सा.जितेन्द्र सिंह शेखावत वरिष्ठ पत्रकार
राजस्थान पत्रिका
सौ साल पहले विदेशो से भारत में आई कारें बड़े नसीब वाली निकली। पहले राजा और रहीसों के पास इज्जत पाने वाली हैरिटेज कारों की किस्मत अब फिर जाग गई है। ताड़ीनुमा टायर और लकड़ी के स्टेयरिंग की ये कारें पौ पौ _ कुर्र कुर्र का हॉर्न बजाते सड़कों पर निकलने वाली कारों को आज भी पहले जैसा सम्मान मिल रहा है। पुराने रहीसों के बंगलों में खड़ी बूढ़ी कारों को अब फिर नई नवेली दुल्हन की तरह सुन्दर बना दिया गया है।
जयपुर में पहली ऑस्टिन सिंगर कार माधो सिंह द्वितीय के लिए पानी के जहाज से आई थी।
माधो सिंह उस कार में बैठ सिटी निकलते तब जनता का अभिवादन स्वीकार करने के लिए वे कार की छत को उठा उसमें खुद खड़े हो जाते। आसमानी रंग की दूसरी स्टडी बेकर कार डॉ दलजंग सिंह खानका के लिए आईं। उसमें बग्घी जैसी सीट और पायदान पर महंगा गलीचा था। अंग्रेज अफसर भी मेमों के साथ हैट लगाए लकड़ी के स्टेरिंग को चलाते कार से निकलते तब उन्हें देखने वालों की भीड़ लग जाती थी।
पुरानी कारों के लिए कवि प्रहलाद गौड़ की यह कविता बहुत मशहूर हुई।
मोटर ईयया जावै,
जिय्या सांप प्लैटा खावे।
इक्का, बग्गी ,तांगा
मोटर भागै सबसू आगे
लाट साहब की मोटर आई
पहुंची सिटी पैलेस के माई।
इंग्लैंड और अमेरिका से कारें आने लगी तब वर्मा सेल कंपनी ने बाईस गोदाम पर पेट्रोल पंप खोला था। सन 1932 में चड्ढा कंपनी ने सांगानेरी गेट पर वर्कशॉप खोला वहीं सफी मोहम्मद ने टायर की दुकान खोली।
सरकारी बग्गियों के गैरेज में मिस्त्री खवास बक्श इंगलिश कारों की मरम्मत करने लगे ।
सन 1939 में वाहन पंजीकरण एक्ट बनने के बाद नंबर लिखी यह कारें अपना जलवा बिखरने लगी ।
आज के दौर में असंख्य
महंगी कारें कीड़े मकोड़ो की तरह दौड़ती दिखती है। पुराने दौर में कार वालों को खूब इज्जत और सलाम मिलती थी। सवाई मानसिंह ने अपने ज्येष्ठ पुत्र ब्रिगेडियर भवानी सिंह के लिए 1927 मॉडल की लांचेस्टर बेबी कार मंगवाई। बचपन में भवानी सिंह इस बेबी कार को सिटी पैलेस में चलाते थे। डेढ़ फीट ऊंची एक सीट की ढाई हॉर्स पावर इंजन है।
पर्यटन विभाग में रहे गुलाब सिंह मीठड़ी के मुताबिक सवाई मानसिंह और राजमाता गायत्री देवी के पास अनेक विदेशी कारें थी। मान सिंह की फोर्ड जीप को सब पहचानते थे।
स्टेशन रोड पर गोपीजी ने कारों का वर्कशॉप खोला। कल पुर्जों की दुकान चौड़ा रास्ता में खुली थी। अब्दुल वहाब के पास लकड़ी के पहियों की औवर लैंड कार में लकड़ी की छत, कांच के स्थान पर लोहे की जाली और लकड़ी का स्टेरिंग था।
1923 की ऑस्टिन चम्मी व 1929 की इरेस्किन कार हमीद भाई के पास रही । बिरजू सिंह की बेबी सी एस 500 सीसी की इंग्लिश कार दिवंगत मुख्य मंत्री हरदेव जोशी के पास भी रही। रामपाल मिस्त्री की हंबर इंग्लिश 1934 मॉडल की कार कई रैलियां में भाग ले चुकी है ।
फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और सायरा बानो नवंबर 1992 में फिल्म कलिंग के सिलसिले में हैरिटेज कार खरीदने के सिलसिले जयपुर आए। वे नवाब लोहारू के सिविल लाइंस बंगले में रुके थे। दिलीप कुमार ने अब्दुल हमीद की 1927 मॉडल मॉरिस कावली इंग्लिश कार में बैठ जयपुर को देखा था।
कैडबरी कार मोटर गैराज में व 1939 की स्टैंडर्ड कर शर्त अली के पास थी। राजा अमरनाथ अटल, सुरेंद्र सिंह, धर्मवीर सिंह खाचरियावास,बाबू हकीकत राय, आर एन डे,रामपाल मिस्त्री, नवाब मुकर्रम अली, पृथ्वीराज सिंह के पास इंग्लिश कारें थी ।
जयपुर में सन 1914 से 1939 मॉडल की करीब 40 कारें थी। इनमें ऑस्टिन, मॉरिस फोर्ड, बेंटले, मर्सिडीज़, रेनॉल्ट ,सनबर्न रोल्स-रॉयस आदि कारों की नजाकत ही कुछ विशेष रही। सबसे पुरानी 1914 मॉडल की ओवरलैंड कार कभी मिरजी का बाग के बाहर खड़ी रहती थी। 1927 मॉडल की ऑस्टिन कार डा पीडी माथुर व 1928 की फोर्ड हरिनारायण कचोलिया के पास रही। बरसों से कारों के संरक्षण में समाजसेवी दयानिधि और सुधीर कासलीवाल के अलावा पर्यटन विभाग में उप निदेशक उपेन्द्र सिंह शेखावत आदि बरसों से कार रैली का आयोजन करवा रहे हैं।