नई दिल्ली। राजनीतिक पार्टियों की वोटों के ध्रुवीकरण के लिए किसी भी एक जाति या वर्ग के खिलाफ इस तरह से करना कहां तक उचित है। भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में जाट समाज को टारगेट किया गैर जाट को तो पंजाब में सिखों का टारगेट करते हुए गैर सिख को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही। तो उत्तराखंड में गैर रावत और उत्तर प्रदेश में गैर यादव और गैर जाटव के खिलाफ राजनीति कर रही है। बीजेपी की ये रणनीति अब लोग पहचानने लगे है। कुछ अल्प समय के लिए ही सही इससे एक समाज – जाति या धर्म के खिलाफ वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है लेकिन उस जाति के खिलाफ प्रदेशभर में किया गया ध्रुवीकरण हमेशा नुकसान ही देता है। ऐसा आरोप है कांग्रेस – सपा और बसपा नेताओँ का। बीजेपी विरोधी पार्टियों के नेताओं का कहना है कि बीजेपी वोटों के ध्रुवीकरण के लिए न केवल हिंदू- मुस्लिम कर रही है बल्कि जातियों में भी बहुसंख्यक जाति के खिलाफ अन्य जातियों को लामबद्द करके सत्तासीन होने का काम कर रही है। जिससे उस जाति को जिस तरह से टारगेट किया जाता रहा है वो ज्यादा खतरनाक है। इसलिए बीजेपी या अन्य जो भी पार्टियां इस नीति पर चल रही है उन्हें हो सकता है अल्पकालीन फायदा मिल रहा हो लेकिन दीर्घकालीन नुकसान ही होना तय है। बीजेपी के शीर्षस्थ नेताओं को इस पर मंथन करना चाहिए। आखिर इस तरह की रणनीति से एक – दो बार तो सत्ता हासिल की जा सकेगी लेकिन जब सब लोग ये बात समझने लगेगी तो फिर ताश के पत्तों की तरह आप भी धरातल पर होंगे ये भी तय मान लो।