लोकेश शर्मा और धर्मेंद्र राठौर
दोनों ही बने परेशानी का कारण
जयपुर। किसी ने सच्ची कहा है नादान की दोस्ती कभी-कभी जीव का जंजाल बन जाती है। यह सीधा-सीधा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकेश शर्मा और धर्मेंद्र राठौड़ पर सटीक बैठता है। लोकेश शर्मा की टिकट पर राजस्थान यूनिवर्सिटी से संयुक्त सचिव का चुनाव लड़ चुके थे चुनाव हारे थे और कांग्रेस पार्टी की विचारधारा में भरोसा करें
एक सामान्य कार्यकर्ता जिसकी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कोई सीधी पहचान भी नहीं थी मीडिया के ही कुछ साथियों ने लोकेश शर्मा से परिचय कराया और उसके बाद धीरे-धीरे कर लोकेश शर्मा ने अशोक गहलोत से नजदीकियां बढ़ाई जब मुख्यमंत्री बनकर आए तो लोकेश शर्मा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत में ओएसडी बना कर बड़ी जिम्मेदारी दे दी। जब गहलोत ने लोकेश शर्मा को अपना विशेष अधिकारी नियुक्त किया और मीडिया मैनेजमेंट और सोशल मीडिया मैनेजमेंट का काम लोकेश शर्मा को सौंप दिया । तब उस समय भी बहुत सारे लोगों ने लोकेश शर्मा का विरोध किया था और मुख्यमंत्री तक बात पहुंचाई थी कि यह परिपक्व नहीं है कहीं आपको इससे नुकसान भी हो सकता है । लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लोकेश शर्मा पर पूरा भरोसा था वह अपने बेटे की तरह इन्हें मानते थे और इसीलिए उन्हें तुरंत ओएसडी बनाया और बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी। यहां तक की लोकेश शर्मा और तत्कालीन डीपीआर मिनिस्टर रघु शर्मा के खटपट होती रही। लेकिन लोकेश शर्मा के खिलाफ कभी कुछ कर नहीं पाए क्योंकि वह मुख्यमंत्री का और सभी अधिकारियों पर सीधी दखल लोकेश शर्मा की थी। खैर रघु शर्मा का डिपार्टमेंट छीनकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पास ही रख लिया और उसके बाद लोकेश पूरे 5 साल में लोकेश सोशल मीडिया टीम के माध्यम से अन्य माध्यम से पूरे राजस्थान में अपनी पहचान बनाई । चुनाव से 1 साल पहले ही उन्होंने विधायक बनने का सोचा और बीकानेर से दावेदारी जता दी ,जबकि लोकेश शर्मा ने फील्ड वर्क नहीं किया था । इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मना कर दिया कि अभी आपको मेहनत की जरूरत है । अभी चुनाव जीतना संभव नहीं है । इसके बाद इन्हें लगा कि भीलवाड़ा में जगह खाली है भीलवाड़ा में कांग्रेस बार-बार हारती है । भीलवाड़ा से भीलवाड़ा वाले लोगों को पता लगी कांग्रेसियों को भीलवाड़ा के कांग्रेसियों ने भी मुख्यमंत्री तक विद्रोह कर दिया । बीकानेर और भीलवाड़ा दोनों स्थान के कांग्रेसी नेताओं कार्यकर्ताओं ने लोकेश शर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया । टिकट देने पर विरोध करने की घोषणा कर दी इसके बाद लोकेश शर्मा को टिकट नहीं दिया गया । चुनाव आए ,चुनाव हो गए ,चुनाव के नतीजा सबके सामने हैं । चुनाव के नतीजे आने के दिन ही लोकेश शर्मा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया है । वह सब टीवी चैनल , समाचार पत्रों के डिबेट में जा रहे हैं, लाइव में जा रहे हैं और जो भी उन्हें मुख्यमंत्री के खिलाफ जमकर बोल रहे हैं। टीवी चैनल को समाचार पत्रों को भी मसाला चाहिए तो भला इस समय लोकेश शर्मा से बेहतर इंसान को हो सकता है। इसीलिए लोकेश शर्मा की कही हुई हर बात को मीडिया भी प्रमुख स्थान दे रहा है और टीवी चैनल भी अपने प्राइम टाइम में भी