ओम बिड़ला क्यों बने केंद्र की पसंद?
वसुंधरा राजे और सतीश पूनियां की लड़ाई में मिलेगा बिड़ला को फायदा
संघ परिवार और केंद्र परिवार का मिलेगा आशीर्वाद
मोदी – अमित शाह के सबसे नजदीकी बने बिड़ला
जयपुर। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला दो बार विधायक रहे और पहली बार ही सांसद चुने गए। बीेजेपी बंपर बहुमत में आने के बावजूद कई वरिष्ठ नेताओं की वरिष्ठता को लांघते हुए भी वे लोकसभा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण और प्रमुख पद पर नियुक्त किया गया। इसके बाद से वे लगातार केंद्रीय नेतृत्व की आंखों का तारा बन गए। पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के सबसे विश्वसनीय लोगों में ओम बिड़ला का नाम है। आज वे दिल्ली के सबसे ज्यादा चर्चित चेहरे है। मान जा रहा है कि मोदी जी और अमित शाह को राजस्थान के नेताओं के बीच की लड़ाई साफ तौर पर नजर आ रही है। सूबे की सियासत में आजकल ओम बिरला का नाम चर्चा में है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वह आने वाले समय में भाजपा नेताओं की आपसी लड़ाई में बीजेपी का चेहरा हो सकते हैं। राजस्थान में बीजेपी दो नेताओं की लड़ाई में ओम बिरला को मैदान में उतार सकती है। हालांकि बीजेपी चुनाव मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी। पर इस तरह के कयास बाजी जोरों पर चल रही है। चर्चा में है ओम बिड़ला।
वसुंधरा संघ परिवार को मंजूर नहीं
बीजेपी का ही एक कहा लगातार इस बात को प्रचारित करता है कि संघ परिवार वसुंधरा राजे के विरोध में है । इसके लिए बराबर खबरें प्लांट होती है और लगातार उन्हें उनके निशाने पर रखा जाता है । पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे संघ परिवार को मंजूर नहीं है। संघ का बहुत बड़ा तबका उऩ्हें शुरु से ही नापसंद करता है। वसुंधरा राजे के समकक्ष नेता भी उन्हें मजबूरी में ही पसंद करते है। इसके साथ जो – जो अध्यक्ष रह चुके है वे कहीं न कहीं उन्हें फिर से मुख्यमंत्री देखना नहीं चाहते। वे बैक बाइटिंग करके राजे का नुकसान करते ही है। सतीश पूनियां, ओम माथुर, अरुण चतुर्वेदी, गुलाब चंद कटारिया, राजेंद्र सिंह राठौड़, नरपत सिंह राजवी सहित कई नेता जो नहीं चाहते की फिर से राजस्थान में बीजेपी की बागडोर राजे को सौंपी जाए। इसलिए अंदरखाने संघ और पार्टी ने जो सर्वे कराया उसमें राजे के समर्थन में भी सौ टका कुछ नहीं है। इसलिए राजे के नेत्त्व में संघ कभी भी चुनाव नहीं कराना चाहेगा। हालांकि यह भी साफ है कि राजस्थान में बीजेपी में वसुंधरा राजे के मुकाबले अभी कोई दूसरा बड़ा नेता, या चेहरा नहीं है। जिसे मैदान में उतारा जा सके लेकिन इसके बावजूद फिर भी उन्हें लगातार दरकिनार किया जाना इस बात का संकेत है कि बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।
सतीश पूनियां के विरोध में वसुंधरा समर्थक
सतीश पूनियां पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और संघ परिवार की पहले नंबर की पसंद है। वे कॅालेज के जमाने से ही संघनिष्ठ रहे है। विद्यार्थी जीवन में एबीवीपी और संघ से जुड़ने के कारण संघ लॅाबी उनके साथ खड़ी नजर आती है। लेकिन वसुंधरा राजे समर्थक उन्हें फूटी आंख भी पसंद नहीं करते । वे पहले दिन से ही सतीश पूनियां को पटखनी देने के चक्कर में लगे रहते है। कोई भी चुनाव आया हो पूनियां विरोधी लोगों ने हमेशा बीजेपी को हराने का ही काम किया है। बताया जा रहा है कि एक बहुत बड़ी लॅाबी है जो नहीं चाहती की सतीश पूनियां सीएम कंडीडेट हो। हालांकि सूबे में जाट समाज 45 से 50 सीटों पर सीधा प्रभाव डालते है। लेकिन अभी तक जाट समाज भी खुलकर उनके