लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
हेमराज तिवारी वरिष्ठ पत्रकार
22 अप्रैल 2025 का दिन, जब पहलगाम की शांत वादियों में आतंक का नंगा नाच हुआ, सिर्फ गोलियों की गूंज नहीं थी – यह भारत के मूल अस्तित्व और धार्मिक सह-अस्तित्व पर किया गया हमला था। लेकिन जब देश सन्न था, तब कुछ नेता संदेह में थे।
कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने बयान दिया कि “धार्मिक आधार पर हत्या का कोई प्रमाण नहीं है”। सवाल यह है कि सांसद साहब और किस तरह के प्रमाण चाहते हैं – लाशों के साथ पोस्टकार्ड या हत्यारों की वीडियो गवाही?
1. प्रत्यक्षदर्शी बयान – क्या यह गवाही पर्याप्त नहीं?
जिन्होंने हमले को अपनी आंखों से देखा, जिन्होंने अपनों को मरते देखा, उन्होंने कहा – आतंकियों ने ‘कलिमा पढ़ने को कहा, धर्म पूछा, कपड़े उतरवाए’। ये गवाह कोर्ट में मान्य होते हैं, पत्रकारिता में सत्य माने जाते हैं, लेकिन राजनीति में इन्हें ‘संदेहास्पद’ कहकर खारिज कर दिया गया।
सवाल: अगर 10 जिंदा बचे लोग एक ही बात कह रहे हैं, तो सांसद साहब आप किस गवाही की प्रतीक्षा कर रहे हैं – किसी आतंकी के प्रेस कॉन्फ्रेंस की?
2. पीड़ित परिवार की पीड़ा – क्या विधवा की चीखें सबूत नहीं?
शुभम द्विवेदी की पत्नी की आंखों में जो खून के आँसू थे, क्या वो भी राजनीतिक चश्मे से नकली दिखते हैं? उन्होंने कहा, “मेरे पति को सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वो मुस्लिम नहीं थे।” इस बयान से बड़ा कौन सा प्रमाण चाहिए? या फिर पीड़िता को कांग्रेस कार्यालय में जाकर शपथपत्र देना होगा?
3. मीडिया रिपोर्ट्स’ हो या ‘India Today’, सभी ने लिखा – धर्म पूछा गया।
क्या अब ये सब मीडिया भी “भाजपा की शाखा” हो गए? जब हर रिपोर्ट कह रही है कि आतंकियों ने कलिमा पढ़वाया, तो इन रिपोर्ट्स को सिरे से नकारना क्या केवल राजनीतिक सुविधा नहीं है?
4. राजनीतिक प्रतिक्रिया बनाम मानवता – क्या सत्ताधारी ही सच्चे, विपक्ष भ्रमित?
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा: “यह धार्मिक आधार पर किया गया हमला है।” कई वरिष्ठ अधिकारी, यहां तक कि पुलिस ने भी परोक्ष रूप से इसकी पुष्टि की। लेकिन सांसद साहब कहते हैं – “प्रमाण नहीं हैं।”
यह कैसी राजनीति है, जहां खून के छींटे भी ‘सबूत’ नहीं होते जब तक वो वोटबैंक से मेल न खाएं?
5. और क्या प्रमाण चाहिए, सांसद साहब?
क्या एक आतंकवादी को टीवी पर बिठाकर इंटरव्यू करवाना चाहिए?
क्या मृतक शुभम के खून में DNA से धर्म प्रमाणित करके आपके सामने प्रस्तुत किया जाए?
या फिर, जब आपका अपना वोटबैंक मारा जाएगा, तभी आप कहेंगे – ‘हां, अब प्रमाण हैं’?
भारत की चेतना को मत कुंद करो
जब आतंकवादी भारत के हिंदू, सिख, ईसाई या किसी अन्य समुदाय को धर्म पूछ कर मारें, और हम यह कहें “सबूत नहीं हैं”, तो असल में हम आतंक को प्रमाण की आड़ में वैधता दे रहे होते हैं। सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल जैसे नेताओं को यह समझना चाहिए कि देश की आत्मा से बड़ा कोई दल नहीं होता।
प्रश्न जनता से – अब वक्त है पूछने का:
क्या हम सबूतों के नाम पर आंख मूंदे रहेंगे या इंसानियत के लिए आवाज़ उठाएंगे?
इक बेहद सरल प्रश्न है क्या भारत में सांसद साहब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद वर्षों से है अगर नहीं तो रेसिस्टेंस फ्रंट ने किस 27 लोगों को मारने की जिम्मेदारी क्यों ली ? जिससे बाद में मुकर आखिर चल क्या है कश्मीर में सालों से ? स्पष्ट करे