दौसा से डीडी बैरवा, झुंझुनू अमित ओला, खिंवसर से डॅा. रतन चौधरी सहित सातों सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित किये
5 सीटों पर मुकाबला कांग्रेस – बीजेपी के बीच
खिंवसर, चौरासी में मुकाबला त्रिकोणात्मक
लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। (नीरज मेहरा) राजस्थान में हो रहे सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है । हालांकि भाजपा इन सभी सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा पहले ही चुकी है , उन पर उम्मीदवारों ने प्रचार भी शुरु कर दिया है। चार सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार आज नामांकन भरेंगे। टिकट वितरण में बीजेपी से काफी पिछड़ने के बाद कांग्रेस ने सातों सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है। इन सात सीटो की बात करें तो 5 सीटों पर बीजेपी – कांग्रेस में सीधा मुकाबला होगा तो खिंवसर में रालोपा और चौरासी में बाप पार्टी का पलड़ा पहले दिन से ही भारी नजर आ रहा है। विधानसभा में मिलकर लड़ी बाप- आप, कांग्रेस, रालोपा उपुचनावों में एक-दूसरे पर जहर उगलती हुई वोट मांगेगी वहीं बीजेपी एक तरफा चुनाव लड़ेगी। बीजेपी के नेता एक तो गठबंधन में बिखराव से चुनाव परिणाम भी जरुर प्रभावित होंगे। बीजेपी के पास सात में एक ही सीट थी अब एक से ज्यादा जो भी जीतेगी उसके लिए फायदे का सौदा होगा जबकि कांग्रेस , रालोपा, बाप की एक भी सीट कम होती है उनके लिए घाटे का सौदा साबित होगा। लेकिन इन उपचुनावों विरोधी पार्टियां अपनी- अपनी ताकत टटोलना चाहती है, क्योंकि इन चुनाव नतीजों से न तो किसी की सरकार जा रही है और न ही विरोधियों की आ रही है। इसलिए सब खुलकर भड़ास निकालना चाह रहे है। इसलिए सभी चुनावों को अपने अपने नजरिय से लड़ रहे हैं।
बाप और रोलपा की हठधर्मिता के चलते नहीं हुआ गठबंधन
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हनुमान बेनिवाल की पार्टी रोलपा और आदिवासी पार्टी बाप से गठबधन के पक्षधर थे। कांग्रेस दोनों पार्टियों को एक- एक सीट देना चाहती थी। जिन पर उनका पहले से कब्जा है। लेकिन बाप के सांसद राजकुमार रोत तीन सीटें मांग रहे थे। इसी तरह से हनुमान बेनिवाल भी खिंवसर के साथ- साथ झुंझुनूं, देवली- उनियारा सीट पर भी दावा कर रहे थे। इसलिए कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने इसका विरोध किया। जिसके चलते कांग्रेस का बाप और रोलपा से गठबंधन नहीं हो सका।
भजनलाल न जाने वाले, न डोटासरा आने वाले ?
इन सातों सीटों पर होने वाले उपचुनाव से कांग्रेस और भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । क्योंकि न तो इन चुनाव से सरकार पर उल्टा असर पड़ने वाला नहीं है। कांग्रेस के चुनाव जीतने से उन्हे सत्ता मिलने वाली नहीं है। इसलिए दोनों पार्टियां ही इन चुनावों को खुलकर अपने- अपने कार्यकर्ताओं के दम पर लड़ना चाहती है जिससे दोनों को अपनी -अपनी ताकत का पता लग सके। जनता के मूड का पता लग सके। सात में से बीजेपी के पास एक ही सीट थी। ऐसे में यदि बीजेपी एक से ज्यादा जो भी सीट जीतती है तो ये उसके लिए सरकार की फरफोरमेंस का प्रतिफल होगा। इसलिए बीजेपी जरुर कांग्रेस, रोलपा, बाप से सीटें छिनने की कोशिश कर रही है। बीजेपी ने इस पर पूरी ताकत भी लगा रखी है। लेकिन यदि बीजेपी अपनी एक सीट भी जीतती है तो भी भजनलाल की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । क्योंकि बीजेपी के पास खोने को कुछ नहीं है पाने को 6 सीटें है। कांग्रेस में गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट अपने दम – खम को टटोलना चाहते है। इसलिए वे दोनों ही गठबंधन के विरोधी रहे।
भजनलाल सरकार का लिटमस टेस्ट?
