शाहपुरा। (रमेश पेसवानी ब्यूरो चीफ)
शाहपुरा में सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और नई पीढ़ी में पारंपरिक नृत्य के प्रति रुचि जागृत करने के उद्देश्य से कत्थक कलाकार अर्पिता भारद्वाज की अगुवाई में कार्यशाला का आयोजन किया गया। आठ दिवसीय कार्यशाला में कत्थक नृत्य के बारे में प्रशिक्षण दिया गया।
कत्थक कलाकार अर्पिता भारद्वाज ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य जिले में कला और संस्कृति को बढ़ावा देना है। कत्थक कलाकार अर्पिता भारद्वाज ने कहा, कत्थक भारत की प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है, और हमें गर्व है कि शाहपुरा में इस अद्वितीय कला को सीखने का अवसर प्रदान किया जा रहा है।
कार्यशाला में शामिल होने वाले प्रतिभागियों में युवतियां व छात्राएं शामिल रही। प्रशिक्षक प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना अप्रिता भारद्वाज जो अपनी कला के क्षेत्र में महारत रखती हैं। सत्र में कत्थक कलाकार अर्पिता भारद्वाज ने कत्थक की उत्पत्ति, उसके इतिहास और महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, कत्थक केवल एक नृत्य नहीं है, यह एक कहानी कहने की कला है। इसमें भावनाओं और मुद्राओं के माध्यम से कथाएँ प्रस्तुत की जाती हैं। प्रतिभागियों ने उनके निर्देशन में विभिन्न नृत्य मुद्राओं और तालों को सीखा और अभ्यास किया।


दूसरे सत्र में कत्थक के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने घुंघरू बांधने से लेकर ताल और लय के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, कत्थक में लय और ताल का बहुत महत्व है। यह नृत्य का आधार है और इसे समझना और उसमें महारत हासिल करना बहुत जरूरी है। कार्यशाला के तीसरे दिन, प्रतिभागियों को समूहों में विभाजित किया गया और उन्हें विभिन्न रचनाओं पर प्रदर्शन की तैयारी करने का मौका दिया गया। इन रचनाओं में भगवान कृष्ण की लीलाओं, राधा-कृष्ण के प्रेम और महाभारत की कहानियों को प्रस्तुत किया गया।
कत्थक कलाकार अर्पिता भारद्वाज ने कहा कि हमारे जिले में इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारी युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का एक उत्तम माध्यम है। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएँ बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाने और उन्हें अपने कला कौशल को निखारने का मौका देती हैं।
कत्थक कलाकार अर्पिता भारद्वाज ने कहा, हमारा उद्देश्य कत्थक जैसी प्राचीन और समृद्ध नृत्य शैली को नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाना है। इस कार्यशाला के माध्यम से हमें विश्वास है कि हम इस उद्देश्य में सफल होंगे।
शाहपुरा में आयोजित इस कत्थक कार्यशाला ने स्थानीय समुदाय में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है। यह आयोजन निश्चित रूप से जिले की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती प्रदान करेगा और नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूक बनाएगा।

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