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लोक टुडे न्यूज़ नेटवर्क
राजेंद्र शर्मा जती
भरतपुर।ज़रा सोचिए… एक ऐसा आंगन जहाँ 3412 निराश्रित महिलाएँ रहती हैं — जिनके अपने कहीं पीछे छूट गए, जिनकी कलाईयों की चूड़ियाँ टूटीं तो सही, लेकिन उनके विश्वास की डोर आज भी उतनी ही मजबूत है। यही है अपना घर आश्रम, भरतपुर — जहाँ हर साल करवाचौथ का पर्व न सिर्फ़ उत्सव बनकर आता है, बल्कि उम्मीद और प्रेम की अमर मिसाल भी छोड़ जाता है।
आज इस आश्रम के स्प्रीचुअल पार्क में करवाचौथ का पर्व बड़ी ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। इन महिलाओं के लिए यह कोई साधारण दिन नहीं — यह वो दिन है जब वे अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, भले ही वे पति अब उनके साथ न हों, या शायद कभी लौटें भी न।
आश्रम की 123 से अधिक माताएँ और बहनें आज भी उसी अटूट विश्वास के साथ व्रत रखती हैं। किसी के पति सालों से लापता हैं, किसी को घरवालों ने ठुकरा दिया, तो कोई मानसिक या शारीरिक बीमारी के चलते समाज से कट गईं — मगर प्रेम और आस्था का दीपक अब भी उनके दिलों में जलता है।
प्रभुजी मंजू, जो पिछले 11 सालों से आश्रम में रह रही हैं, कहती हैं —
“हर साल मैं करवा चौथ का व्रत रखती हूँ। मुझे विश्वास है, एक दिन मेरे पति मुझे लेने ज़रूर आएंगे। कभी-कभी फोन पर बात हो जाती है, वही मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है।”
वहीं, पाँच साल से आश्रम में रह रही प्रिया भी करवाचौथ का व्रत रखती हैं। उनकी आँखों में नमी और चेहरे पर मुस्कान साथ-साथ दिखती है।
“व्रत रखकर अच्छा लगता है। मैं जानती हूँ, मेरे पति जहाँ भी होंगे, खुश होंगे। शायद मेरा व्रत उनके जीवन में कभी न कभी असर ज़रूर दिखाएगा।”
दोपहर तक सभी महिला प्रभुजियों ने मेहंदी रचाई, चुंदड़ी ओढ़ी और सोलह श्रृंगार किया। चौथ माता की कथा के बाद ढोलक की थाप पर सुहाग गीत गूंज उठे। जब ये महिलाएँ नाचतीं और हँसतीं, तो ऐसा लगता था मानो जीवन ने उन्हें फिर से जीना सिखा दिया हो।
रात को जब आसमान में चाँद निकला, तो हर महिला ने थाली उठाई — छलनी से चाँद देखा, और फिर मन ही मन अपने पति का चेहरा। चाँदनी के नीचे जब उन्होंने अर्घ्य दिया, तो मानो उनके विश्वास की चमक पूरे आकाश में बिखर गई।
आश्रम प्रशासन ने व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष प्रसादी का आयोजन किया। सजावट, संगीत और दीपों से सजा यह स्थल एक छोटा-सा भावनाओं का मंदिर बन गया था — जहाँ रिश्तों की डोर टूटी नहीं, बल्कि और भी मजबूत हो गई।
शायद यही अपना घर आश्रम की सबसे बड़ी कहानी है —
यहाँ छोड़े गए लोग नहीं रहते, बल्कि वे लोग रहते हैं जिन्होंने जीवन से हार नहीं मानी।
करवा चौथ के इस पवित्र दिन, जब हर महिला ने चाँद से अपनी मनोकामना मांगी, तब हवा में एक ही भाव तैर रहा था —
“परमात्मा के घर देर हो सकती है, अंधेर नहीं।”
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