लखनऊ। भीम आर्मी चीफ और आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच मुलाकात सियासी तालमेल का संकेत है ।माना जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव के बीच सीटों को लेकर समझौता होने जा रहा है। चंद्रशेखर आजाद का यूपी में खासा असर है और मायावती के बाद दलित वर्ग के सबसे बड़े नेता के तौर पर उनकी पहचान बनी है। युवा वर्ग तो उनका दीवाना है । अखिलेश यादव, चंद्रशेखर आजाद से समझौता करते हैं तो अखिलेश यादव की पार्टी को विधानसभा चुनाव में सीधा- सीधा फायदा मिल सकता है। वहीं चंद्रशेखर आजाद की पार्टी को भी एक मुकाम मिल सकता है ।
मायावती से समझौते के लिए आजाद ने किए प्रयास
अभी तक चंद्रशेखर आजाद लगातार बसपा प्रमुख मायावती से गठबंधन के प्रार्थना के फिराक में थे और उनसे ही गठबंधन करना चाहते हैं । चंद्रशेखर ने इसके लिए कई बार सार्वजनिक तौर पर और व्यक्तिगत भी मायावती से इस बात के लिए निवेदन किया। लेकिन मायावती का अहंकार इतना अधिक है कि उन्होंने न तो कभी भी चंद्रशेखर से बात करना भी उचित नहीं समझा । चंद्रशेखर को कभी भी मायावती ने भाव देना उचित नहीं समझा और उनकी पार्टी से कभी भी समझौते वाली बात पर विचार नहीं किया। जबकि चंद्रशेखर से जुड़े हुए लोग भी और खुद आजाद भी चाहते थे कि दोनों एक मंच पर आ जाए ,जिससे दलित वर्ग के वोटों का बिखराव नहीं हो, लेकिन चंद्रशेखर के सभी प्रयास इस मामले में विफल रहे। मायावती ने उन्हें कभी भी इस लायक ही नहीं समझा।
जबकि भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद की आज दलित वर्ग के युवाओं में बहुत तगड़ी पकड़ और पहचान हैं। आज मायावती से ज्यादा लोग चंद्रशेखर के पर पूरे देश में कहीं भी जुट सकते है। यूपी में बड़ी संख्या में दलित वर्ग है और दलित वर्ग के हितों की लड़ाई चंद्र शेखर आजाद ने मायावती से कहीं ज्यादा अधिक लड़ी है। मायावती सिर्फ ट्वीट करने जा साल 6 महीने में कोई बयानबाजी करके ही अपनी भड़ास निकालती है लेकिन आज तक किसी भी दलित महिला या पुरुष या समाज पर सामूहिक रूप से हुए भी कोई अत्याचार हुआ हो तो वह अपने दबड़े से भी बाहर नहीं निकलती है। जबकि चंद्रशेखर दलित ,पिछड़ा और गरीब वर्ग के लिए आए दिन सड़कों पर संघर्ष करते हैं । सैकड़ों की संख्या में मुकदमे दर्ज हुए ,कई बार जेल में चले गए। कई बार लाठियां खाई। लेकिन जब भी उन्हें किसी पीड़ित के बारे में जानकारी मिलती है, वह और भीम आर्मी पूरे देश में इस लड़ाई को जोर शोर से लड़ती है। यह बात अखिलेश यादव के जेहन में थी और उन्होंने इस बार मायावती के बजाय चंद्रशेखर आजाद से समझौता करना ज्यादा उचित समझा।