
श्री भँवर मेघवंशी जी के फेसबुक पोस्ट से साभार……..
तेरी जाति-मेरी जाति !
जब सवालों के जवाब नहीं होते हैं तो प्रश्नों को या तो टाल दिया जाता है अथवा घुमा दिया जाता है.
डॉक्टर अम्बेडकर वेलफेयर सोसायटी में चल रही अंधेरगर्दी के ख़िलाफ़ आज पहली बार कुछ लिखा तो जाति का चक्र परिभ्रमण करने लगा.
सवाल यह है कि यह सब ग़ैरक़ानूनी काम क्यों किए जा रहे हैं ? एक निर्वाचित वरिष्ठ उपाध्यक्ष के होते क्यों अन्य लगभग निष्क्रिय व्यक्ति को पदारूढ़ किया गया ?
लेकिन सवाल का जवाब नहीं है,जवाबदेही से बचना है तो अपनी जाति,उसकी जाति,तेरी जाति,मेरी जाति का खेल शुरू हो गया है.निकृष्ट लोग जाति धर्म की आड़ लेकर मूल प्रश्न को टाल देते है.
अभी अभी वेलफेयर सोसायटी से जुड़े एक सज्जन का फ़ोन आया,समझाने लगे,आप क्यों पंगा ले रहे हैं ? बड़े लोग है,वो जाने उनका काम जाने. वैसे भी जब से संस्था बनी है,आमतौर पर अध्यक्ष पद पर “अपने समाज” का व्यक्ति ही बैठता है,वरिष्ठ उपाध्यक्ष तो दूसरे समाज का है,उसको कैसे बना देते ? समाज का नुक़सान नहीं हो जाता इससे ? आप कुछ समझते तो हो नहीं और पंगा ले रहे हो !
उनके शब्द मेरे कानों में अभी गूंज रहे हैं,अध्यक्ष तो अपनी जाति का होना चाहिये,दूसरी जाति को कैसे संस्था सौंप दें ?
अनुसूचित जाति वर्ग में उपजाति अस्मिताएँ इतनी तीव्र,तीक्ष्ण और कटुता के स्तर पर पहुँच चुकी है कि नाम अम्बेडकर वेलफेयर सोसायटी रखेंगे पर क़ब्ज़ा अपनी जाति का ही रहे,यह सुनिश्चित करना नहीं भूलेंगे.
हम सवर्ण जातिवाद को पानी पी पी कर कोसेंगे,परंतु अपने जातिवाद को जी भर कर पालेंगे पोषेंगे.
उनका जातिवाद बुरा,हमारा जातिवाद अच्छा !
उनकी जाति बेकार,हमारी जाति महान.
हर जाति का गौरवशाली इतिहास है तो फिर कौन सी जाति का शर्मनाक है ?
जाति है कि जाति नहीं …