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अंग प्रत्यारोपण की स्वीकृति में रिश्वत का गंदा खेल, नामचिन अस्पतालों में हो रहा था खेला

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जयपुर। लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट से जीवनदान मिल सके सरकार की अच्छी पहल को किस तरह से सरकारी कर्मचारी निजी अस्पतालों के संचालकों से मिलकर लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे थे ,इसका खुलासा हुआ एसीबी की जांच में। दरअसल जिन निजी अस्पतालों में फाइव स्टार सुविधा मिलती है ,उन अस्पतालों में लोग अपने लोगों के इलाज कराना स्टेटस सिंबल समझते हैं , उन अस्पतालों में भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट का गंदा खेल चल रहा था।

राजस्थान के फॉर्टिस, ईएचसीसी, नारायण मल्टी स्पेशलिटी, इंटरनल हॉस्पिटल, मणिपाल हॉस्पिटल ,रूकमणि बिरला ,संतोतबा दुर्लभजी मेमोरियल , अपेक्स हॉस्पिटल, मोनोलाइट हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, महात्मा गांधी , निम्स, उदयपुर का गीतांजलि हॉस्पिटल، जोधपुर का एम्स, श्री गंगानगर के आस्था किडनी एवं जनरल अस्पताल। इन सबमें अंग प्रत्यारोपण की स्वीकृति थी और यही सब अस्पताल सरकारी अस्पतालों से तालमेलकर अंग प्रत्यर्पण कर लोगों को जीवनदान देते थे। इनमें बहुत सारे नामचिन अस्पतालों के प्रति लोगों में भरोसा भी है कि यहां भर्ती करने के बाद में उन्हें इलाज मिल सकेगा। लेकिन एसीबी ने इस मामले में जब कार्रवाई की तो एसएमएस अस्पताल के सहायक प्रशासनिक अधिकारी गौरव सिंह को गिरफ्तार किया। गौरव सिंह पिछले 3 साल से निजी अस्पतालों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की एनओसी बांट रहा था। जबकि स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट कमेटी की पिछले 1 साल में मीटिंग तक नहीं हुई। स्टेट कमेटी ने पिछले 1 साल में किसी भी निजी अस्पताल को एक भी एनओसी जारी नहीं की, जबकि आरोपी गौरव 75 फर्जी एनओसी प्रदेश के निजी अस्पतालों को बांट चुका था। सवाल यह की राजधानी में अंगों की खरीद का यह गोरखधंधा तो नहीं चल रहा है । क्योंकि ट्रांसप्लांट करवाने वालों में नेपाल और बांग्लादेश के मरीज भी शामिल है ,जो लोग पैसे वाले हैं वह पैसा देकर भी ट्रांसप्लांट करवा रहे थे । निजी अस्पतालों में लोग मोटी रकम देकर भी ट्रांसप्लांट करवा रहे थे और निजी अस्पतालों के कई कर्मचारी भी इस मामले में सम्मिलित पाए गए हैं ,जो एसएमएस अस्पताल के सहायक अधिकारी गौरव सिंह को प्रति मरीज 35000 रुपए की रिश्वत देकर अंग प्रत्यारोपण की स्वीकृति की NOC ले रहे थे ।जाहिर सी बात है कि जब निजी अस्पताल ऐसा कर रहे थे तो वह निश्चित तौर पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट के नाम पर अंगों की खरीद प्राप्त कर रहे थे ।

