आर्यिका विजयमती माताजी की जन्मभूमि पर आकर जीवन की रिक्तता पूर्ण हुई:- आचार्य जय कीर्ति महाराज

0
32
- Advertisement -

लोक टुडे न्यूज नेटवर्क 

हरिओम मीणा
कामां। भारतवर्ष में चार आर्यिका माताओं ने गणिनी पद को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया। कुछ तो पद को सुशोभित करते हैं लेकिन कुछ से पद सुशोभित होते हैं। ऐसे ही प्रथम गणिनी आर्यिका विजयमती माताजी,गणिनी आर्यिका ज्ञान मति माताजी,गणिनी आर्यिका विशुद्ध मति माताजी,गणिनी आर्यिका सुपार्श्व मति माताजी पर पद स्वयं सुशोभित होते है। इनका सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान,सम्यक चारित्र अति उच्च कोटि के साथ साथ धर्म व आगम सम्मत रहा,इन्होंने किसी भी परिस्थिति में धर्म व आगम की क्रियाओं में समझौता नही किया।
आर्यिका विजयमती माताजी के दर्शन तो मुझे नही मिले किंतु उनका आभास उनके साहित्य व ज्ञान से जरूर प्राप्त हुआ। मेरे जीवन मे विजयमती माताजी के दर्शन की जो रिक्तता थी।वह धर्म नगरी कामां में आकर वह रिक्तता आज दूर हो गयी है। उक्त प्रवचन आचार्य देवनन्दी महाराज के सुशिष्य आचार्य जय कीर्ति सागर महाराज ने कामां के विजयमती त्यागी आश्रम में व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि बिरले ही लोगो को जीवन काल व मृत्यु के पश्चात भी बड़ी श्रद्धा के साथ याद किया जाता है और उनके गुणों का गुणगान किया जाता है उनमें से ही एक रत्न आर्यिका विजय मति माताजी थी। जिन्होंने अपने जीवन काल मे तीन बार सम्पूर्ण भारत की पद यात्रा कर जैनत्व की ध्वजा चहुँ ओर फहराई। उन्होंने कहा कि कामां नगरी के श्रावकों को वही परम्परा जीवंत रखने का प्रयास अवश्य करना चाहिये।
जैन समाज कामां के अनुसार जैनाचार्य जय कीर्ति सागर महाराज का परमदरा से अल सुबह पद विहार करते हुए कामां में आगमन हुआ तो डीग गेट से जैन धर्म के जयकारों के साथ शान्तिनाथ मन्दिर होते हुए विजयमती त्यागी आश्रम तक प्रवेश कराया गया जहां पूर्व में विराजमान क्षुल्लक हर्ष सागर महाराज द्वारा आगवानी की गई।इस अवसर पर जैन समाज के पदाधिकारियों ने आचार्य का पाद प्रक्षालन व आरती भी की गई।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here