सिंधु बॉर्डर । निहंगों द्वारा मारे गए लखबीर सिंह की बॉडी शनिवार को शाम 6:30 बजे तरनतारन जिले में उनके गांव चीमा पहुंची। बॉडी जिस एंबुलेंस से लाई गई उसे सीधे गांव के श्मशान घाट पर ले जाया गया । बॉडी के पहुंचने से पहले श्मशान घाट पर चिता सजा दी गई । पुलिस ने उसकी पत्नी जसवीर कौर , बहन राजपुर और दूसरे रिश्तेदारों को श्मशान घाट पर बुला लिया। बॉडी एंबुलेंस उतार कर सीधे चिता पर रखी गई । अंतिम संस्कार के दौरान कोई अरदास नहीं की गई। पॉलीथीन में बंद लखबीर सिंह का चेहरा उनके परिजनों को नहीं दिखाया गया । जसप्रीत कौर ने कई बार कोशिश की लेकिन उसका चेहरा नहीं दिखाया गया । यहां तक की बॉडी से पॉलिथीन में नहीं हटाई गई। चिता की लकड़ियां जल्दी आग पकड़े इसके लिए चिता पर घी की जगह डीजल डाला गया। आग के हवाले कर दिया गया। लखबीर सिंह के संस्कार के समय तरनतारन के डीएसपी सुच्चा सिंह मौजूद रहे।
इससे पहले शनिवार सुबह सीमा गांव की गांव पंचायत में साफ कर गया था कि मृतक पर गुंजन की बेअदबी का आरोप है इसलिए वह है उसका संस्कार अपने गांव में नहीं होने देंगे बाद में सत्कार कमेटी के सभी गांव पहुंच गए और के साथ नहीं होने देंगे हालांकि सत्कार कमेटी में यह भी कह दिया कि युवक की मौत हो चुकी है इसलिए उसकी बॉडी को गांव आने दिया जाए और संस्कार भी यही करने दिया जाए इसके बाद सीमा गांव की पंचायत और ग्रामीण में मृतक के शव का अंतिम संस्कार कर दिया लेकिन गांव का कोई व्यक्ति अंतिम संस्कार में नहीं आया।
दलितों की स्थिति आज भी नहीं बदली
लखबीर सिंह की मौत से साफ हो गया कि दलितों के हालात अभी भी वैसे ही है जैसे सदियों पहले थे। मुगल काल ,उसके बाद ब्रिटिश काल , ओर राजपूताना काल में ,और अन्य सामग्री उनके साथ इसी तरह का व्यवहार होता था । वे अपनी शिकायत दर्ज कर पाते थे और ना ही कोई शिकायत सुनने वाला था । लखबीर सिंह पर आरोप लगाया गया है, हो सकता है यह सच हो। लेकिन जिस तरह का दंड उसे दिया गया और जिस तरह जिस तरह से उसके एक -एक अंग काटकर मौत की नींद सुलाया गया । ये तालिबानी तरीके से कम नहीं है । इसे लोकतंत्र कहना कहां का न्याय है। हालांकि आरोपी गिरफ्तारी हो गई। लेकिन इस हत्याकांड ने कई सवाल भी छोड़ दिए और लोगों की मानसिकता को भी साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया ,एक युवक को एक आरोप लगाकर उसके हाथ ,पैर काट उसकी गर्दन काट कर मार दिया जाता है । देश की कोई राजनीतिक पार्टी ,कोई राजनेता,। कोई सामाजिक धार्मिक संगठन चू तक नहीं बोलता है ,सबको अपने अपने वोट बैंक की पड़ी है। इसकी पैरवी करने का मतलब है सिख समाज के वोटों से हाथ धोना और कोई भी नहीं चाहता यही कारण है कि एक आदमी की बेरहमी से हत्या करने के बाद उसके हत्यारे अपनी मर्जी से सरेंडर करते हैं वह भी स्क्रिप्ट के अनुसार और दूर तक जाने वाला है।