राजमाता गायत्री देवी: भारत की राजनीति में सौंदर्य, साहस और सिद्धांत की प्रतीक

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लोक टुडे न्यूज नेटवर्क

हेमराज तिवाड़ी वरिष्ठ पत्रकार

जयपुर। जब भारतीय राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व अडिग और अजेय प्रतीत होता था, उसी दौर में एक व्यक्तित्व अपनी गरिमा, जनप्रियता और राजनीतिक सूझबूझ से न केवल चुनौती बना, बल्कि वैकल्पिक राजनीतिक चेतना का तेजस्वी स्तम्भ भी बना—वह थीं जयपुर की राजमाता गायत्री देवी।

एक राजकुमारी से जननेता तक का सफर

राजमाता गायत्री देवी केवल जयपुर की शाही विरासत की प्रतिनिधि नहीं थीं, वे भारत के लोकतंत्र में एक ऐसी स्त्री शक्ति का नाम थीं जिसने अपने समय की राजनीतिक परिस्थितियों को चुनौती दी। जब राजनीति पुरुषों के एकाधिकार की तरह समझी जाती थी, तब उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के माध्यम से कांग्रेस की नीति और सत्ता के विरुद्ध जनमत को स्वर दिया।

स्वतंत्र पार्टी की तेजस्वी रथयात्री

स्वतंत्र पार्टी, जो बड़े राजघरानों और उद्यमियों के समर्थन से कांग्रेस की समाजवादी आर्थिक नीतियों का विरोध करती थी, उसमें राजमाता जी राष्ट्रीय स्तर पर सबसे चर्चित और सम्मानित चेहरा बनीं। उनकी सभाओं में लाखों की भीड़ उमड़ती थी। लोग मीलों दूर से केवल उनका भाषण सुनने आते थे। यह उनकी व्यक्तिगत करिश्माई शक्ति थी, जो सौंदर्य और सौम्यता के साथ-साथ राजनीतिक परिपक्वता का विलक्षण संगम थी।

आपातकाल का साहसिक प्रतिरोध

1975 के आपातकाल के दौरान, जब सत्ता का चरित्र तानाशाही में बदलता गया, तब भी राजमाता ने झुकने से इनकार किया। उन्हें गिरफ्तार किया गया, उनकी संपत्ति पर छापे मारे गए और व्यक्तिगत अपमान का दौर चला, परंतु उन्होंने न तो आत्मसमर्पण किया, न चुप्पी साधी। वे उस दौर में लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रखर रक्षक बनकर उभरीं।

महिला शिक्षा और पर्यटन की पुरोधा

राजमाता केवल राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने महिला शिक्षा, राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने जयपुर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक पहचान दिलाई—एक ऐसा शहर जहाँ परंपरा और आधुनिकता का सामंजस्य दिखाई देता है।

उनकी विरासत आज भी प्रेरणा है

आज जब भारतीय राजनीति में मूल्यों का क्षरण दिखाई देता है, तब राजमाता गायत्री देवी जैसे नेताओं की स्मृति हमें यह सिखाती है कि राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि एक नैतिक और वैचारिक जिम्मेदारी है। उन्होंने यह दिखाया कि एक महिला, वह भी राजघराने से आने वाली, जनता के बीच जाकर उनकी आवाज़ बन सकती है।

राजमाता गायत्री देवी भारतीय लोकतंत्र की उस दुर्लभ धरोहर का नाम हैं जो शौर्य, शालीनता और सिद्धांत की त्रिवेणी में सजीव रूप से प्रवाहित होती हैं। जन्मदिवस के अवसर पर उन्हें शत-शत नमन करते हुए यह कहना समीचीन होगा कि वह भारत की राजनीति के दैदीप्यमान नक्षत्र थीं — एक ऐसी महिला नेता, जिनकी आभा आज भी पथप्रदर्शक है।

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