेता, मंत्री, प्रधान, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यापारी, और आम जनता।
निवास के गार्डन में एक छोटा-सा पोडियम बना दिया गया था जहाँ भैरों सिंह शेखावत खुद खड़े होकर आने वाले हर व्यक्ति से मुलाकात करते, माला पहनते और उनके साथ फोटो खिंचवाते।
हर व्यक्ति चाहता था कि “भैरों सिंह जी के साथ एक यादगार तस्वीर मिल जाए।”
हर व्यक्ति को नाम से पुकारते थे
जिस बात ने सबसे अधिक प्रभावित किया, वह थी उनकी याददाश्त और विनम्रता।
सैकड़ों लोगों के बीच भी वे अधिकांश आगंतुकों को नाम से पुकारते।
किसी को भूलना या उपेक्षा करना उनके स्वभाव में था ही नहीं।
भीड़ के बावजूद वे स्टाफ के लोगों से कहते — … अरे इन पत्रकारों का भी ध्यान रखा करो चाय-नाश्ता करवा दो। ये लोग सुबह से मेरे साथ हैं।” हम सभी पत्रकारों के लिए तो यह ड्यूटी थी और उनके प्रति सम्मान भी था कि हमें यह कवरेज करने का अवसर मिल रहा है लेकिन हमें यह लगता है कि यार यह राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं ,अब उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, आयु भी खूब है लेकिन उनकी आज भी लोगों का ख्याल रखने की आदत है, यही है उन्हें दूसरे नेताओं से अलग साबित करती है।
“भाया, म्हार सूं नाराज होके?”
हम तीन-चार लोग लगातार तीन दिन से कवरेज कर रहे थे। (अन्य लोग भी आते थे लेकिन वह आकर चले जाते थे)
भीड़ और काम के बीच कभी यह ध्यान ही नहीं रहा कि हम भी भैरों सिंह जी के साथ फोटो खिंचवाएं।
शायद वह दौर भी अलग था — न सोशल मीडिया था, न सेल्फी का चलन।
हजारों लोगों के फोटो सेशन के बीच भी हमने ऐसा नहीं सोचा।
लेकिन भैरों सिंह जी ने जरूर सोचा।
दिल्ली रवाना होने से एक दिन पहले जब वे थककर अंदर गए तो अचानक हमें बुलवाया।
हंसते हुए बोले —
“भाया, म्हार सूं नाराज होके? थाने म्हारे उपराष्ट्रपति बणबा सूं खुशी कोनी के?”
हम सब हड़बड़ा गए। बोले — “नहीं साहब, ऐसी कोई बात नहीं!”
तो वे मुस्कराए — बोले “मैं देख रहयो, ऊं छूं यार सारी दुनिया म्हारे सागे फोटो खींचवा बा आरी छ, पण थै पत्रकार तो कोई फोटो नहीं खिंचाई।” हम भी हंस दिए बोले साहब हम सारी दुनिया की फोटो खींचने का काम कर रहे थे हम। ( जबकि आज का दौर होता तो लोग फोटो के लिए एक दूसरे पर चढ़ जाते) बाद में हमने विचार किया कि यार यह इतने व्यस्त होने के बावजूद इनको यह ख्याल है कि हमने उनके साथ फोटो नहीं खिंचवाई, यह वाक्य में बहुत बड़ी बात थी कि इतने बड़े नेता होने के बावजूद उन्हें हर आदमी का ख्याल होता था। उनकी यही अदा उन्हें दूसरे नेताओं से अलग साबित करती है।
फिर उन्होंने खुद आगे बढ़कर कहा — “आओ, सबके साथ फोटो लो।”
फिर क्या था — उन्होंने हम सब मीडिया कर्मियों के साथ अलग-अलग फोटो खिंचवाए, यहां तक कि वीडियो भी बनवाया।
उस पल ने साबित कर दिया कि नेतृत्व केवल पद से नहीं, बल्कि व्यवहार और संवेदनशीलता से पहचाना जाता है।
नेता वही जो सबका ख्याल रखे
आज जब राजनीति में “नेतृत्व” का अर्थ केवल सत्ता और प्रचार तक सीमित होता जा रहा है,
भैरों सिंह शेखावत जैसे नेता यह याद दिलाते हैं कि विनम्रता, संवेदनशीलता और आत्मीयता ही सच्चे जननेता की पहचान है।
जहाँ आज कुछ लोग चुनाव जीतते ही अपने साथ काम करने वालों को भूल जाते हैं,
वहीं भैरों सिंह जी जैसे नेता पद की ऊँचाइयों पर पहुंचकर भी जमीन से जुड़े रहते थे। उन्होंने हमें सिखाया कि “पद बड़ा नहीं होता, दिल बड़ा होना चाहिए।”
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