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लोक अदालत के माध्यम से न्यायालयों का बोझ हो रहा कम: मदन राठौड

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गत वर्ष स्थाई लोक अदालत में 10 करोड से अधिक मामलो का हुआ निस्तारण

लोक टुडे न्यूज नेटवर्क

जयपुर, । (आर एन सांवरिया) देश में लोक अदालतों के माध्यम से न्यायालयों में चल रहे मामलों का तेजी से निस्तारण किया जा रहा है। इसमें उन मामलों को रखा जा रहा है जो मुकदमेबाजी के पहले चरण में ही निस्तारित हो सकते हैं। इसकी जानकारी केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने राज्यसभा सांसद व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड की ओर से पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में दी। उन्होंने कहा कि लोक अदालतें संबंधित न्यायालयों के भेजे मामलों का ही निस्तारण करती है। वर्ष 2025 में राष्ट्रीय लोक अदालतें दिनांक 8 मार्च, 10 मई, 13 सितंबर और 13 दिसंबर को आयोजित होगी जिससे लंबित लाखों मामलों में नागरिकों को राहत मिल सकेगी।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद मदन राठौड ने बताया कि केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल के अनुसार देश में लोक अदालत के माध्यम से न्यायालयों का बोझ कम किया जा रहा है। इसके चलते गत वर्ष ही देशभर में 10 करोड 45 लाख 26 हजार मामलों को निस्तारित किया गया है। वहीं राज्य लोक अदालत में निस्तारित होने वाले मामलों की संख्या 10.88 लाख रही है।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद मदन राठौड ने बताया कि केन्द्रीय कानून मंत्री ने जानकारी दी है कि लोक अदालतों का आयोजन विधिक सेवा संस्थानों द्वारा ऐसे अंतरालों पर किया जाता है, जैसा वे उचित समझते हैं। लोक अदालतें न्यायालयों पर बोझ कम करने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र के प्रभावी तरीकों में से एक हैं, जिन्हें जनता से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद मदन राठौड ने बताया कि केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल के अनुसार राज्य लोक अदालत में विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा स्थानीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार पूर्व मुकदमेबाजी और पश्चात मुकदमेबाजी दोनों प्रकार के मामलों के निपटारे के लिए किया जाता है। स्थायी लोक अदालतें अधिकांश जिलों में स्थापित स्थायी स्थापन हैं, जो सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से संबंधित विवादों के निपटारे के लिए अनिवार्य पूर्व-मुकदमेबाजी से राहत देती है। राष्ट्रीय और राज्य लोक अदालतें स्थायी स्थापन नहीं हैं और संबंधित न्यायालयों द्वारा भेजे गए लंबित मामलों का ही निपटारा करती हैं। ये लोक अदालतें स्थायी प्रकृति की नहीं होती इसलिए सभी अनसुलझे मामले संबंधित न्यायालयों को वापस कर दिए जाते हैं। ऐसे में इन लोक अदालतों में मामले लंबित नहीं रहते हैं।

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