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वक्त के साथ बदली आदिवासियों की दशा और दिशा लेकिन सुधार की जरूरत अभी भी

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अप्रैल का स्थान अब मकान ने लिया है कच्चे घर मकान में बदल गए हैं पीएम और मुख्यमंत्री आवास में के घर बने हैं

सिरोही।(तुषार पुरोहित वरिष्ठ संवाददाता ,लोक टुडे न्यूज )आज विश्व आदिवासी दिवस है इस दिवस को खास तौर पर मनाया जाने भी लगा है। 9 अगस्त 1982 को संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर मूलनिवासियों का पहला सम्मेलन हुआ था। इसकी स्मृति में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत 1994 में कि गई थी। इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा हालात, समस्‍याएं और उनकी उपलब्धियों पर चर्चा हो रही है।

आज हम आपको सिरोही जिले ऐसे आदिवासी क्षेत्र से रूबरू करवाएंगे जहां पर केंद्र व राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का फायदा उन्हें मिला है। यह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, व शैक्षिक क्षेत्र में विकास व प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़े है। इस दिन, पूरे भारत में आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन का उपयोग स्वदेशी लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों, जैसे भूमि अधिकार और सांस्कृतिक संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। आदिवासी दिवस समाज में स्वदेशी लोगों के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करता है, विशेष रूप से पर्यावरण संरक्षण, टिकाऊ जीवन और जैव विविधता में आदिवासियों के उत्थान को लेकर केंद्र व राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे आदिवासियों के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्तर में बढ़ोतरी हो सके।

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आदिवासियों की सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक स्तर में हुआ सुधार

सिरोही जिला आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। यहां पर आदिवासी उत्थान को लेकर लगातार कार्य किया जा रहा है। जिसका परिणाम अब देखा जाने लगा है । आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर में बढ़ोतरी हुई है। अब आदिवासी समाज में लड़कों के साथ लड़कियां भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। इन क्षेत्रों में कई आदिवासी बालक ब बालिका अलग अलग आवासीय छात्रावास भी बनाए गए हैं। इन छात्रावास में बालिका भी बालकों के जैसे वहां रहकर पढ़ाई कर रही है। उधर प्रधानमंत्री आवास योजना में आदिवासियों के जीवन स्तर में बढ़ोतरी की है। जहां पहले ये कच्चे मकान में रहते थे और बारिश व सर्दियों में दिक्कत का सामना करना पड़ता था। लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना ने इनको पक्के मकान दे दिए हैं ।

जिससे अब यह पक्के मकान में आराम से रह रहे हैं। उनके गांव तक पहुंचाने के लिए अब पक्की सड़के बना चुकी है, जिससे इनको आवागमन में भी किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता है। वरना पहले बारिश के दिनों में कच्ची सड़क होने के कारण इन्हें आवागमन में दिक्कत आती थी। उज्जवला गैस योजना के तहत गैस कनेक्शन का लाभ भी इन्हें मिल रहा है जबकि पहले लकडियां जलाकर चूल्हे पर खाना बनाने को ये लोग विवश थे, जहां प्रदूषण से मुक्ति मिली है वहीं जंगलों का भी बचाव हुआ है। दूरसंचार के क्षेत्र में यहां टॉवर लगे ताकि नेटवर्क कनेक्टिविटी की सुविधा से मोबाइल फोन का उपयोग भी कर रहे हैं।

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