भाला फैक सोना जीतने वाला पूर्व फौजी दर- दर भटकने को मजबूर

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धौलपुर। ( मुनेश धाकरे ) धौलपुर जिले में किराए के मकान में परिवार के साथ रह रहे आर्मी के रिटायर्ड कैप्टन दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं.यही नहीं रिटायर्ड कैप्टन ने सत्र 1984 में हुए नेशनल गेम्स और अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाला फेंक में देश को सोना भी दिलाया है। आर्मी में खेलते समय कैप्टन सरनाम सिंह ने देश को सात पदक जीते। जिसमें स्वर्ण पदक,रजत,कांस्य पदक शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के फतेहाबाद तहसील के रहने वाले इस पुराने स्पोर्ट मैन की व्यथा सुन कर दिल पसीज जाएगा। एक वर्ष पूर्व गांव से पलायन कर धौलपुर शहर में सरनाम सिंह अपने परिवार के साथ वनवास जैसा जीवन काट रहा हैं। सरनाम सिंह को गांव के दबंग पड़ौसियों द्वारा इतना परेशान और प्रताड़ित किया कि वह जमीन जायदाद और सब कुछ छोड़कर धौलपुर आ गया और शहर के ओडेला रोड पर किराए का मकान लेकर उसमें अपने परिवार के साथ रहकर गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। देश को भाला फेंक प्रतियोगिता में कई पदक दिलाने वाला आर्मी का रिटायर्ड कैप्टन गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर है।       देश को भाला फेंक प्रतियोगिता में कई पदक दिलाने वाला आर्मी का रिटायर्ड कैप्टन सरनाम सिंह पुत्र दीवान सिंह निवासी ग्राम अई,तहसील फतेहाबाद,जिला आगरा उत्तर प्रदेश जो धौलपुर शहर के ओडेला रोड पर स्थित दुर्गा कॉलोनी में किराए के मकान में गुमनामी का जीवन जी रहा है।

सरनाम सिंह 18 सितंबर 1970 को आर्मी में सैनिक के रूप में भर्ती हुए थे। सेना में भर्ती होने के बाद उनका बचपन से खेलों की तरफ भी रुझान था। हुनर को देख आर्मी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें खेलने के लिए मौका दिया। आर्मी की तरफ से उनको 1982 में नेशनल गेम्स खेलने का मौका मिला। लेकिन घायल होने के बाद उनका चौथा स्थान रहा और पदक से काफी दूर रह गए। सरनाम सिंह ने हिम्मत, हौसला और जुनून को बरकरार रखते हुए 1984 में नेपाल के काठमांडू में साउथ एशियन प्रतियोगिता में 78 मीटर 58 सेंटीमीटर भाला फेंक में पहला स्थान हासिल कर देश को गोल्ड मेडल दिलाया। सरनाम सिंह का सफर यहीं तक नहीं रुका और आर्मी की तरफ से देश में लगातार खेलने के मौके उन्हें मिलते रहे। इंडोनेशिया,जकार्ता,जर्मनी,पाकिस्तान सहित अन्य देशों में सिल्वर एवं कांस्य पदक हासिल कर देश को मेडल दिए। नेशनल प्रतियोगिताओं में सरनाम सिंह ने सात गोल्ड मेडल हासिल किए थे। तत्कालीन समय में सुविधा और संसाधनों का अभाव होने पर हुनर के अनुरूप सरनाम सिंह परिणाम नहीं दिखा सके। लेकिन भाला फेंक प्रतियोगिता में जहां भी हिस्सा लिया,सभी को लोहा मनवा दिया। जैसे-जैसे सरनाम सिंह को खेलो में कामयाबी मिलती गई,उसी प्रकार आर्मी उन्हें प्रमोशन भी देती रही। सैनिक से भर्ती हुए सरनाम सिंह एक अक्टूबर 2001 को कैप्टन के पद से रिटायर्ड हो गए। अपने गांव पहुंचने के बाद सरनाम सिंह को दबंग पड़ोसियों ने परेशान करना शुरू कर दिया। जमीनी विवाद को लेकर पड़ोसियों से उनके परिजनों से झगड़ा हुआ था। झगड़े के दौरान उनके भतीजे का भी नाम हत्या के मुकदमे में लिखा दिया गया। पड़ोसियों द्वारा सरनाम सिंह को भी परेशान और प्रताड़ित किया जाने लगा। उनके खेत और जमीन पर दबंग पड़ोसियों ने कब्जा कर लिया। खेतों पर लगे ट्यूबवेल को भी तहस-नहस कर दिया गया। काफी परेशान होने के बाद सरनाम सिंह ने उत्तर प्रदेश के आगरा प्रशासन को कई वार शिकायत पत्र देकर अवगत कराया। लेकिन प्रशासन द्वारा दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। न्याय नहीं मिलने पर सरनाम सिंह एक वर्ष पूर्व अपनी पत्नी और बच्चों को साथ लेकर धौलपुर शहर में किराए के मकान में रहकर गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। सरनाम सिंह का कहना हैं कि देश के युवा ऊर्जावान खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक खेल में स्वर्ण पदक हासिल कर देश को शिखर पर पहचान दी है। अगर सरकार उनको मौका दें तो प्रतिभाओं को निखार कर देश की सेवा कर सकते हैं।      रिटायर्ड कैप्टन सरनाम सिंह ने बताया कि गांव अई में दबंग पड़ोसियों द्वारा इतना प्रताड़ित किया गया कि हालात बिगड़ सकते थे। देश के प्रधानमंत्री बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और मेरा उनसे यही आग्रह हैं कि मेरे गांव अई में मेरी जमीन जायदाद मुझे वापिस दिलाई जाए और आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

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