कोमल अरन अटारिया
निर्देशक,लेखक,साहित्यकार
पक्ष बनाम विपक्ष
किसी बात से सहमत होना पक्ष कहलाता है और उस बात से असहमति रखना विपक्ष किसी भी लोकतान्त्रिक देश की सबसे बड़ी ताकत एक परिपक्व एवं सशक्त विपक्ष होता है। आज के दौर में भारतीय विपक्ष की मानसिकता का विश्लेषण करना भी जरुरी है कि आखिर क्यों संसद में विपक्ष की हर बात भारत के विकास में एक अवरोध जैसी स्तिथि उत्पन्न करती रहती है और उससे देश विरोधी ताकतों को बल मिलता है। विपक्ष सरकार का विरोध करते-करते देश का विरोध कब करने लगता है शायद उसे ये समझने और समझाने की आवश्यकता है,अन्यथा लोकतंत्र की नींव खोखली होती जाएगी।
भारत के विपक्षी राजनैतिक दलों को आज के जनमानस के विचार क्यों नहीं समझ आ रहे हैं? अगर देश की जनता समाज के हित के लिए वर्तमान भारतीय सरकार के पक्ष में है, तो इसमें विरोधी दलों को आपत्ति क्यों? जब भारतीय सेना के उच्च अधिकारी हमेशा देश को हर बात का विवरण देते हैं, तो उस पर सवाल क्यों? हर बार विपक्ष सेना पर और सरकार के हर जायज़ क़दम पर प्रश्न चिन्ह क्यों लगाता है? इसी वजह से देश-विरोधी समाज भी बिना कुछ सोचे-समझे अपने नेताओं के साथ मिल कर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का काम करता है,2014 के बाद अगर भारत की जनता ने किसी राजनैतिक दल को निरंतर अपनी सरकार बनाने के लिए चुना है तो विपक्ष को उस पर मंथन करना चाहिए कि देश की जनता का रुख क्या है? मैंने कई बार राजनैतिक दलों के बड़े नेताओं को अपने बयान से पलटते देखा है और इस पर मेरे मन में ये ख्याल आता था कि आखिर ये अपने झूठ को कैसे सफाई से ये कह कर टाल देते हैं की ये तो सिर्फ एक राजनैतिक बयान था । कभी-कभी तो बहुत आगे बढ़ते हुए इतना कुछ कह जाते हैं कि उन्हें खुद ही पता नहीं होता कि वो अपना सर्वनश खुद ही कर बैठे हैं।
मेरी दृष्टि में आज के दौर के पक्ष और विपक्ष का जनता बहुत ही सोच समझ कर मूल्यांकन कर रही है और शायद यही कारण है की विश्व-पटल पर आज का भारत मजबूती से खड़ा हुआ है। मेरा अनुरोध उन सभी विपक्षी दलों से है की वो भी अपनी मानसिकता में बदलाव लाते हुए देश की उन्नति में अपना योगदान दें। मेरे पाठक ये कहेंगें की जो बात मैं कह रहा हूँ वो बात तो अधिकतर लोग जानते हैं तो फिर इस लेख को लिखने का मेरा वास्तविक उद्देश्य क्या है? उनके इस प्रश्न के उत्तर में मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि रामायण काल से लेकर इस काल तक पक्ष और विपक्ष ही इतिहास को सही और गलत बनाता आया है और आने वाले कल की आधारशिला भी इसी पक्ष और विपक्ष की विश्लेष्णात्मक सूझबूझ पर टिकी है| हमारा एक छोटा बात सा निर्णय हमारे जीवन के साथ-साथ इस देश की आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल भी कर सकता है और नष्ट भी।
यथा इच्छसि तथा कुरु” अर्थात जो तुम उचित समझो वही करो
