जयपुर । राजस्थान में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है 199 सीटों पर मतदान हुआ है मतदान के अब तक के मिल रहे रुझान के अनुसार राजस्थान में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा है और यहां पर इस बार त्रिशंकु सरकार बनने जा रही है। मतदान के बाद हुए सर्वे और तमाम लोगों के विचारों के आधार पर यह लगता है कि मुख्यमंत्री गहलोत जोड़-तोड़ करके सरकार बना लेंगे । राजस्थान में पहली बार हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी को आजाद समाज पार्टी के साथ मिलने से बेनीवाल की पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी की है। क्योंकि यहां पर दलित और जाट दोनों ही कांग्रेस का परंपरागत वोट माना जाता है। आरएलपी ने पिछले चुनाव में तीन सीटें जीती थी, लेकिन इस बार सीटों की संख्या बढ़ सकती है । हालांकि कई स्थानों पर दोनों पार्टियों ने उम्मीदवार खड़े किए हैं जिससे कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना है । दूसरी और भाजपा के भी कई बागी उम्मीदवार चुनाव मैदान में है जिससे सीधा-सीधा नुकसान भाजपा को ही होना है, इनमें से कुछ जीतने की स्थिति में भी है । राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी करीब 200 सीटों पर चुनाव लड़ी है लेकिन इस बार भी चुनाव में बसपा वहीं पांच_छह सीटों पर सिमटेगी।
सचिन पायलट जहां तक बातें सचिन पायलट की तो सचिन पायलट ने सिर्फ उन्हीं सीटों पर पर चुनाव प्रचार किया जो मानेसर प्रकरण के दौरान उनके साथ रहे ,अन्य सीटों पर सचिन पायलट नहीं गए और गए भी तो वह सिर्फ प्रियंका गांधी या राहुल गांधी के साथ ही गए। पायलट ने अधिकांश समय अपने ही विधानसभा सीट पर दिया और वह चुनाव अभियान कंपैन में शामिल तो रहे ।लेकिन अधिकांश इलाकों में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए ।हालांकि वह सरकार रिपीट होने का दावा करते रहे । जहां तक बातें गुर्जर समाज की बात है तो गुर्जर समाज में जहां गुर्जर समाज के उम्मीदवार खड़े थे वहां पार्टी को नहीं देखा और सिर्फ अपनी समाज के उम्मीदवार का समर्थन किया । भले ही वह मुख्यमंत्री गहलोत गुट का रहा हो, या फिर किसी और गुट का । लेकिन जिन लोगों ने मानेसर प्रकरण में सचिन पायलट का साथ छोड़ा था उनका गुर्जर समाज में खुलकर विरोध किया। गुर्जर समाज ने सिकराय में ममता भूपेश, निवाई से प्रशांत बैरवा, सवाई माधोपुर में दानिश अबरार ,लालसोट में परसादी लाल मीणा ,सपोटरा में रमेश चंद मीणा, गंगापुर सिटी में रामकेश मीणा का खुलकर विरोध किया । लेकिन फिर भी नहीं यदि जोर-जोर करके सरकार बनाने का नंबर आता है तो सचिन पायलट भी मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार है।
बीजेपी में वसुंधरा
राजस्थान में पहली बार भाजपा बगैर नेतृत्व के चुनाव लड़ी । ऐसी स्थिति में लोगों के सामने सवाल ये था कि देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ रही है, तो ऐसा तो नहीं है कि पीएम मोदी प्रधानमंत्री की सीट छोड़कर राजस्थान में मुख्यमंत्री बनेंगे ?इसलिए भाजपा के स्थानीय नेताओं की उपेक्षा होती देखकर भाजपा के राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर भी लोगों में असमंजस की स्थिति रही ।चुनाव के आखिरी दौर तक भी पार्टी यह स्पष्ट नहीं कर सकी कि यहां पर मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा ?इसलिए माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा और मुकाबला मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से । राजस्थान की अधिकांश सीटों पर लोगों का कहना था कि राजस्थान में तो गहलोत सही है और दिल्ली में मोदी और यदि इसी आधार पर चुनाव में मतदान हुआ है तो भारतीय जनता पार्टी को 75 से 80 के बीच सीट मिल सकती है। ऐसी स्थिति में भाजपा को भी सरकार बनाने के लिए निर्दलीयों और दूसरे लोगों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा हालांकि कुछ सर्वे भाजपा को 120 सीट जितती हुए भी दिखा रहे हैं। लेकिन हकीकत में यह अपना 75 से 80 सीटों के बीच ही सीमट जाएगा।
बसपा से हुआ मोहभंग
बहुजन समाज पार्टी को लोग अब गंभीरता से नहीं ले रहे क्योंकि लोगों को मानना है कि बहुजन समाज पार्टी को वोट दिया होगा बट्टे खाते ही जाएगा ,क्योंकि जिसको भी वोट देंगे वह जाना किसी न किसी सरकार के साथ ही , या पार्टी छोड़ देगा ऐसी लोगों ने मानसिकता बन गई है । इसलिए बहुजन समाज पार्टी को इस बार बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा ।क्योंकि अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं राजस्थान में पिछले 4 चुनाव से बहुजन समाज पार्टी से जीतकर आने वाले अधिकांश विधायक पार्टी को छोड़कर चले गए और सत्ता के साथ मिल गए। इसलिए लोगों को बहुजन समाज पार्टी को वोट देने के बाद वे लोग सत्ताधारी दल के साथ चले जाते हैं, तो फिर वोट कम से कम दूसरी पार्टी को ही दिया जाए ।लेकिन इसके बावजूद भी बहुजन समाज पार्टी राजस्थान में 5-6 सीट आसानी से जीत सकती है।
