पर्युषण: आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का पर्व

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अनिल माथुर जोधपुर

पर्युषण जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो आत्मशुद्धि, तप, और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है। इस पर्व को जैन धर्म के दोनों प्रमुख संप्रदायों—श्वेतांबर और दिगंबर—द्वारा मनाया जाता है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है “पास आना” या “समीप में रहना,” और इस संदर्भ में इसका मतलब है अपनी आत्मा के निकट आना, उसे शुद्ध करना, और अपने भीतर के दोषों को समाप्त करना।

पर्युषण की अवधि और महत्व

पर्युषण का पर्व श्वेतांबर संप्रदाय में आठ दिनों का होता है और इसे “अष्टान्हिका” कहा जाता है, जबकि दिगंबर संप्रदाय में यह दस दिनों का होता है और इसे “दशलक्षण पर्व” कहा जाता है। इस दौरान जैन अनुयायी अपनी दिनचर्या को त्यागकर आत्म-निरीक्षण, तपस्या, और प्रार्थना में लीन रहते हैं।

आध्यात्मिक अनुष्ठान

पर्युषण के दिनों में जैन अनुयायी अधिक से अधिक धार्मिक गतिविधियों में शामिल होते हैं। वे प्रतिदिन मंदिरों में जाकर प्रार्थना करते हैं, पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करते हैं, और प्रवचन सुनते हैं। इस समय के दौरान, उपवास का विशेष महत्व है। उपवास से शरीर और मन को शुद्ध किया जाता है, और यह आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप की ओर उन्मुख करता है।

श्वेतांबर जैन पर्युषण के दौरान “कल्पसूत्र” का पाठ करते हैं, जिसमें भगवान महावीर के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन होता है। दूसरी ओर, दिगंबर जैन दशलक्षण पर्व के दौरान दस धर्मों—उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, और उत्तम ब्रह्मचर्य—का पालन करते हैं।

क्षमापना: क्षमा का महापर्व

पर्युषण के अंतिम दिन को श्वेतांबर संप्रदाय में “सम्वत्सरी” और दिगंबर संप्रदाय में “क्षमावाणी” कहा जाता है। इस दिन जैन अनुयायी आपस में एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों और अपराधों के लिए क्षमा याचना करते हैं। यह क्षमा केवल बाहरी नहीं, बल्कि अंतरात्मा से मांगी जाती है, जिससे व्यक्ति के मन और आत्मा का शुद्धिकरण होता है। “मिच्छामी दुक्कडम” का भाव, जो क्षमा मांगने के दौरान बोला जाता है, इसका अर्थ है “मेरे द्वारा की गई गलतियों के लिए मुझे क्षमा करें।”

निष्कर्ष

पर्युषण न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का एक सशक्त साधन भी है। इस पर्व के माध्यम से जैन धर्म के अनुयायी अपनी आत्मा को पवित्र करते हैं, अपने दोषों को पहचानते हैं और उन्हें सुधारने का प्रयास करते हैं। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि क्षमा और दया के मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सही दिशा दे सकते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त कर सकते हैं।

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