लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
हेमराज तिवारी वरिष्ठ पत्रकार
“योगः कर्मसु कौशलम्” — भगवद्गीता
21 जून को दुनिया भर में मनाया गया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस अब मात्र एक अनुष्ठान नहीं रहा, यह एक वैश्विक चेतना का उत्सव बन चुका है। भारत की धरती पर जन्मे योग ने आज भौगोलिक सीमाएं लांघकर मनुष्य मात्र को जोड़ने का कार्य किया है — आत्मा से लेकर शरीर, व्यक्ति से लेकर समाज, और भारत से लेकर विश्व तक।
योग: परंपरा नहीं, प्रवृत्ति है
भारत में योग कोई नई खोज नहीं, बल्कि सदियों पुरानी साधना है। ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों ने योग को केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि आत्मिक विकास का मार्ग माना।
पतंजलि योगसूत्र की यह घोषणा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है:
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” — योग का अर्थ है मन की चंचल वृत्तियों पर नियंत्रण।
आज के तनावग्रस्त, गतिशील और परिणाममुखी युग में यह नियंत्रण ही सबसे बड़ी आवश्यकता बन चुका है।
राजस्थान की रेतीली भूमि पर योग की महाकथा
इस वर्ष योग दिवस पर राजस्थान सरकार ने जो भव्य आयोजन किया, उसने स्पष्ट कर दिया कि यह प्रदेश केवल इतिहास और विरासत में ही नहीं, आधुनिक सोच और स्वास्थ्य आंदोलन में भी अग्रणी है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में जैसलमेर की खुरड़ी की रेत पर हजारों लोगों ने सूर्य नमस्कार करते हुए जिस ऊर्जा और एकता का प्रदर्शन किया, वह भारत की सांस्कृतिक शक्ति का जीवंत उदाहरण था।
राजनीति से ऊपर, जनजीवन के लिए योग
कभी-कभी योग को राजनीतिक एजेंडे के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह उसकी मूल भावना के विरुद्ध है।
योग किसी पार्टी का, किसी धर्म का, या किसी वर्ग का नहीं है — यह मनुष्य मात्र के कल्याण का विज्ञान है।
योग में न “मैं” है, न “तू” — योग में केवल “हम” है।
स्वास्थ्य से आत्म-ज्ञान तक
आज जब दुनिया कोरोना, अवसाद, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और जीवनशैली रोगों से जूझ रही है, योग ने एक प्राकृतिक चिकित्सा और आंतरिक उपचार का मार्ग दिखाया है।
शरीर का लचीलापन, श्वास की सजगता और मन की स्थिरता — इन तीन स्तंभों पर योग का भवन खड़ा होता है।
“समत्वं योग उच्यते” — समता की स्थिति ही योग है।
संस्कृति की जड़ों से जुड़ना
21 जून केवल विश्व योग दिवस नहीं, यह दिन हमें अपने भीतर झाँकने और भारत की आत्मा से जुड़ने का अवसर देता है।
जो संस्कार, संस्कृति और साधना भारत ने मानवता को दी है, योग उनमें सर्वोच्च है।
आज जब पश्चिमी जगत ध्यान और योग की ओर आकर्षित हो रहा है, तो भारत को यह याद रखने की आवश्यकता है कि यह केवल शारीरिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि आंतरिक विकास का यज्ञ है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और राजस्थान सरकार की यह पहल सराहनीय है कि उन्होंने योग को प्रचार से अधिक व्यवहार, और परंपरा से अधिक प्रयोग का विषय बनाया है।
“सर्वे सन्तु निरामयाः” — सभी स्वस्थ रहें, यही योग का अंतिम संकल्प है।