गणेश चतुर्थी: शुभारंभ का पर्व
अनिल माथुर, जोधपुर
गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है, जिसे भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, शुभ-लाभ और बुद्धि-विवेक के देवता माना जाता है। वे अपने भक्तों की सभी बाधाओं को दूर करते हैं और उनके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का संचार करते हैं।
गणेश चतुर्थी का महत्व
गणेश चतुर्थी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। इस दिन भगवान गणेश की मूर्ति को घरों और पंडालों में स्थापित किया जाता है। भक्तगण विधिपूर्वक उनकी पूजा-अर्चना करते हैं, भजन-कीर्तन गाते हैं और उनके प्रिय मिष्ठान्न, मोदक, का भोग लगाते हैं। यह पर्व दस दिनों तक चलता है, जिसे “गणेशोत्सव” के नाम से भी जाना जाता है। दसवें दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन बड़े हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ किया जाता है।
गणेश चतुर्थी की परंपराएं
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा में खास परंपराओं का पालन किया जाता है। सबसे पहले, मूर्ति को साफ स्थान पर स्थापित कर गणपति की स्थापना की जाती है। फिर गणेशजी का आवाहन कर उन्हें स्नान, वस्त्र, आभूषण और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद, गणेशजी को मोदक, फल, और विभिन्न प्रकार के प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। गणेशजी की पूजा में दूर्वा घास का विशेष महत्व होता है।
गणेशोत्सव की धूम
भारत में गणेश चतुर्थी विशेषकर महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की थी, जिससे यह पर्व राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हुआ। पंडालों में भव्य मूर्तियों की स्थापना की जाती है और समाज के सभी वर्ग के लोग मिलकर गणेशजी की पूजा करते हैं। इस दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन, नृत्य और संगीत का आयोजन किया जाता है।
गणेश चतुर्थी एक ऐसा पर्व है जो समाज में एकता, भाईचारे और संस्कृति का संदेश फैलाता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमें अपने जीवन से सभी बुराइयों और विघ्नों को दूर करना होगा और सद्गुणों को अपनाना होगा। इस पर्व के माध्यम से हम भगवान गणेश से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे जीवन में सदैव सुख, शांति और समृद्धि बनाए रखें। गणपति बप्पा मोरया!