राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जयन्ती

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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ भारतीय साहित्य के महानतम कवियों में से एक थे, जिन्हें राष्ट्रकवि के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनका जीवन और काव्य रचनाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक अन्याय और राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित थीं, जो उन्हें जन-जन में लोकप्रिय बनाती हैं।

दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई, और बाद में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। हालांकि उनका बचपन गरीबी में बीता, लेकिन उनकी अध्ययन के प्रति रुचि ने उन्हें महान कवि बना दिया। उनकी कविताओं में देशभक्ति, विद्रोह, और सामाजिक सुधार की गहरी भावना झलकती है।

दिनकर ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत छायावाद युग में की थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपना अलग मार्ग चुना। उनके काव्य में राष्ट्रीयता और समाजवाद का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है। उनकी प्रसिद्ध रचना “रेणुका” और “हुंकार” में समाज और देश के प्रति उनके विचारों की स्पष्ट झलक मिलती है। दिनकर की लेखनी ने समाज के अन्याय, शोषण और गुलामी के खिलाफ आवाज उठाई। उनके प्रमुख ग्रंथों में “कुरुक्षेत्र”, “रश्मिरथी”, और “परशुराम की प्रतीक्षा” विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

“कुरुक्षेत्र” महाभारत के युद्ध पर आधारित एक महाकाव्य है, जिसमें दिनकर ने शांति और युद्ध के द्वंद्व को दर्शाया है। इस रचना में उन्होंने युद्ध की विभीषिका को चित्रित करते हुए भी यह स्पष्ट किया कि कभी-कभी अन्याय के खिलाफ युद्ध भी आवश्यक होता है। “रश्मिरथी” कर्ण के जीवन पर आधारित एक महाकाव्य है, जिसमें उन्होंने कर्ण के संघर्ष और अदम्य साहस को प्रमुखता से प्रस्तुत किया है।

दिनकर की कविताओं में राष्ट्रभक्ति की अद्भुत भावना है। स्वतंत्रता संग्राम के समय उन्होंने अपनी कविताओं से जनता को जागरूक किया और उनके हृदय में देशप्रेम की लौ जलाने का काम किया। उनकी रचनाएँ समाज में सुधार और राष्ट्रीय एकता का संदेश देती हैं। वे न केवल एक महान कवि थे, बल्कि एक श्रेष्ठ विचारक और दार्शनिक भी थे, जिनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

साहित्यिक योगदान के लिए दिनकर को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1972 में “उर्वशी” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1962 में उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी चुना गया, जहाँ उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य आज भी भारतीय जनमानस में ज्वलंत है। उनकी रचनाओं ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और भारतीय समाज को नैतिकता, न्याय और समानता के आदर्शों की ओर अग्रसर किया। उनका साहित्य और काव्य आज भी हमें प्रेरित करता है और हमारे भीतर राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल करता है।

उन्होंने 24 अप्रैल 1974 को अंतिम सांस ली, लेकिन उनका साहित्य और काव्य सदैव अमर रहेगा। राष्ट्रकवि दिनकर आज भी अपनी रचनाओं के माध्यम से हमारे दिलों में जीवित हैं, और उनकी कविताएँ देशभक्ति, सामाजिक सुधार, और न्याय के प्रतीक के रूप में आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।
अनिल माथुर
जोधपुर

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