प्रतापागढ़ । (प्रियंका माहेश्वरी) खबर प्रतापगढ़ जिले के ग्राम पंचायत असावता के गाँव रामगढ़ से है ,जहां सरकार के आदेशों के बावजूद अभी तक ग्राम पंचायत ग्रामीणों की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लिए शमशान के निर्माण और विकास में भी कोताई बरत रही है । हाल ही में गाँव के एक बुजुर्ग वक्ति की मृत्यु हो जाने पर मृतक के परिजनों को और रिश्तेदारों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा ।गांव वालों को श्मशान घाट तक जाने के लिए कीचड़ से होकर गुजरना पड़ा, क्योंकि शमशान जाने वाले रास्ते में आसपास कुछ लोगों ने कब्जे कर रखे हैं और जो रास्ता है उसमें कीचड़ भरा हुआ था। जहां अंतिम संस्कार होना था शमशान घाट पर वहां पर न तो किसी तरह का चबूतरा बना हुआ था ,न, हीं टीन सैड लगा हुआ था। ऐसे में बरसात के दिनों में किसी की मौत होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए गांव वालों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है ।लोगों का कहना है कि अधिकांश गांव में पंचायत की ओर से विकसित शमशान घाटों का निर्माण किया गया है ।जिससे कि मरने के बाद अंतिम संस्कार किया जा सके। लेकिन इस ग्राम पंचायत में कुछ लोग नहीं चाहते कि शमशान घाट का विकास हो, कुछ लोगों ने सरपंच और सचिव पर दबाव बना रखा है, जिससे कि वह यहां विकास कार्य नहीं कर रहा है ।जिसके चलते लोगों को अंतिम संस्कार के लिए और शव नहीं जलने पर टायर और मिट्टी के तेल तक का उपयोग करना पड़ता है । कई बार तो पेट्रोल बिछड़ना पड़ता है कई बार चीनी भी डालनी पड़ती है ।इस तरह से शव का अपमान ही होता है। लेकिन सरपंच और सचिन इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे जिससे लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है।
पंचायत के सचिव और सरपंच इस बात को नज़र अन्दाज़ कर के स्वार्थी बने बैठे हैं । गाँव के लोग इनके पास कोई भी विकास और अपनी तकलीफ़ों की बात लेकर जाते है तो ये पद पर बैठे सचिव और सरपंच गाँव के लोग औरतों के साथ बदसूलती करते है व उन्हे धमका कर भगा देते है ।
शमशान का विकास नहीं करना जातिवादी सोच का परिणाम
लोगों ने बताया कि आज भी लोग जातिवाद की मानसिक कुंठा से इतनी कुंठित है ,कि वह दलित आदिवासियों को इंसान नहीं मानते हैं । जानबूझकर उनके साथ इस तरह का भेदभाव करते हैं। श्मशान घाट जाने का रास्ता साफ सुथरा हो،, श्मशान घाट में टीन सैड लग जाए, चबूतरा बन जाए ,तो मरने के बाद उन्हें अच्छे तरीके से लकड़ी नसीब हो जाए ।लेकिन कुछ लोग सरपंच और सचिव को काम ही नहीं करने देते । वह उनको दलित, आदिवासी, इलाके में विकास के काम करने से रोकते हैं, जिसके चलते इस वर्ग के लोगों को मरने के बाद भी सही तरीके से लकड़ी तक नसीब नहीं होती है ।वहां भी उन्हें परेशानी से दो दो हाथ करने पड़ते हैं।