लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
हेमराज तिवारी वरिष्ठ पत्रकार
पहलगाम का हमला, सिर्फ एक घटना नहीं थी, यह एक संकेत था—कि आतंकी तत्व आज भी सक्रिय हैं, और उनके इरादे अब भी धुंधले नहीं हुए हैं। यह हमला तब हुआ जब अमरनाथ यात्रा की तैयारियाँ चल रही थीं। यह केवल जम्मू-कश्मीर का नहीं, पूरे भारत का मामला है। और इसीलिए अब जो मॉक ड्रिल्स हो रही हैं, वे आम जनजीवन से जुजड़ती जा रही हैं।
लेकिन प्रश्न यह है—क्या हम तैयार हैं?
मॉक ड्रिल, प्रशासनिक भाषा में एक “आपात स्थिति की प्रतिक्रिया की जांच” हो सकती है, लेकिन देश के नागरिक के लिए यह उसके भविष्य की सुरक्षा का मौलिक प्रशिक्षण है। अगर युद्ध हो, अगर आतंकी हमला हो, अगर साइबर इन्फ्रास्ट्रक्चर ठप हो जाए, तो क्या हम सिर्फ सरकार पर निर्भर रह सकते हैं? बिल्कुल नहीं।
आज आवश्यकता है कि:
हर नागरिक मॉक ड्रिल को गंभीरता से ले,
स्कूलों, कॉलेजों, कार्यालयों में इसकी नियमितता हो,
मीडिया इसमें सहयोगी न होकर अग्रणी भूमिका निभाए।
लेकिन दुर्भाग्यवश, हम में से कई लोग मॉक ड्रिल को एक “नाटक” मानकर हँसी में उड़ा देते हैं। क्या हम इतने बेपरवाह हो चुके हैं कि आत्मरक्षा का अभ्यास भी हमें बोझ लगे?
सरकार की मंशा स्पष्ट है—समय आने से पहले तैयारी हो जाए। लेकिन तैयारी केवल सरकारी नहीं हो सकती। इसमें जनता की भागीदारी ज़रूरी है।
इस दौर में जब भारत-पाक तनाव फिर से उबाल पर है, जब चीन की गतिविधियाँ संदिग्ध बनी हुई हैं, और जब आतंकी तंत्र फिर से जज़ें फैलाने की कोशिश कर रहा है—तब मॉक ड्रिल एक रणनीति नहीं, राष्ट्र रक्षा का स्वाभाविक उत्तर है।
आज हमें चाहिए एक नया सामाजिक अनुबंध—जिसमें रक्षा केवल सैनिकों की नहीं, नागरिकों की भी ज़िम्मेदारी हो।
मॉक ड्रिल केवल सरकारी आदेश नहीं, आत्मनिर्भर राष्ट्र का अभ्यास है। हमें इसे गंभीरता से न लेना, हमारे सामूहिक भविष्य से खिलवाड़ होगा। हमें समझना होगा—युद्ध कभी भी हो सकता है, लेकिन विजय हमेशा उसी की होती है जो पहले से तैयार हो।