–घनश्याम तिवाड़ी ,सांसद (राज्यसभा)
रामानंदाचार्य संप्रदाय के 52 द्वाराचार्यों में से एक अग्ररादेवाचार्य द्वारा स्थापित रैवासापीठ के अंतर्गत देश में लगभग 1400 द्वारे हैं ।रैवासा में जानकीनाथ के रूप में राम की पूजा होती है।संत-कवि नाभाचार्य ने भक्तमाल की रचना रैवासा की। यहां गोस्वामी तुलसीदास ने भजन-
जानकी नाथ सहाय करें,जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ।
डॉक्टर राघवाचार्य वेदांती का जन्म बांदा ( उत्तर प्रदेश) जिले में हुआ। वे साहित्य एवं व्याकरण में गोल्ड मेडलिस्ट थे। उनकी प्रतिभा के कारण रैवासा पीठाधीश्वर शालीग्राम ने अपना उत्तराधिकारी लगभग 40 साल पहले बनाया था । महाराज के गद्दीनशीन होने के बाद रैवासाधाम ने आध्यात्मिक व भौतिक क्षेत्र में खूब प्रगति की तथा रैवासाधाम का नाम पूरे भारतवर्ष में जाना जाने लगा। उन्होंने मंदिर में कई सेवा प्रकल्प प्रारंभ किए । रैवासा वेद विद्यालय में शिक्षित- दीक्षित विद्यार्थी अब तक 62 से अधिक सेना में धर्मगुरु बन चुके हैं ।महाराज के द्वारा गौशाला का भी संचालन किया जाता है जिसमें सैकड़ों गाएं हैं।
वे राजस्थान संस्कृत अकादमी के अध्यक्ष भी रहे । महाराज राम मंदिर आंदोलन से प्रारंभ से ही जुड़े रहे। वे संतों के 11 सदस्यीय मार्गदर्शन मंडल में भी । राम मंदिर शिलान्यास में राजस्थान से आमंत्रित एकमात्र संत थे। उनके निधन से आध्यात्मिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। मेरे पर उनकी असीम कृपा हमेशा रही । आज उनके आकस्मिक निधन का समाचार सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। मैं उन्हें सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं तथा परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उनको अपने श्री चरणों में स्थान दें।