दिख रहा है । क्योंकि लोकेश शर्मा जो कुछ भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बोलेगा वह सब टीआरपी का गेम है और चैनल को टीआरपी देता है इसलिए ज्यादा ज्यादा लोग उसको लाइव लेना चाहते हैं मुख्यमंत्री के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा बुलवाना चाहते हैं जिससे कि विपक्ष को भी पूरा मसाला मिल जाए । जबकि यही लोकेश शर्मा था जब अशोक गहलोत के पास नहीं था तब इसे जयपुर के लोग भी नहीं जानते थे । लेकिन आज यही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कब्र खोदने में लगा हुआ है। लोकेश शर्मा जब सरकार पर संकट आया था तब वॉइस रिकॉर्डिंग को वायरल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वॉइस रिकॉर्डिंग किसके कहने पर हुई थी क्यों हुई थी यह जांच का विषय है । लेकिन यदि यह तमाम बातें सही भी है तो भी लोकेश शर्मा को अभी गहलोत का साथ नहीं छोड़ना चाहिए था । ऐसा लोगों का कहना है और यदि लोकेश शर्मा को लगता है कि गलत हो रहा था,तो उसी समय छोड़कर वह सब चीज सर्वजनि कर देते तो वह आज स्टार होते। लगता है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अपना ओएसडी चयन करने में बहुत बड़ी भूल हो गई । और उन्होंने लोकेश शर्मा जैसा सामान्य कार्यकर्ता को फर्श से उठाकर अर्श तक पहुंचाया। जिसको लेकर अब हर कोई लोकेश शर्मा पर कमेंट कर रहा है और कह रहा है मुख्यमंत्री की कुर्सी जाते ही आप बगावती हो गए। लेकिन ऐसा करके लोकेश शर्मा ने तो किसी बीजेपी नेता के सगे हो पाएंगे और नहीं सचिन पायलट के । क्योंकि वह समझेंगे जब 5 साल तक सत्ता की मलाई चाटने के बाद भी यह आदमी अशोक गहलोत का नहीं हुआ तो हमारा कैसे हो सकता है?
धर्मेंद्र राठौड़
धर्मेंद्र राठौड़ के कारण भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लगातार नीचा देखना पड़ रहा है और किरकिरी भी हो रही है । धर्मेंद्र राठौर की नादानी का खामियांजा कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम छोटे बड़े नेताओं ने धर्मेंद्र राठौड की उसे लाल डायरी का जिक्र किया जो पता नहीं हकीकत में है या नहीं है । लेकिन कांग्रेस सरकार कांग्रेस को सत्ता से दूर करने में धर्मेंद्र राठौर की लाल डायरी ने अपनी बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। हो सकता हो धर्मेंद्र राठौर के पास कोई लाल डायरी भी हो और उसे पर सरकार के राज भी छुपे हो। लेकिन वर्तमान युग में ऐसा कौन सा नेता होगा जो डायरी मेंटेन करें और अपने काले कारनामों का उल्लेख भी उसे डायरी में करें ،,यह संभव नहीं है। लेकिन जब आदमी नादान होता है तो उसकी नादानी का खामियाजा एक व्यक्ति को नहीं पूरी की पूरी पार्टी को बहुत न पड़ा और सत्ता से बाहर आना पड़ा । धर्मेंद्र राठौड़ दरअसल खुद राज्य कर्मचारी रहे हैं और वीआरएस लेकर बानसूर से चुनाव लड़ने की तैयारी की थी टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय लड़े और चुनाव हारने पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए । धीरे-धीरे करके धर्मेंद्र राठौड़ ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नजदीकियां बढ़ा ली और नजदीकी इतनी बढ़ाने की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तमाम राज धर्मेंद्र राठौड़ को पता है । लेकिन धर्मेंद्र राठौर भी मुख्यमंत्री गहलोत के लिए कच्ची कड़ी ही साबित हुए। क्योंकि उन पर जब ईडी ने रेड डाली तब एक