Home latest होलिका दहन में है गलुरी, बलुरी और ढाल का पौराणिक महत्व

होलिका दहन में है गलुरी, बलुरी और ढाल का पौराणिक महत्व

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होलिका दहन की तैयारियो में जुटे महिला और पुरुष

डंडा रोपण करने के साथ होती हैं शुरुआत

लोक टुडे न्यूज नेटवर्क

राजेंद्र शर्मा जति

भुसावर। प्यार और स्नेह का रंगीला पर्व, त्योहार होली जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे ही कस्बा भुसावर सहित ग्रामीण अंचल के विभिन्न घरों में होलिका दहन की तैयारियो में जुट गए हैं।

होली का डंडा रोपण के साथ तैयारी शुरू

होलिका दहन का शुभारंभ फागुन मास लगते ही होली का डंडा रोपण के साथ शुरू होता है। जहां घरों में महिलाएं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एवं ब्रज की संस्कृति को साकार करने के लिए गाय के गोबर से गलुरी, बलूरी और ढाल बनाने में जुट गए हैं। वही विद्वान पंडितो महेश चन्द जती, राघवेंद्र शर्मा, राजेश कुमार शुक्ला, बबलू नवारिया ने जानकारी देते हुए बताया कि माघ मास की पूर्णिमा को होली का डंडा रोपा जाता है। पर्यावरण को बचाने के लिए अरंडी, गूलर की सूखी लकड़ी का डंडा रोपण करना चाहिए। गीली लकड़ी का डंडा रोपने एवं काटने से ग्रहों के रूष्ट होने का खतरा बना रहता है। वहीं कस्बा भुसावर निवासी महिला पुष्पा सैन, रेनू, चंचल शर्मा, लक्ष्मी जती ने जानकारी देते हुए बताया कि फाल्गुन माह लगते ही होलिका दहन की तैयारी शुरू होती हैं, जिसमें गाय के गोबर से बलुरी, गिलूरी होरा, होरी, नारियल,कंगी, डोरा, चंदा, सूरज आदि बनाते हैं।

रंग एकादशी तक चलता है महोत्सव

वहीं महिला कल्पना मित्तल, आशा, मंजू ने जानकारी देते हुए बताया कि होलाष्टक लगने के बाद एकादशी जिसे रंग भरी एकादशी कहा जाता है के दिन ढाल बनाते हैं जिन्हें होली के दिन हरि दूब, चावल, रोली, गुलाल, मिष्ठान अर्पित करते हुए पूजा अर्चना की जाती है। तत्पश्चात होली के दिन शुभ मुहूर्त में घर के बच्चे, युवतिया, युवक गिलुरी बलूरी को माला में पिरोकर पांच,11, 21 आदि की शुभ संख्या में बनाते हैं। और तलवार नुमा खाड़े में गिलुरी, बलूरी की माला को लगाकर होलिका दहन पर ले जाते हैं और वहीं शेष बची गिलुरी, बलुरी को पात्र में रखकर सिर पर रखते हुए रास्ते में भजन, कीर्तन करते हुए होलिका दहन स्थान पर ले जाते हैं । वही मार्ग में बने मंदिरों, देवालयों के साथ धार्मिक स्थलों पर डालते हुए भगवान से परिवार में सुख, शांति, समृद्धि के साथ क्षेत्र में खुशहाली की प्रार्थना की जाती है। वही शेष बची बलुरी, गलूरी को एक स्थान पर डाला जाता है जहां गांव के गणमान्य नागरिकों की मौजूदगी में होलिका दहन किया जाता है।

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