अमायरा सुसाइड मामले में, ऑनलाइन गेमिंग का टास्क भी हो सकता ‘सुसाइड’ की वजह?

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लोक टुडे न्युज़ नेटवर्क
नीरज मेहरा

 

जयपुर के नीरजा मोदी स्कूल केस में नया एंगल:  ऑनलाइन गेमिंग  टास्क पर भी हो जांच
बच्चों के आपसी विवाद पर टीचर का समय पर ध्यान नहीं देना भी बड़ी वजह है?
जयपुर । जयपुर के नामचीन नीरजा मोदी स्कूल में कुछ दिन पहले हुई छात्रा अमायरा की बालकनी से कूदकर मौत के मामले ने अब नया मोड़ ले लिया है। घटना का CCTV वीडियो सामने आने के बाद कई सवाल उठने लगे हैं।
वीडियो में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि बच्ची बालकनी में अकेली है — उसके पीछे कोई दबाव या धक्का देने जैसी स्थिति नहीं दिखती। लेकिन सवाल यह है कि आख़िर इतनी कम उम्र की छात्रा ने ऐसा कदम क्यों उठाया?

बच्ची के पहले वीडियो में जिस शख्स को लेकर शक किया जा रहा था, वहां दो बच्चे हैं जो अपनी मस्ती में अमायरा से आगे चल रहे हैं। बच्चे दूसरी मंजिल पर चढ़ते हैं, तब अमायरा रेलिंग पर चढ़ रही है और उसके बाद बच्चे जब  ऊपर की मंझिल पर चढ़ जाते हैं, तब अमासरा कूदती हुई नजर आती है। यह बच्चे दिखने में अमायरा से छोटे ही दिख रहे है।

शक के घेरे में “गेमिंग टास्क” वाला एंगल
पुलिस को इस मामले में अब एक नया पहलू भी खंगालना चाहिए — ऑनलाइन गेमिंग या डिजिटल टास्क चैलेंज का।
कई मामलों में यह सामने आ चुका है कि किशोर उम्र के बच्चे ऑनलाइन गेम्स या गुप्त “डेयर टास्क” से प्रभावित होकर ऐसे कदम उठा लेते हैं।
जयपुर के ही एक अन्य स्कूल में इससे पहले ऐसा ही एक मामला सामने आया था — जहाँ 11वीं कक्षा का एक क्लास टॉपर छात्र गेमिंग की लत में इतना फँस गया कि उसे लगातार “डेयर टास्क” दिए जा रहे थे।
पहले उसने स्कूल जाने से मना किया, फिर घर में खुद को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की।
अंततः जब डॉक्टरों की जांच हुई, तो पता चला कि बच्चा एक खतरनाक ऑनलाइन टास्क गेम का शिकार था — जिसमें उसे “अंतिम स्टेज” तक पहुँचने के लिए खुद को नुकसान पहुंचाने के निर्देश दिए जा रहे थे।
ऐसे गेमिंग प्लेटफॉर्म बच्चों के मोबाइल और लैपटॉप पर मेल्स और चैट्स के ज़रिए उन्हें मानसिक रूप से कंट्रोल कर लेते हैं। इस तरह के मामले में कई बच्चे अब तक सुसाइड भी कर चुके हैं।
पुलिस जांच में ये बिंदु अहम
नीरजा मोदी स्कूल केस में पुलिस को अब निम्न बिंदुओं पर गहराई से पड़ताल करनी चाहिए —
1. मोबाइल और लैपटॉप की फॉरेंसिक जांच:
क्या बच्ची किसी गेमिंग ऐप या टास्क बेस्ड प्लेटफॉर्म से जुड़ी थी?
क्या उसके ईमेल, चैट या सोशल मीडिया में कोई संदिग्ध “चैलेंज” या “टास्क मैसेज” मिले हैं?
2. साइबर एक्सपर्ट टीम की मदद:
किसी बाहरी हैंडल या गेम सर्वर से संपर्क के सबूत जुटाए जाएँ।
3. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण:
परिवार और स्कूल से बच्ची के व्यवहार में हाल में आए बदलावों की जानकारी ली जाए।
4. स्कूल प्रशासन और सहपाठियों से पूछताछ:
क्या बच्ची ने कभी गेम, सोशल मीडिया चैलेंज या मानसिक तनाव की बात की थी?
मानसिक तनाव और गेमिंग का खतरनाक रिश्ता
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि डिजिटल गेम्स बच्चों के मस्तिष्क पर लगातार उत्तेजना और लक्ष्य पूरा करने का दबाव डालते हैं।
धीरे-धीरे बच्चा वास्तविकता से कटने लगता है, और “वर्चुअल टास्क” को ही असली जीवन मानने लगता है।
जब वह किसी स्तर पर असफल होता है, तो “गिल्ट” और “स्ट्रेस” में आत्मघाती कदम उठा सकता है।

