जयपुर। शरीर में प्रत्येक गांठ लिंफोमा की गांठ नहीं हो सकती है, फिर भी लिंफोमा की पुष्टि हो जाती है तो घबराने की जरूरत नहीं। लिंफोमा कैंसर का ही एक प्रकार है यह दो प्रकार का होता है । होचकिन और नॉनहोचकिन । लिंफोमा कैंसर का यदि प्रथम स्टेज पर पता चल जाए तो सफलता दर 80% तक रहती है।
यह विचार राजधानी के महात्मा गांधी अस्पताल में श्रीराम कैंसर सेंटर के निदेशक एवं मेडिकल ऑंकोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हेमंत मल्होत्रा ने वर्ल्ड लिंफोमा दिवस के अवसर पर आयोजित वेबीनार में व्यक्त किए। डॉ मल्होत्रा ने कहा कि लिंफोमा शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है इस कैंसर में इलाज के साथ-साथ परहेज भी रखे तो व्यक्ति 10 से 15 साल तक जीवन आराम से बिता सकता है। उन्होंने कहा कि इसका उपचार मेडिकल ऑंकोलॉजी में संभव है। समय के बदलाव के साथ-साथ अब आधुनिक मशीनें उपकरण भी आ गए हैं। जिनसे उच्च गुणवत्ता युक्त इलाज संभव है। वेबिनार में डॉक्टर नवीन गुप्ता ने कहा यदि बीमारी पलट कर आती है तो भी उपचार संभव है इसमें हाई डोज कीमोथेरेपी ओर सेल ट्रांसप्लांट का विकल्प भी अच्छे परिणाम दे सकता है । वेबीनार में डॉ ललित मोहन शर्मा ने कहा कि कोई भी लिम्फ नोट लिम्फोमा नही होती है । उसकी बायोप्सी जांच करवाना अति आवश्यक है । आमजन में यह गलत धारणा रहती है कि गांठ को छिड़वाने से तेजी से फैलती है और बढ़ जाती है डॉ प्रियंका सोनी ने बताया कि लिंफोमा बीमारी में बच्चो में अकारण लंबे समय तक बुखार रहना, वजन कम होना पेट में दर्द होना, आंखों में गांठ होना, फेफड़ों में पानी भर जाना, गर्दन ओर बगल में गांठ होना लिंफोमा के लक्षण है । बच्चों में लिंफोमा बीमारी समय के अनुसार उचित इलाज से 80 से 90% तक ठीक हो जाती है। डॉ शिखा डाल ने कहा कि प्रथम लिंफोमा सिर्फ रेडियोथैरेपी से ठीक हो सकता है । डॉ तरुण जैन ने पेट स्कैन का लिंफोमा बीमारी के निदान उपचार में अहम भूमिका है ।
डॉ अजय यादव, डॉ डीपी सिंह, डॉ सुमित बंसल, डॉ प्रशांत कुंभज, डॉ अनुश्री पुनिया, डॉ अंकुर पुनिया, डॉ गुमान सिंह, डॉ नितिन खुटेटा, दिनेश यादव, डॉ संजय शर्मा, डॉ मनीष जैन, सहित मेडिकल कैंसर रेडिएशन ऑंकोलॉजी तथा कैंसर विभाग के अन्य चिकित्सकों ने अपने अनुभव साझा किए ।