राजस्थान में भजनलाल शर्मा की सरकार बने 1 साल हो चुका है हालांकि ये किसी सरकार के लिए लिटमस टेस्ट के पर्याप्त समय नहीं है। लेकिन फिर भी बीजेपी के नेता भी इसे सरकार की परीक्षा के तौर पर देख रहे हैं। सबसे खास बात है कि इन सात सीटों में से मात्र एक सीट ही बीजेपी की परम्परागत सीट है अन्य सीटें कांग्रेस के प्रभाव वाली है। दो सीटों पर बाप और रालोपा का कब्जा रहा है। इसलिए भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में होने वाले उपचुनाव में लिटमस टेस्ट जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन एक से ज्यादा जो भी सीटें बीजेपी जीतेगी व भजनलाल शर्मा के खाते में ही जाएगी। इसलिए बीजेपी इन सभी सीटों पर दमखम से चुनाव लड़ेगी।
कांग्रेस को पायलट और डोटासरा पर भरोसा
दौसा, देवली उनियारा, सीट सचिन पायलट तो झुंझुनूं, रामगढ़ , खिंवसर गोविंद सिंह डोटासरा के कंधों पर पार्टी ज्यादा भरोसा कर रही है। दौसा सीट पर कांग्रेस ने सचिन पायलट और सांसद मुरारी लाल मीणा के कहने पर ही प्रधान डीडी बैरवा को टिकट दिया है। दौसा सीट सचिन पायलट के प्रभाव वाली सीट रही है। यहा एससी का बाहुल्य है। पूर्व में दौसा सीट कई सालों तक एससी के लिए आरक्षित रही है। जहां पर बीजेपी के स्वर्गीय जिया लाल बंशीवाल और उनके छोटे भाई नंदकिशोर बंशीवाल विधायक रहे है्ं। स्वर्गीय सोहन लाल बंशीवाल भी यहां से विधायक रहे हैं। दौसा में कांग्रेस का मुकाबला डॅा. किरोड़ी लाल मीणा के छोटे भाई जगमोहन मीणा से होगा। यदि कांग्रेस भी मीणा को टिकट देती तो मीणा समाज के वोटों का बिखराव तय था। अब मीणा समाज का वोट एक तरफा जाएगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने बीच का रास्ता निकालते हुए बैरवा समाज के डीडी बैरवा को उम्मीदवार बनाया है । जिसे बैरवा समाज और कांग्रेस का तो परम्परागत वोट मिलेगा ही। दूसरे समाजों के वोट भी मिलेगा। क्योंकि लोगों का मानना है कि डीडी बैरवा के चुनाव जीतने से कानून व्यवस्था पर कोई उल्टा फर्क नहीं पड़ने वाला है। हालांकी दोनों ही पार्टियों के सामान्य सीट से आरक्षित वर्ग के लोगों को टिकट दिये जाने से नाराजगी जरुर है। दौसा के कई सालों तक बंशीवाल परिवार से विधायक रहे जो सभी को साथ लेकर चलते रहे थे। ऐसे में डीडी बैरवा को भी 36 कौम का साथ मिलेगा। सबसे खास बात है की डीडी बैरवा के पिता पूर्व प्रधान स्वर्गीय राजेश पायलट के परम भक्तों में थे। खुद डीडी बैरवा को भी सचिन पायलट और मुरारी मीणा का सबसे प्रबल समर्थक माना जाता है। पिछले चुनावों में डीडी ने ही मुरारी के चुनावों के दौरान एससी वोटों को लामबद्द करने का काम किया था। एससी के वोटों में डीडी की पहचान दमदार है। युवाओं की फौज उनके पीछे पागल है। ऐसे में दौसा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला कांटे का होगा। यदि पायलट और मुरारी मीणा का दिल से डीडी बैरवा को समर्थन मिला तो यहां डीडी बैरवा जगमोहन मीणा पर भारी पड़ सकते हैं ।
झुंझुनूं में भी पायलट और डोटासरा का असर