टीचर्स का बच्चों पर फोकस नहीं करना

कई बार टीचर्स बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करते हैं या और उन पर फोकस नहीं करते हैं। कई बार बच्चे आपस में लड़ते झगड़ते भी हैं और यह उनका तनाव बढ़ता जाता है। टीचर्स का समय पर ध्यान नहीं देना, अनसुना करना, इग्नोर करना और जब बच्चे बहुत ज्यादा परेशान होते हैं, क्योंकि बच्चे ना समझ होते हैं, इस उम्र में बच्चों को भले बुरे की समझ में नहीं होती और कई बार बच्चा डर कर भी ऐसा कदम उठा लेता है। पुलिस को जांच करना चाहिए, एक-एक बच्चे से बात की जाए, सभी टीचर से बात की जाए, पेरेंट्स से ही बात की जाए, जब सारे एंगल्स पर बात करेंगे तभी इसका खुलासा हो पाएगा। बच्चों की अनदेखी  करना या अनसुना करना भी बड़ा कारण होता है?

राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव की आशंका भी
यह भी चर्चा में है कि यह स्कूल एक पूर्व विधायक का है और अब उनके पुत्र द्वारा संचालित किया जाता है।
इसलिए मामले की जांच राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होनी चाहिए।
कई सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस केस की जांच स्वतंत्र एजेंसी या साइबर एक्सपर्ट टीम की निगरानी में होनी चाहिए, ताकि किसी तरह की लीपापोती न हो।
 पेरेंट्स और समाज के लिए चेतावनी
यह घटना समाज के लिए एक बड़ा संदेश है —
बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप पर कितना समय दे रहे हैं, क्या खेल रहे हैं, किनसे बात कर रहे हैं — इस पर नज़र रखना जरूरी है।
यदि बच्चा अचानक चुप रहने लगे, तनावग्रस्त दिखे या “टास्क” जैसी बातें करने लगे, तो तुरंत काउंसलिंग और डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।
स्कूलों को भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर रेगुलर मनोवैज्ञानिक सत्र आयोजित करने चाहिए।
मनोचिकित्सकों को और मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इन दिनों मे डेयरिंग गेमिंग के बड़े मामले आ रहे हैं मनो चिकित्सकों के पास तो 60 फ़ीसदी मामले बच्चों के गेमिंग के ही आ रहे हैं । जिनमें बच्चे गेमिंग के चलते चिड़चिड़े हो रहे हैं, मरने की बात करते हैं, मरने की बात करते हैं ,स्कूल नहीं जाते, मां-बाप से झगड़ा करते हैं और टास्क वाले गेम में तो बच्चे सीधे मरने की बात करते हैं।  रिटायर्ड डॉक्टर  चंद्र प्रकाश बैरवा कहना है कि उनके पास आजकल छोटे-छोटे बच्चों  के मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें बच्चों का व्यवहार काफी बदला नजर आता है।  पेरेंट्स(  मां-बाप ) को अपने बच्चों पर इस पर ध्यान देना चाहिए। अब तक बच्चों में सुसाइड करने के मामले भी कई हो चुके हैं।
निष्कर्ष
अमायरा का केस सिर्फ एक स्कूल या परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि एक सोशल अलार्म है
बच्चों के लिए ऑनलाइन दुनिया उतनी ही खतरनाक हो सकती है जितनी आकर्षक दिखती है।
अब ज़रूरत है कि पुलिस निष्पक्ष जांच करे, गेमिंग एंगल की गहराई से पड़ताल करे, और समाज बच्चों के डिजिटल जीवन को गंभीरता से लेना शुरू करे।
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