गीता में श्री कृष्ण ने सीधे शब्दों में तो लोकतंत्र शब्द का उच्चारण नहीं किया था लेकिन अर्जुन से संवाद करते हुए उन्होंने कहा था कि “ यथा इच्छसि तथा कुरु” अर्थात जो तुम उचित समझो वही करो,तुम्हें स्वतंत्रता से निर्णय लेने और समझ के अनुसार कर्म करने का अधिकार है । श्री कृष्ण के इस कथन को हमें गहराई से समझने की आवश्यकता है लोकतंत्र हमें आज़ादी देता है, की हम स्वतंत्र होकर अपनी बात कह सकें लेकिन क्या वो निर्णय सही है। इस बात पर पक्ष और विपक्ष दोनों को सामजिक हितों को ध्यान में रखते हुए देश की जनता के कल्याण के लिए सही कर्म करने होंगें तभी एक सफल लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है ।
भारतीय जनता को भी इसमें योगदान देना होगा
भारतीय जनता को भी इसमें योगदान देना होगा क्योंकि लोकतंत्र जनता का शासन है। वही वास्तविक रूप से सत्ताधारी है ,परंतु उसे ये मालूम ही नहीं है कि वो जिसे अपना वोट दें रहे हैं ,चुनाव जीतने के बाद उनके द्वारा चुना गया वो व्यक्ति विशेष अधिकार के साथ अपनी मनमानी करने के योग्य बन जाता है य़ अब वो अपने राजनैतिक फायदे के लिए पक्ष और विपक्ष चुनेगा उसे जनता से कोई मतलब नहीं है, की उसके द्वारा दिए गए वक्तव्य पर जनता क्या सोचती है? वह तो बस अपने पद को बचाए रखने के लिए उसकी राजनैतिक पार्टी के आदेशों का पालन करता है. तभी वो अपने दल के उच्चतम नेताओं की छत्र छाया में रहकर अपना उद्धार कर सकता है। उसे लोकतंत्र, पक्ष और विपक्ष से क्या लेना देना,पर सोचने वाली बात ये है की इन जैसे नेताओं के स्वार्थ से एक आम इंसान अपने वोट की महत्वता को कैसे बचा सकता है।
आज के आम इंसान को खुद ही पक्ष और विपक्ष पर मंथन करना होगा उसे अपने एक वोट की कीमत खुद ही बढ़ानी होगी,एक वोट से सरकार गिर भी सकती है और बन भी सकती है। जब एक साधारण मनुष्य अपने घर को चलाता है तो वो अपने परिवार की सम्पन्नता के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों के बारे में सोचता है, तो उसी प्रकार उसे अब देश को भी एक परिवार के भांति समझ कर निर्णय लेने होंगें। अपने नेता को चुनने से पहले उस नेता के पक्ष और विपक्ष को भी समझना होगा और अगर ऐसा हो पाता है तो यक़ीनन आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र की तराजू के दोनों पलड़े समान भार लिए हुए होंगें और तब देश और समाज के हित में लिया गया हर फैसला पक्ष और विपक्ष की सहमति से एक कल्याणकारी लोकतंत्र के रूप में स्थापित होगा।
पक्ष और विपक्ष की अवधारणा में ,बदलाव जरुरी है,
नीति और अनीति में ,सामंजस्य जरुरी है|
जरुरी है की तराजू के, पलड़े बराबर हो ,
समान भार का, समान भाव जरुरी है|
अपने मत के, मतदान से पहले,
पक्ष और विपक्ष का, विमर्श जरुरी है |
इतिहास का लेख, लिखना है अगर,
तथ्यों की असल, परख जरुरी है |
आरोप-प्रत्यारोप, लगाने से पहले,
विषय की, विस्तृत जांच जरुरी है|
जनता कर रही है ,अनुरोध पक्ष और विपक्ष से ,
देशहित में ,दोनों का साथ जरुरी है |
जरुरी है की, अब ये जरुरी हो जाये,
अर्जुन भी जरुरी है,कृष्ण भी जरुरी है |