हेमंत प्रियदर्शी एसीबी अधिकारी

एसीबी की जांच में अब तक ट्रांसप्लांट यूनिट के कर्मचारियों और निजी अस्पतालों के कोऑर्डिनेटर की मिली भगत सामने आई है । निजी अस्पतालों की भूमिका संदिग्ध मिला है। ऐसे में ईएचसीसी और फॉर्टिस हॉस्पिटल के ऑर्गन ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर विनोद कुमार और अनिल जोशी को गिरफ्तार किया गया है ।उन्हें सस्पेंड भी कर दिया गया है। एसीबी के डीजी राजीव शर्मा का कहना है कि ऐसा पहला मामला सामने आया है जिसके लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया है। 20 दिनों तक निगरानी रखी गई। तकनीकी सर्विलेंस किया गया और काफी कुछ पकड़ में भी आया है। वहीं एसीबी के डीआईजी डॉक्टर रवि ने बताया कि 20 दिन पहले एसएमएस हॉस्पिटल के उच्च स्तरीय प्रबंधन ने सूचना दी की शहर के कई अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए गए। लेकिन इसके लिए एसएमएस की कमेटी से किसी को एनओसी जारी नहीं की है। शहर में चल रही खबरों के बाद उन्होंने यह शिकायत की । इसके बाद एसीबी की स्पेशल टीमों ने निगरानी शुरू की और सहायक प्रशासन अधिकारी गौरव सिंह को चिन्हित कर पूछताछ की गई। वह नगद पैसों के साथ कई एनओसी जारी करने के लेटरॉन के साथ पकड़ा गया, जिसे राजस्थान सरकार ने बर्खास्त भी कर दिया। गौरव का फोन सर्विलांस पर लिया गया तो सामने आया कि वह शहर के कई निजी अस्पतालों के कर्मचारियों से संपर्क में था। इस बीच गौरव ने फॉर्टिस अस्पताल की विनोद सिंह से पैसे लेकर फर्जी एनओसी दे दी । इसी तरह रविवार रात को गौरव ने ईएचसीसी के अनिल को पैसे लेकर मानसरोवर स्थित घर बुलाया, तब एसीबी ने दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया । उनका कहना है कि भ्रष्टाचार अधिनियम के साथ-साथ धोखाधड़ी सहित आईपीसी की अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाएगा ,जिसमें अस्पताल प्रबंधन की भूमिका की जांच की जाएगी । स्टेट अंग प्रत्यारोपण कमेटी में एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ,अधीक्षक, क्रोमा इंचार्ज सहित 6 डॉक्टर और दो एनजीओ सदस्य शामिल है । अस्पताल प्रशासन की जांच कर एसएमएस की कमेटी के पास भेजते हैं ।कमेटी दस्तावेजों की जांच के बाद दाता व रिसीवर से इंटरव्यू लेकर एनओसी जारी करती है । अगर डोनर ब्लड रिलेशन में न होकर रिश्तेदार होता है तो कमेटी जिला प्रशासन की मदद से बैंक खातों की जांच करवाती है। प्रशासन रिपोर्ट बनाकर कमेटी को भेजते हैं और फिर एनओसी जारी की जाती है ।लेकिन यहां तो गौरव सिंह अकेला ही अपने दम पर सब कुछ कर रहा था। जिससे पूरा मामला संदिग्ध लगता है और इस मामले में ऐसा लगता है कि गौरव सिंह ने अस्पतालों के साथ मिलकर यह एनओसी जारी कर रहा था । निजी अस्पताल भी मोटी रकम लेकर अंग प्रत्यारोपण करवा रहे थे। जहां तक बात गौरव सिंह के कार्यालय और घर में तलाशी के दौरान एसीबी को कार्यालय में 16, घर में 75 कंप्लीट और 175 अनकंप्लीट NOC मिली है। इन्हें जप्त कर संबंधित अस्पताल से रिकॉर्ड की जांच होगी ।आशंका की विदेशी मरीजों के ट्रांसप्लांट करने और लंबी कागजी कार्रवाई से बचने के लिए निजी स्तर फर्जी एनओसी दिलवा रहे थे। जांच में सामने आया कि अस्पताल प्रबंधन मरीजों के परिजनों को दानदाता लाने के लिए बोलते थे उसके बाद जल्दी ऑपरेशन के अतिरिक्त पैसे लेकर फर्जी एनओसी लेते थे। संभावना है कि जयपुर में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के नाम पर खरीद परोख्त चल रही हो, क्योंकि एक तरफ तो आकस्मिक मौत होने पर या दुर्घटना में मौत होने पर लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित किया जाता था। जिससे दूसरे जरूरतमंद लोगों को जीवनदान मिल सके, वहीं जिनके अंग प्रत्यारोपण पर होना था उन्हें इसके लिए तैयार करते थे लेकिन जो जरूरतमंद थे उन्हें अंग प्रत्यारोपण पर नहीं करके जो ज्यादा पैसा देता था जो इस सिस्टम से जुड़े हुए लोगों की जब भरता था अंग प्रत्यारोपण उन्हें के होते थे ऐसा संभावना मानी जा रही है जाहिर सी बात है किस अंग प्रत्यारोपण के नाम पर ठगी का खेल चल रहा था।

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