जयपुर जयपु
इस मंदिर के इतिहास बारे बताया जाता हैं की मन्दिर में विराजमान महालक्ष्मी जी प्रतिमा लगभग 1100 साल पुरानी है, और यह प्रतिमा माणक पत्थर पर (RUBY) बनी हुई हैं माता की प्रतिमा को मणिमंडप का स्वरूप दिया हुआ है माता समुद्रतल से निकले कमलासन पर गज लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं
मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है आमेर रियासत के राजघराने ने जयपुर बसाने के लिए सबसे पहले एक टकसाल का निर्माण किया गया जिसके लिए महालक्ष्मी का आव्हान कर माता महालक्ष्मी मूर्ति स्थापित की गई
इस टकसाल में सोने एवं चांदी के सिक्के और मोहर बनाई जाती थी आसपास की सभी रियासतों का राजकोष इस टकसाल में निर्माण किया जाता था राजकोष का पहला सिक्का या पहली मुद्रा माता को भेंट स्वरूप चढ़ाई जाती थी एवं उसके बाद में राजघराने के राजकोष में बाकी का धन जमा होता था राजकोष बनाने के लिए दक्षिण अफ्रीका,यूरोप फ्रांस, इटली से सोना चांदी और खेतड़ी से तांबा आता था
माता का मंदिर टकसाल के दरवाजे के ऊपर बना हुआ है एवं मंदिर परिसर बहुत ही छोटा है इस परिसर में सेना का सख्त पहेरा हुआ करता था
मन्दिर परिसर में किसी भी बाहरी आदमी का आना जाना वर्जित था
महालक्ष्मी माता की दर्शन की अनुमति किसी भी आम जनता की नही थी केवल राज घराने के सदस्य,या जागीरदार परिवार माता के दर्शन कर सकते थे
वर्तमान में मन्दिर सभी के लिए खुला हुआ है प्रत्येक शुक्रवार को शाम में माता की महा आरती का आयोजन किया जाता है जिसमे सभी लोग शामिल होते हैं
प्रत्येक माह के पुष्य नक्षत्र पर माता महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक ,पूजा, अनुष्ठान किया जाता था
एवं माता का दरबार गज लक्ष्मी के रूप में विराजमान है मान्यता है की माता के दरबार में आने से और अपनी मनोकामना रखने से माता जरूर से भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है