आरएलपी, आप और बाप
राजस्थान में आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ी है लेकिन लेकिन आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवान सिंह मान ने सिर्फ एक चुनावी रैली को संबोधित किया है । जाहिर सी बात है कि उन्होंने राजस्थान को गंभीरता से नहीं लिया। ऐसी स्थिति में आम आदमी पार्टी ने कहीं-कहीं कांग्रेस को अंदर खाने समर्थन किया है। लेकिन आदिवासियों की पार्टी बाप ने इस बार बांसवाड़ा डूंगरपुर और उदयपुर संभाग में अच्छा दमखम दिखाया है और माना जा रहा है कि बाप भाजपा और कांग्रेस दोनों को नुकसान करेगी।
निर्दलीयों की पौहबारा
इस बार विधानसभा चुनाव में कई निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे हैं। इनमें भाजपा और कांग्रेस के जो बागी है उनके चुनाव जीतने की चर्चा जोरो पर है और उनका जिस हिसाब से जन समर्थन मिला है ऐसी स्थिति में आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे उनके इर्द-गज रहने की उम्मीद है । ऐसी स्थिति में इन लोगों की राजस्थान में सरकार बनाने मैं भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है । राजस्थान में निर्दलीय ,बसपा ,राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी आजाद समाज पार्टी और बाप पार्टी की भूमिका निर्णायक हो सकती है।
कांग्रेस गहलोत या पायलट
जहां तक राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की बात की जाए तो इस बार कांग्रेस पार्टी ने कहने को तो सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा है। लेकिन जो चुनाव सामने आया है उसमें पहली बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पावरफुल स्थिति में नजर आए। पूरे चुनाव की कमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इर्द-हाईों की नजर आई और राजस्थान में मुकाबला पीएम मोदी और गहलोत के बीच दिखाया गया । आम जनता ने भी चुनाव को गहलोत – पीएम मोदी कर दिया और भाजपा ने भी चुनाव को गहलोत वर्सेस पीएम मोदी ही किया है । इस बार राजस्थान के लोगों ने खुलकर कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर तो अशोक गहलोत सही है ,लेकिन पीएम मोदी देश में प्रधानमंत्री ही अच्छे हैं । जब चुनाव 2024 में आएंगे लोकसभा के तब हम पीएम मोदी को वोट कास्ट करेंगे। लेकिन फिलहाल तो राजस्थान के चुनाव हो रहे हैं और राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अच्छा काम कर रहे हैं । इसलिए राजस्थान में पिछले 30 साल का रिवाज बदलेगा और एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की सरकार बनेगी । इस तरह का माहौल पहली बार देखने को मिला है । जबकि से पूर्व में जब भी चुनाव होते थे तो मुख्यमंत्री भले ही अशोक गहलोत रहते थे, लेकिन कांग्रेस में एक दूसरा चेहरा बतौर मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर दिया जाता था। जैसे एक बार सीपी जोशी को किया गया, दूसरी बार सचिन पायलट को आगे रखा गया। लेकिन इस बार पूरी तरह से सबको पता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही इस पूरे अभियान के मूल रहे। जितने भी विज्ञापन आए उनमें भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ही इसमें मुख्यमंत्री के तौर पर ही दर्शाया गया। जिससे लगता है कि कांग्रेस पार्टी की राजस्थान में तमाम विरोध के बीच बावजूद 80 से 85 सीट आ सकती है। और 80-85 सीट आने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जोड़-तोड़ करके आराम से सरकार बना लेंगे । क्योंकि जब इतनी सीट आएंगे तो राज्यपाल उन्हें आमंत्रित करेंगे। सरकार बनाने के लिए उस समय मुख्यमंत्री को और दूसरी पार्टी से जीत कर आने वाले विधायकों को अपने साथ जोड़ लेंगे, ऐसा माना जा रहा है । हालांकि सर्वे में भी कांग्रेस को भी कुछ लोग या कुछ एजेंसियां राजनीतिक पार्टियों के विश्लेषक 108 से 120 सीट जीतती हुए दिखा रहे हैं। कुछ लोग भाजपा को 120 से 130 सीट जितते हुए भी दिख रहे हैं। तो सबके अलग-अलग आकलन है। लेकिन जो धरातल पर लोग जुड़े हुए हैं और लगातार जनता के बीच रहकर सर्वे कर रहे हैं उनका मानना है कि यहां पर राजस्थान में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा है। यहां पर त्रिशंकु सरकार बनने की संभावनाएं ज्यादा है। और त्रिशंकु सरकार में भी कांग्रेस पार्टी को 80 से 85 सीट, भारतीय जनता पार्टी को 75 से 80 सीट मिल सकती है । अन्य सीटे निर्दलीयों ,दूसरी स्थानीय परियो के खाते में जा सकती है इनमें कई भाजपा और कांग्रेस के बागी जीत कर आएंगे जो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।