साथ नहीं आया । कारण साफ वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस के भी प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जाट समाज से आते हैं। आरएलपी के अध्यक्ष और संरक्षक हनुमान बेनीवाल भी जाट समाज से हैं। ऐसे में अभी तक पूनियां के समर्थन में जितना जाट समाज को आना था वह नहीं आ सका है। यदि पूनियां को जाट समाज ने जिस दिन अपना लिया तो फिर बाकी अन्य तो स्वत ही साथ आ जाएंगे। लेकिन जब तक वसुंधरा राजे है वो और उनके समर्थक कभी भी उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे। अभी वे संगठन स्तर पर भी उन्हें नहीं मान रहे है। बहुत सारे बीजेपी के वरिष्ठ नेता जो सतीश पूनिया से सीनियर है वह भी उन्हें अभी तक स्वीकार नहीं कर सकते हैं। वसुंधरा राजे समर्थक तो खुले तौर पर उनके खिलाफ लगातार बयानबाजी करते हैं । कई संगठन में खड़े कर रखे हैं। पैरलर संगठन भी खड़े कर रखे हैं। ऐसी स्थिति में साफ है कि अभी तक सतीश पूनिया बीजेपी के सर्वमान्य नेता नहीं बने हैं। उनकी राह में उनकी ही पार्टी के कई बड़े नेता रोड़ा बने हुए हैं। यही कारण है कि पार्टी लगातार उपचुनाव में हारती रही और इसका बड़ा कारण उनके विरोधियों का ही उन्हें हराने में बड़ा योगदान रहा।
ओम बिड़ला पर बनेगी सहमति
बताया जा रहा है कि सूबे में बीजेपी स्पष्ट तौर पर वसुंधरा राजे और सतीश पूनियां के गुट में बंटी हुई नजर आ रही है। ऐसे में बीजेपी राजस्थान में विधानसभा चुनावों में किसी का भी नाम सीएम पद के लिए आगे नहीं करेंगे। वे चुनाव मोदी जी के नाम पर लडेंगे। जब राजस्थान में सरकार बनाने की बारी आएगी तो ऐसी स्थिति में पूनियां और राजे की आपसी लड़ाई में ओम बिड़ला का नाम आगे लाया जाएगा। जिसका कोई भी विरोध नहीं कर सकेंगे। क्योंकि बिड़ला का राजस्थान में कोई गुट नहीं है वे संघनिष्ठ और केंद्र की पहली पसंद है। इसलिए पार्टी स्तर पर ओम बिड़ला को यहां का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया जाएगा।
ओम बिड़ला के नाम पर नहीं होगा विरोध
ओम बिड़ला वैश्य वर्ग से आते है ऐसे में बीजेपी का वोट बैंक भी है। केंद्र में लोकसभा अध्यक्ष होने के नाते बड़ी पहचान भी हो गई है। ऐसे में राज्य में भी कोई भी नेता उनके नाम का विरोध नहीं कर सकेगा। दूसरा केंद्र सरकार की शह पर ही उनका नाम आगे आएगा। तो फिर विरोध कौन करेगा। ओम बिड़ला को कमान सौंपने से पूरे देश के वैश्य वर्ग में संदेश भी चला जाएगा और दूसरे समाजों के विरोध का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। इसलिए कानूनी रणनीतिकारों का कहना है कि राजस्थान की राजनीति में एक नए चेहरे का जल्द ही उदयमान होने वाला है। जो अभी तक कभी इस रेस में शामिल रहा ही नहीं। जो अभी तक कभी मंत्री भी नहीं रहा। सिर्फ एक बार संसदीय सचिव राजे के कार्यकाल में रहने का अवसर मिला है। लेकिन अब वही नाम सूबे की सियासत का चमकता सितारा बनने जा रहा है। जिसको लेकर कोई सोच भी नहीं सकता?
वसुंधरा राजे के रहते इतना सब आसान नहीं
हो सकता सतीश पूनियां केंद्र और संघ परिवार की बात को स्वीकार कर ले लेकिन वसुंधरा राजे इस बात को कतई स्वीकार नहीं करेंगे । सबसे खास बात है कि उनके समर्थक विधायक भी यह बात बिल्कुल स्वीकार नहीं करेंगे। राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव में यदि बीजेपी की सीटें सौ के नीचे रहती है, तो फिर वसुंधरा राजे को ही कमाल सौपनी पड़ेगी। लेकिन यदि यही सीटे 120 प्लस चल जाती है या 110 तक जाती है तो फिर केंद्रीय नेतृत्व मनमर्जी करेगा और वह जिसे चाहेगा उसे ही राजस्थान की बागडोर सौंप देगा ?तब फिर किसी नेता की उनके सामने नहीं चल पाएगी!