अनार की खेती
धौलपुर। (पिन्टू लाल मीना सहायक कृषि अधिकारी सरमथुरा धौलपुर ) अनार की खेती एक किसान की किस्मत बदल सकती है । किसान के साथ साथ आम आदमी अपनेेेेे घर के बगीचे में भी अनार के पेड़ लगा सकते हैं। औषधियों से भरपूर अनार की हमेशा ही मांग बनी रहती है और भाव भी अच्छे मिलते हैं। ऐसे में यदि कोई किसान अनार की खेती को अपनाना चाहिए तो अनार की खेती को लेकर सहायक कृषि अधिकारी पिंटू लाल मीणा केे ये सूूूझाव बहुत ही कारगर कारगर सिद्ध हो सकते हैं ।
अनार का रस स्वादिष्ट तथा औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
अनार को सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक और पोषक तत्वों से भरपूर फल माना जाता है। अनार में मुख्य रूप से विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड और एंटी ऑक्सीडेंट पाये जाते है।
इसके अलावा, एंटी-ऑक्सीडेंट भी इस फल में बहुतायत में होता है।
जलवायु
अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा है। यह अर्द्ध शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगाया जा सकता है। फलों के विकास एवं पकने के समय गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।. फल के विकास के लिए इष्टतम तापमान 38 डिग्री सेल्सिअस है.
मृदा:-
अनार की खेती अच्छे के लिए जल निकास वाली रेतीेली दोमट मिट्टी सर्वोतम होती है। फलों की गुणवत्ता एवं रंग भारी मृदाओं की अपेक्षा हल्की मृदाओं में अच्छा होता है।
किस्में
- गणेश:- इस किस्म के फल मध्यम आकार के बीज कोमल तथा गुलाबी रंग के होते हैं। यह महाराष्ट्र की मशहूर किस्म है।
- ज्योति:- फल मध्यम से बड़े आकार के चिकनी सतह एवं पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं। एरिल गुलाबी रंग की बीज मुलायम बहुत मीठे होते हैं।
- मृदुला:- फल मध्यम आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं। एरिल गहरे लाल रंग की बीज मुलायम, रसदार एवं मीठे होते हैं। इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है।
- भगवा:- इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा रंग के चिकने चमकदार होते हैं। एरिल आकर्षक लाल रंग की एवं बीज मुलायम होते हैं। उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 30 – 40 कि.ग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म राजस्थान एवम् महाराष्ट्र में बहुत उपयुक्त मानी जाती है।
- अरक्ता:- यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है। फल बड़े आकार के, मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं। एरिल लाल रंग की एवं छिल्का आकर्षक लाल रंग का होता है। उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 25-30 कि.ग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है।
6.कंधारी:- इसका फल बड़ा और अधिक रसीला होता है, लेकिन बीज थोड़ा सा सख्त होता है।
अन्य किस्मे रूबी, करकई , गुलेशाह , बेदाना , खोग और बीजरहित जालोर आदि।
पौधे लगाने का समय:-
अनार के पौधों को लगाने का उपयुक्त समय भी अगस्त – सितम्बर या फरवरी-मार्च होता है।
गड्डा खुदाई एवम् भराई:-
पौध रोपण के एक माह पूर्व 60 X 60 X 60 सेमी. (लम्बाईचौड़ाईगहराई.) आकार के गड्ढे खोदे तत्पश्चात गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद 1 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट .50 ग्राम क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिट्टी में मिलाकर गड्डों को सतह से 15 सेमी. ऊंचाई तक भर दें।गड्ढे भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए तदुपरान्त पौधों का रोपण करें एवं रोपण पश्चात तुरन्त सिचाई करें।
पौध रोपण:-
सामान्यतः5 X 5 या 6 X 6 सघन विधि में बाग़ लगाने के लिए 5 X 3 मीटर की दूरी पर अनार का रोपण किया जाता है। सघन विधि से बाग़ लगाने पर पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ सकती है। इसमें लगभग 600 पौधे प्रति हैक्टयर लगाये जा सकते है।
सिंचाई
अनार एक सूखा सहनशील फसल हैं। मृग बहार की फसल लेने के लिए सिंचाई मई के माह से शुरु करके मानसून आने तक नियमित रूप से करना चाहिए। वर्षा ऋतु के बाद फलों के अच्छे विकास हेतु नियमित सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। बूँद – बूँद सिंचाई अनार के लिए उपयोगी साबित हुई है।इसमें 43 प्रतिशत पानी की बचत एवं 30-35 प्रतिशत उपज में वृद्धि पाई गई है।
खाद एवम् ऊर्वरक:- प्रथम वर्ष नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 125 ग्राम125 ग्राम125 ग्राम
द्वितीय वर्ष नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 225 ग्राम250 ग्राम250 ग्राम
तृतीय वर्ष नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 350 ग्राम250 ग्राम250 ग्राम
चतुर्थ वर्ष नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 450 ग्राम250 ग्राम250 ग्राम ,पाँच साल के बाद 10-15 किलो सड़ी हुयी गोबर की खाद ( F.Y.M.) और 600 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम फोस्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा देना चाहिए ।
सधाई:- अनार की दो प्रकार से सधाई की जा सकती है। एक तना पद्धति – इस पद्धति में एक तने को छोडकर बाकी सभी बाहरी टहनियों को काट दिया जाता है। इस पद्धति में जमीन की सतह से अधिक सकर निकलते हैं।जिससे पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। इस विधि में तना छेदक का अधिक प्रकोप होता है। यह पद्धति व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपयुक्त नही हैं।
बहु तना पद्धति – इस पद्धति में अनार को इस प्रकार साधा जाता है कि इसमे तीन से चार तने छूटे हों,बाकी टहनियों को काट दिया जाता है। इस तरह साधे हुए तनें में प्रकाश अच्छी तरह से पहुॅंचता है। जिससे फूल व फल अच्छी तरह आते हैं।यह विधि ज्यादा उपयुक्त है।
अनार के पौधे कीट व रोग:-अनार का मुख्य किट अनार बटर फ्लाई है।
रोकथम या प्रबन्धन:-साईपर मैथरिन 200 मिलीलीटर (रिपकार्ड) या मोनाक्रोटोफोस 200 मिलीमीटर को 200 मिलीमीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर।
उपज :-पौधे रोपण के 3 वर्ष पश्चात फलना प्रारम्भ कर देते हैं। लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपण के 5 वर्ष के बाद ही फल लेना चाहिए। अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल प्रति वर्ष 25-30 वर्षो तक फल देता है। सघन विधि से बाग़ लगाने पर लगभग 480 टन उपज हो सकती है जिससे एक हैक्टेयर से 5 -8 लाख रुपये सालाना आय हो सकती है। नई विधि को काम लेने से खाद व उर्वरक की लागत में महज 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती है जबकि पैदावार 50 फीसदी बढ़ने के अलावा दूसरे नुकसानों से भी बचाव होता है।