राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अंबेडकर को भूली, एक बार भी नहीं लिया नाम

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जयपुर । भारत की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू का शपथ ग्रहण संपन्न हो गया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। मुर्मू ने हिंदी में शपथ ली और ईश्वर के नाम पर शपथ ली। जय जोहार से उनका भाषण शुरू हुआ ।जय जोहार से उन्होंने आदिवासी संस्कृति को जीवंत करने की कोशिश की । लेकिन अपने भाषण में उन्होंने एक बार भी बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम लेना उचित नहीं समझा। कहा की है भारतीय लोकतंत्र की खूबी है जहां पर एक गरीब, आदिवासी, सामान्य व्यक्ति भी इतना बड़ा सपना देख सकता है और राष्ट्रपति पद पर सुशोभित हो सकता है ।लेकिन उन्होंने इस बीच एक बार भी संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम लेना तक उचित नहीं समझा, जिनकी बदौलत जिनके संविधान की बदौलत वह आज इस देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुई है । संविधान बनने से पूर्व भारत में न तो महिलाओं को इस तरह के राजनीतिक सामाजिक अधिकार नहीं थे संविधान में ही महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिला और जिस राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुई है वह भी संविधान की सर्वोच्च पोस्ट है ऐसे में 1 घंटे के भाषण में कम से कम एक बार तो वह बाबा साहब को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दे सकती थी । जाहिर सी बात है कि मुर्मू का डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को याद नहीं करना कहीं न कहीं इस बात को साबित करता है कि उनके पूरे भाषण में आदिवासियों वोट बैंक ही केंद्रित रहा। रहना भी चाहिए था इसके लिए उन्होंने जय जोहार ke के का प्रयोग जरूर किया, लेकिन भीमराव अंबेडकर को याद करना उचित नहीं समझा। यहां तक कि वह देश के जिस संवैधानिक पद पर आसीन हुई है ,उस संविधान का नाम तो कम से कम पूरे भाषण में एक बार तो ले लेती सबको अच्छा लगता। लोकतंत्र भी उसी संविधान के आधार पर चल रहा है। जिस संविधान की बदौलत वह आज इस पद पर आसीन हुई है, यह कमी कहीं न कहीं लोगों को जरूर खली। लोगों को उम्मीद है कि वह संविधान सम्मत की काम करेगी ।गरीब, गुरबा, दलित, आदिवासियों,महिलाओं, अल्पसंख्यको , बहुसंख्यक वर्ग के हितों के साथ और सभी वर्गों का ख्याल इस पद पर रहते हुए रखेंगी। भारतीय संविधान को अक्षुण्ण बनाए रखेंगी, जिस संविधान पर वर्तमान में सबसे ज्यादा खतरा माना जा रहा है।

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