क्या पंडित नेहरू को धर्मनिरपेक्ष कहना उचित है?

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लोक टुडे न्यूज नेटवर्क

 

— हेमराज तिवारी  वरिष्ठ पत्रकार

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में यदि किसी व्यक्ति ने आधुनिक भारत की राजनीतिक दिशा तय की, तो वह थे पंडित जवाहरलाल नेहरू। उन्हें अक्सर भारत में धर्मनिरपेक्षता का आधारशिला रखने वाला नेता बताया जाता है। लेकिन आज, जब हम ऐतिहासिक तथ्यों, व्यवहारिक नीतियों और उनके निर्णयों का गहन विश्लेषण करते हैं, तो यह सवाल खड़ा होता है — क्या पंडित नेहरू को धर्मनिरपेक्ष कहना वाकई उचित है?

विचारों में धर्मनिरपेक्षता, लेकिन संविधान से अनुपस्थित

नेहरू जी ने बार-बार यह कहा कि भारत एक सेक्युलर स्टेट होगा। लेकिन दिलचस्प तथ्य यह है कि उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में “Secular” शब्द नहीं जोड़ा। यह शब्द 1976 में, आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा जोड़ा गया।

यह एक विचार और व्यवहार के बीच का पहला बड़ा अंतर था। नेहरू जी के सिद्धांत “धर्म से दूरी” के थे, लेकिन व्यवहार में वे धर्म के प्रति असंतुलित रहे।

हिंदू कोड बिल: सुधार या राजनीतिक चयनवाद?

नेहरू सरकार ने हिंदू समाज के लिए विवाह, उत्तराधिकार और तलाक जैसे मामलों में विधायी हस्तक्षेप किया। लेकिन मुस्लिम समुदाय के लिए कोई समान नागरिक संहिता नहीं लाई गई।

क्या यह सही धर्मनिरपेक्षता थी — या एक समुदाय विशेष को खुश रखने का तुष्टिकरण?

यदि हिंदू समाज के व्यक्तिगत कानूनों को “सुधार” की जरूरत थी, तो मुस्लिम पर्सनल लॉ को उसी कसौटी पर क्यों नहीं परखा गया?

धार्मिक आयोजनों से दूरी या केवल हिंदू प्रतीकों से परहेज?

सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर जब राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उद्घाटन के लिए गए, तो नेहरू ने आपत्ति जताई। लेकिन यही आपत्ति तब नहीं दिखाई देती जब नेता चर्च या दरगाह में जाएं।

क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब केवल हिंदू पहचान से परहेज है? क्या राष्ट्राध्यक्ष केवल अल्पसंख्यक प्रतीकों के साथ फोटो खिंचवाएं तभी यह ‘सेक्युलरिज्म’ कहलाता है?

हज सब्सिडी की शुरुआत: सेक्युलर भारत में धार्मिक यात्रा को सरकारी समर्थन?

नेहरू शासन में हज यात्रियों के लिए सरकारी सब्सिडी की शुरुआत हुई। यह एक खुला धार्मिक पक्षपात था, जिसे 2018 में जाकर बंद किया गया। क्या एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सरकार को किसी धर्म विशेष की धार्मिक यात्रा को प्रोत्साहित करना चाहिए?

कश्मीर नीति: एक और अपवाद

कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 नेहरू की राजनीतिक विरासत रही। एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य को विशेष अधिकार देकर, एक भिन्न प्रकार की ‘धर्मनिरपेक्षता’ स्थापित की गई — जो भेदभाव और विघटन का बीज थी।

धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति नीति: सुरक्षा या तुष्टिकरण?

नेहरू जी ने बार-बार अल्पसंख्यकों को आश्वस्त किया — यह अच्छी बात थी। लेकिन जब बहुसंख्यकों को अपमानित करके यह संतुलन बनाया गया, तो धर्मनिरपेक्षता का चरित्र ही विकृत हो गया।

धर्मनिरपेक्षता या राजनीतिक रणनीति?

पंडित नेहरू विचारों में धर्मनिरपेक्ष रहे हों — यह स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन उनके अधिकांश फैसले “एकांगी धर्मनिरपेक्षता” के उदाहरण हैं।

उनकी “धर्मनिरपेक्षता” दरअसल एक ऐसी नीति थी जो हिंदू प्रतीकों से दूरी और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक संरक्षण में ही संतुलन ढूंढती रही।

आज भारत को समान नागरिक संहिता और वास्तविक धर्मनिरपेक्षता की ज़रूरत है — जो न तुष्टिकरण हो, न धार्मिक विरोध।

नेहरू को धर्मनिरपेक्ष कहने से पहले, हमें यह तय करना होगा कि धर्मनिरपेक्षता का सही अर्थ क्या है — धर्म से दूरी या धर्म में भेदभाव?

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