लाल डायरी का जिक्र आता है और उसे लाल डायरी के कारण मुख्यमंत्री गहलोत की सरकार तक चली जाती है। क्या कोई व्यक्ति ऐसा होगा जो अपने दिनभर की क्रियाकलाप डायरी में नोट करता हो । वह भी वह व्यक्ति जो सार्वजनिक जीवन में 10 बार झूठ बोलते हो 100 बार किसी को डांटता हो। ऐसा व्यक्ति मेंटेन करें और जो बातें सार्वजनिक नहीं करने की हो उन्हें भी डायरी में लिखकर रखें, तो इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है। लेकिन इसके बावजूद भी धर्मेंद्र राठौड़ आज भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी बने हुए हैं । जबकि गहलोत को असली नकली में तो फर्क देखना ही होगा। व्यक्ति खुद राजनीतिक जीवन जी रहा है और प्रदेश के मुखिया का वह खास विश्वसनीय है और वह व्यक्ति यदि अधिकारियों से होने वाली बातें नेताओं से होने वाली बातें खुद मुख्यमंत्री जी से होने वाली बातें हैं । तमाम बातें यदि डायरी में लिखकर रहता है तो वह खुद तो मरेगा ही साथ में सामने वाले को भी लेकर मरेगा। यही कारण है कि भले ही ईडी को कोई लाल डायरी नहीं मिली हो ,क्योंकि यह मिलती तब तक वह एक्शन में आ चुकी होती है । धर्मेंद्र राठौर और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जेल में डाल दिया जाता। लेकिन फिर भी खुद धर्मेंद्र राठौड़ ने स्वीकार किया कि हां मैं डायरी मेंटेन करता हूं और मैं डायरी लिखता हूं अब ऐसे भले आदमी को कौन समझाए कि भाई अब तुम सामान्य व्यक्ति नहीं हो प्रदेश के मुखिया के खास व्यक्ति हो आपको आरटीडीसी का अध्यक्ष बनाया गया था । आपको 20 निगम बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था तो आपके पास बहुत सारे दायित्व है। जब सरकार के गिरने की और तोड़ने फोड़ने की बात चली तब भी आप सरकार के साथ थे तो क्या यह तमाम बातें अपने डायरी में नोट कर रखी है और यदि कर रखी है तो फिर आपसे बड़ा नासमझ कोई नहीं हो सकता ।क्योंकि यह तो खुद तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे देंगे वाली कहावत चरितात्र करती है । राजनीति में नेता को पर्दे के पीछे मुझे बहुत कुछ करना पड़ता है और एक राजनेता की कई किस्से कहानी होती है पूरे सुबह के मालिक को अलग-अलग लोगों से अलग-अलग तरीके से निपटना पड़ता है और यदि उनके नजदीक रहने वाले आदमी उनके सारे बातचीत को उनके सारे राजनीतिक घटनाक्रमों के बारे में डायरिया मेंटेन करने लग जाए तो फिर तय है कि वह खुद तो डूबेंगे सामने वाले को भी ले डूबेंगे। यही हुआ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए धर्मेंद्र राठौर भी घाटे का सौदा साबित हुआ। लोकेश शर्मा पर उन्होंने पूरी बागडोर छोड़ रखी थी उसने भी सरकार जाने के साथ ही मोर्चा खोलकर खुली बखावत कर दी है, जो पूरे 5 साल तक विपक्ष को भरपूर मुद्दे देगा और गहलोत को कांग्रेस को इतनी बदनाम करवा देगा ,जिसका अंदाजा गहलोत को भी नहीं है। लेकिन इसमें दौष किसी और का नहीं है खुद मुख्यमंत्री का है ,जिन्होंने बगैर ठोक बजाए इस तरह के लोगों को रखा और माथे पर बैठाकर रखा। उन्हें पावर दी ,ताकत दी, सत्ता का सुख भोगने की तमाम तरह की छूट दी। लोगों का कहना है इस तरह के लोगों से भगवान ही बचाए। चाणक्य भी यही कहते हैं की दोस्ती असली लोगों के साथ ही करनी चाहिए नकली लोगों के साथ नहीं नकली तो आप कभी भी मरवा देगा। जैसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उसके नकली सलाहकारों ने डुबो दिया।