लखनऊ। आखिरकार मुस्लिम धर्म के वसीम रिजवी को क्यों अपनाना पड़ा सनातन धर्म ? क्या कारण रहा कि वसीम रिजवी जो शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन में हैं उन्हें धर्म छोड़ना पड़ा। मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन धर्म में शामिल हो गए ! देश – दुनिया में वसीम के धर्मांतरण को लेकर बहस चल रही है। हालांकि वसीम एकमात्र व्यक्ति नहीं है ,जिन्होंने मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन धर्म ग्रहण किया हो। रोजाना कई लोग धर्म परिवर्तन कर रहे है।हिंदुओं से मुस्लिम, ईसाई , बौद्ध बनने की खबरें सुर्खियां बनती है।
वसीम ने मुस्लिम धर्म की कट्टरता के कारण छोड़ा धर्म
वसीम का कहना था कि उसने मुस्लिम धर्म की कट्टरता के कारण धर्म परिवर्तन किया है । यह सब कुछ उसने अपनी मनमर्जी से किया है। उस पर किसी अन्य व्यक्ति का या किसी धर्म के लोगों का कोई दबाव नहीं है । जिस तरह की कट्टरता मुस्लिम धर्म में हावी होती जा रही है और धर्म के नाम पर उन्माद बढ़ता जा रहा है वह खतरनाक है, वह ठीक नहीं है । इसीलिए उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करके मूल धर्म सनातन धर्म अपना लिया है।
वसीयत में लिखा था मरने के बाद जलाया जाए
दरअसल वसीम रिजवी ने कुछ दिनों पूर्व अपनी वसीयत लिखी थी। उस वसीयत में लिखा था कि मेरे मरने के बाद मेरा दाह संस्कार हिंदू रिती रिवाज से किया जाए। मेरे शव को दफनाया नहीं जाए। इसके बाद रिजवी के खुद के अपने परिवार और रिश्तेदारों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था ।कट्टरपंथी मुल्ले, मौलवीयों ने उन्हें कहा था कि यदि उन्हें हिंदू धर्म इतना ही पसंद है तो वह मुस्लिम धर्म को छोड़कर हिंदू धर्म क्यों नहीं अपना लेते है। मुस्लिम धर्म में रहते हुए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता । उनके शव को मुस्लिम धर्म के अनुसार मिट्टी दाग ही किया जा सकता है । इससे नाराज होकर वसीम रिजवी ने नाराज होकर मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन धर्म ग्रहण कर लिया था ।
वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बन गए
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन रहे वसीम रिजवी ने आखिरकार मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया। उन्हें यति नृसिंहदास ने डासना देवी मंदिर सनातन धर्म की दीक्षा दी। मंत्रोच्चार ओर पूजा पाठ के बाद वसीम रिजवी अब जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बन गए है। अब उन्हें भविष्य में जितेंद्र नारायण सिंह बत्यागी के तौर पर जाना जायेगा। उन्होंने मुस्लिम छोड़कर सनातन धर्म अंगीकार कर लिया है।
पत्नी और परिजनों से भी धर्म परिवर्तन का आग्रह किया
वसीम रिजवी से जितेंद नारायण सिंह त्यागी बने अपने परिजनों से भी मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन धर्म ग्रहण करने की अपील की है । हालांकि अभी तक उनके किसी भी रिश्तेदार ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है । वे अभी भी मुस्लिम धर्म के नियम का पालन कर रहे हैं। उन्हें यहां त्यागी जाति में शामिल किया गया है। भविष्य में जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को त्यागी जाति के नियमों का पालन करना होगा।
डासना देवी मंदिर में की पूजा
जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी का कहना है कि सनातन धर्म में इतनी कट्टरता नहीं है। यह प्रकृति के करीब धर्म है। यहां सभी का मान सम्मान होता है। इसीलिए उन्होंने यह धर्म ग्रहण किया है । हमारे पूर्वज भी सनातनी थे । वह मुस्लिम धर्म की कट्टरता से काफी नाराज दिखे। धर्म परिवर्तन के बाद उन्होंने डासना माता मंदिर में पूजा अर्चना की और भगवा वस्त्र धारण कर लिए। कहा अब मेरा संपूर्ण जीवन सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में ही काम आएगा।
हिंदू धर्म में व्याप्त जातीय कट्टरता का सामना करना पड़ेगा
अब सनातन धर्म में जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ेगा। सनातन धर्म में सबसे ज्यादा जातीय भेदभाव होते है। जिसके चलते बड़ी संख्या में हिंदू धर्म में दलित जातियों ने मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध धर्म के साथ- सिख धर्म ग्रहण किया है। आज भी लाखों की संख्या में रोजाना दलित बौद्ध बन रहे हैं । लेकिन हिंदू धर्म के ठेकेदार उनकी परवाह नहीं करते हैं । जैन धर्म में दलितों के लिए कोई स्थान नहीं है । ऐसे में दलितों का रूख जैन धर्म की तरफ नहीं है। हालांकि आज दलित समाज की बहुत सी जातियों में बहुत सुधार हुआ है और वह किसी भी तरह का मांसाहार नहीं करते हैं। लेकिन इसके बावजूद जैन धर्म में, जैन मुनियों या साधु संतों ने जैन धर्मावलंबियों की ओर से कभी भी दलित समाज पर ध्यान नहीं दिया गया है । जैन धर्म के लाखों मुनि है लेकिन उन्होंने दलितों में सुधार के भी कोई प्रयास नहीं किए। हिन्दू धर्म मे जातिवाद की श्रेष्ठता के कारण आज दलित समाज बौद्ध, ईसाई , मुस्लिम और सिख धर्म की तरफ भी आकर्षित होता रहा है । दलितों में बहु संख्या में मुस्लिम धर्म भी ग्रहण कर रहे है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इन धर्मों में जातीय भेदभाव नहीं होता है। लेकिन वसीम से जितेंद्र त्यागी को हिंदू धर्म में जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ेगा, जो कटु सत्य हैं। दलित समाज का कहना है कि हिंदू धर्म के ठेकेदारों को हिंदू धर्म में व्याप्त जातीय भेदभाव को समाप्त करने की तरफ भी काम करना होगा। इस दिशा में कदम उठाना चाहिए , जिससे कि सालों साल से सनातन धर्म के नियम कायदों का पालन कर रहे बहु बहुसंख्यक दलितों का दूसरों धर्म की ओर पलायन नहीं हो ।