Home latest गैस सिलेंडर 1000 के पार,महंगाई आसमान पर किससे करें पुकार?

गैस सिलेंडर 1000 के पार,महंगाई आसमान पर किससे करें पुकार?

0

महंगाई की मार बहुत हुई सरकार

महंगाई से जनता हुई त्रस्त, राजनेता हुए मस्त

महंगाई ने सबका बजट बिगाड़ा ,लेकिन सरकारों ये समझ न आया

जयपुर। देश में महंगाई एक बार फिर लोगों की कमर तोड़ने को तैयार है और आम आदमी इस महंगाई के बोझ तले दबता जा रहा है । सबसे ज्यादा असर महंगाई का मध्यम ,निम्न वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग पर है । जहां लोगों को खाने पीने के सामान तक के लिए उधार लेना पड़ रहा है । एक कर्ज को चुकाने के लिए दूसरा कर लेना पड़ रहा है । ऐसी स्थिति में रही सही कसर तेल कंपनियों ने भी कर दी । तेल कंपनियों ने ₹50 का इजाफा किया है ।राजस्थान में गैस सिलेंडर ₹1000 से लेकर 1033 रुपये तक मिलेगा। वही कमर्शियल गैस सिलेंडर की कीमत ₹2364 हो गई है । गैस सिलेंडर के लगातार बढ़ते दाम का असर आम वस्तुओं पर भी पड़ेगा । पेट्रोल डीजल मैं रोजना बढ़ोतरी हो रही है ।इसके साथ-साथ आटा, कुकिंग ऑयल, दाल ,सब्जियां, कपड़े, फ्रूट ,ड्राई फ्रूट्स, प्लास्टिक का सामान अभी घरेलू उपयोग की वस्तुएं महंगी हो गई है । जो हर आदमी की जरूरत है ।आटे की कीमत ₹17 से बढ़कर 36 से ₹38 के बीच चली गई है। तेल जो 4 साल पहले ₹70 किलो था सरसों का अब सवा ₹200 किलो हो गया है। ऐसा ही कुछ हाल मूंगफली के तेल का भी है यहां तक कि राजस्थान में सरसों की बंपर उपज होने के बाद भी सरसों के तेल के भाव में कोई कमी नहीं आई है । दाल , हरी सब्जियां सब के भाव तीन चार गुना बढ़ गए।

जिस रफ़्तार से महंगाई बढ़ी मजदूरी नहीं बढ़ी

गैस सिलेंडर की बात करें कोटा में गैस सिलेंडर ₹1300 झालावाड़ में ₹1026 डूंगरपुर में गिरा ₹26 बांसवाड़ा में 2026 और हनुमानगढ़ में 1033 मिलेगा। लोगों का कहना है जिस रफ्तार से वस्तुओं की टीम से बढ़ रही है उस रफ्तार से लोगों की मजदूरी नहीं मिल रही है। जहां तक सरकारी कर्मचारियों की बात करें तो उन्हें लगातार महंगाई भत्ता और तमाम तरह की सुविधाएं मिलती है। जिससे उन पर महंगाई का ज्यादा असर नहीं हो रहा। लेकिन जो आम आदमी है जो खुला धंधा करता है ,जो मजदूरी करता है ,जो प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करता है, उनके वेतनमान में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई। आज भी प्राइवेट सेक्टर में रखे जाने वाले कर्मचारियों का वेतनमान हैं 8000 से शुरू होता है। 10,000 15,000 बहुत ज्यादा अगर वह व्यक्ति कोई किसी व्यक्ति का एक्सपर्ट है तो उसे 20000 महीना तक भुगतान किया जाता है । दुकानों फैक्ट्रियों में काम करने वालों की मजबूरियां का फ़ायदा भी कमोबेश इसी तरह से उठाया जा रहा है। हां रेलवे अस्पतालों और सरकारी बिल्डिंगों में जो काम संविदा पर दे दिया गया है वहां पर तो हालत और भी खराब है । यहां लोगों को ₹6000 ही भुगतान किया जाता है । सफाई कर्मचारियों, सविदा पर काम करते हैं 6 से ₹8000 मजदूरी के रूप में दी जाते हैं और इसके लिए भी लंबी कतार होती है। लोगों को अप्रोच रखनी पड़ती है । अब आप सोच सकते हैं कि आदमी का खर्चा कैसे 8000 में 10000 में कैसे चलेगा।