झुंझुनूं सीट पर कांग्रेस ने शीशराम ओला के पोते अमित ओला को टिकट दिया है। इनके पिता बृजेंद्र ओला सचिन पायलट के समर्थक माने जाते हैं। ऐसे में इस सीट पर पायलट और डोटासरा का सीधा असर रहेगा। इन दोनों नेताओँ की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। हालांकि ये सीट कांग्रेस की परम्परागत सीट मानी जाती है। यहां पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने का दम- खम रखते है। यहां अमित ओला का मुकाबला बीजेपी के राजेंद्र भांबू से होगा।
रामगढ- आर्यन जूबेर और सुखवंत सिंह के बीच मुकाबला
रामगढ़ सीट पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा। यहां कांग्रेस के आर्यन जूबेर और बीजेपी के सुखवंत सिंह के बीच कांटे की टक्कर होगी। आर्यन जुबेर दिंवगत विधायक जुबेर खाने के बेटे है, तो सुखवंत बीजेपी के संघर्षशील नेता है जो पिछले चुनावों में तीसरे नंबर पर रहे थे।
देवली -उनियारा में राजेंद्र गुर्जर और कस्तुरचंद मीणा में मुकाबला
देवली उनियारा सीट पर कांग्रेस ने हरीश मीणा की सिफारिश पर केसी मीणा को टिकट दिया है। यहां बीजेपी के पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर के बीच मुकाबला होगा। राजेद्र गुर्जर पूर्व विधायक है। ऐसे में उनका मुकाबला कस्तुर चंद मीणा से होना है।
खिंवसर- बीजेपी कांग्रेस और रालोपा के बीच मुकाबला
खिंवसर सीट पर पिछले तीन बार से रालोपा का विधायक ही बन रहा है। खिंवसर हनुमान बेनिवाल का गढ रहा है। ऐसे मे इस सीट पर कांग्रेस की डॅाै. रतने चौधरी, बीजेपी के रेंवतराम डागा और रालोपा के बीच ही मुकाबला होगा। कांग्रेस के डॅा. रतन चौधरी को उम्मीदवार बनाने से हनुमान बेनिवाल की राह थोड़ी कठिन लग रही है।
सलुंबर कांग्रेस- बीजेपी के बीच मुकाबला
सलुंबर सीट पर कांग्रेस की रेशमा मीणा, बीजेपी की शांता मीणा का मुकाबला बाप पार्टी के उम्मीदवार से होगा। यहां बाप की हठधर्मिता के चलते कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया है। ऐसे में यहां बीजेपी पहले से ही मजबूत है । इस सीट पर अधिकांश समय बीजेपी के ही उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे है। अमृत लाल मीणा की मौत के बाद उनकी पत्नी को टिकट दिया गया है। यहां बीजेपी काफी मजबूत है।
चौरासी सीट पर मुकाबला त्रिकोणात्मक
चौरासी सीट पर मुकाबला त्रिकोणात्मक होगा। यहां पर बाप पार्टी मजबूत है। यहां कांग्रेस ने महेश रोत को चुनाव मैदान में उतारा है तो भाजपा ने अभी पत्ते नहीं खोले है। लेकिन इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणात्मक होना तय है।
राजस्थान की सात सीटों पर होने जा रहे विधानसभा चुनावों में 5 सीटों पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है तो दो सीटों में से एक सीट चौरासी पर बाप और खिंवसर में रालोपा मजबूत दिख रही है। सभी पार्टियां अपनी – अपनी जीत के दावे कर रही है। लेकिन सभी पार्टियां इन चुनावों में खुलकर खेल रही है। सभी अपनी- अपनी ताकत को आजमाना चाहती है। इसलिए बीजेपी को छोड़कर कोई भी पार्टी इन चुनावों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। खासतौर जो पार्टियां विधानसभा चुनावों में एक साथ मैदान मे थी वे अब बिखरी- बिखरी नजर आ रही है। बाप,रालोपा और कांग्रेस एक दूसरे के खिलाफ वोट मांगेगी वहीं बीजेपी इन तीनों पार्टियों के खिलाफ सिर्फ अपने लिए वोट मांगेगी। विरोधी पार्टियों के बिखराव का फायदा बीजेपी को कई सीटों पर मिल सकता है।