खाद्य पदार्थ भी दुगने दाम पर

लेकिन बात की जाए अगर नमक, मिर्च मसालों की भी जो एक सामान्य व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए जरूरी है। उन सब के भाव दुगने हो चुके हैं लेकिन इस पर कोई भी राजनीतिक पार्टी बात नहीं करना चाहती। कोई भी इस विषय को लेकर सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोलने को तैयार नहीं है। सरकारे हिंदू -मुस्लिम में उलझी हुई है । सिर्फ हिंदू मुस्लिम या फिर दलित या स्वर्ण में ,लेकिन किसी को जनता पर पड़ रही महंगाई की मार की परवाह नहीं है। इतनी कम मजदूरी में लोगों की जीविका कैसे चलेगी इसकी परवाह नहीं है । जिन लोगों के काम बंदे कोरोना में छूट गए हैं उनको उन्हीं कंपनियों में दोबारा से आधी आधी तनख्वाह पर रखा जा रहा है। ऐसे में उनका गुजारा होना मुश्किल हो गया है । लगातार आत्महत्या बढ़ रही है । लेकिन महंगाई रोकने के लिए सरकार पूरी तरह से विफल है। कभी राज्य सरकार ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाती है तो केंद्र सरकार राज्यों के माथे ठीकरा फोड़ती है।

मीडिया सच्चाई दिखाने के बदले, सरकारों की चंपी में जूटा है

जब राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में बिजी हो और सब को सिर्फ सत्ता की नजर आ रही हो ऐसी स्थिति में उम्मीद की जाती है कि मीडिया सच्ची तस्वीरें दिखाएगा। लेकिन अब मीडिया भी सरकारों का पिछलग्गू बनकर रह गया है । किसी को केंद्र सरकार का मिट्ठू बनना अच्छा लग रहा है, तो कोई राज्य सरकारों का मिट्ठू बना हुआ है । हर किसी मीडिया संस्थान का किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव नजर आता है। यही कारण है कि मीडिया जनता से जुड़े हुए मुद्दे पर बात ही नहीं करना चाहती। हकीकत लोगों के सामने लाना ही नहीं चाहती है। किसी जमाने में पेट्रोल -डीजल पर 10 पैसे बढ़ते थे तो मीडिया के लोग खुद सड़कों पर उतर जाते थे । लोगों से बात करते थे। माहौल बनाते थे और राजनीतिक पार्टियों को दाम घटाने पर मजबूर करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है अब मीडिया किसी न किसी पार्टी की सरकार की सिर्फ यशमेन बनी हुए है तो कोई मीडिया हाउस केंद्र सरकार का पिट्ठू बना हुआ है तो कई मीडिया हॉउस राज्य सरकारों के पिट्ठू बनकर चांदी कूट रहे हैं। अब मीडिया के टारगेट भी दूसरी पार्टी की नीतियां होती है उन्हें जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है। इसलिए लोग मीडिया को भी गालियां देने लगे है। हालात ये है कि लोग मीडिया हाउस की लाइव डिबेट में खुले आम दलाल मीडिया कहकर चले जाते हैं।

पेट्रोल डीजल के दाम घटाना जरूरी

जब तक सरकार पेट्रोल ,डीजल और गैस की कीमतों पर अंकुश नहीं लगाएगी तब तक इन तमाम वस्तुओं की कीमतें भी दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ती जाएगी। सरकारों को चाहिए कि अब पेट्रोल डीजल और गैस के दामों में कटौती करें । इन पर अंकुश लगाए बाजारों में जो बिचौलियों का कमीशन ज्यादा हो गया है उस पर कार्रवाई हो। एक किसान से गेहूं ₹17 किलो खरीदे जाते है। लेकिन उसका आटा ₹40 किलो बेचा जाता है । तो ऐसे में मरना तो आम आदमी को ही है। खाद्य पदार्थों पर सरकारों को नियंत्रण करना भी चाहिए नहीं तो आने वाले समय में लोगों के पास खाने को कुछ नहीं बचेगा। काम धंधा पहले से नहीं है ऐसे में लोग लूटपाट करेंगे और पिछले 2 साल की घटनाएं देखें तो लूटपाट की घटनाएं भी बढ़ गई है । राजनीतिक पार्टियों को भी फिजूल मुद्दों को उठाने के बजाय इस महंगाई के मुद्दे पर ही फोकस करना होगा। किसी को 5 किलो या 10 किलो गेहूं फ्री देने से काम चलने वाला नहीं है। अब हमें खाद्य पदार्थों खाद्य वस्तुओं पेट्रोल डीजल और गैस के दामों पर अंकुश लगाने की जरूरत है। जिससे आम आदमी को राहत मिल सके।

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version