नई दिल्ली । सिंधु बॉर्डर पर जिस तरह से एक व्यक्ति की बेरहमी से हत्या की गई और कहा गया कि उसने गुरुग्रंथ साहब की बेअदबी की है । हत्या करने वाले निहंगों का कहना था कि जो भी गुरुग्रंथ साहिब का अपमान करेगा उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। दरअसल यहां एक युवक जिसे उसके परिवार वाले मानसिक विक्षिप्त भी बता रहे हैं। उसने सिंधु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में बने अस्थाई गुरुद्वारे से गुरु ग्रंथ साहब को छूने, उठाकर ले जाने का प्रयास किया। जिसे कुछ निहगों ने देख लिया। बस फिर क्या था युवक को पकड़कर पहले मार पिटाई की गई। फिर उसके उन हाथों को काटा गया जिन हाथों से उसने गुरु ग्रंथ साहब को छुआ था। उस पैर को भी काटा गया जिन पैरों पर खड़ा होकर भाग रहा था और फिर सर को धड़ से अलग कर दिया गया । जब इससे भी मन नहीं भरा । उसके शव को पुलिस बैरिकेट्स पर टांग दिया गया ।जिससे दुनिया उसे देख सके, उसके वीडियो वायरल किए गए ।जिससे दुनिया में संदेश जा सके, जो भी धर्म ग्रंथ की बेअदबी करेगा । उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। ये तमाम बातें इसलिए की गई क्योंकि गुरु ग्रंथ साहब को छूने वाला ,गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी करने वाला युवक दलित समाज से आता था। जिसे सरेआम हाथ, पैर और गर्दन काट कर पुलिस बैरिकेड पर टांग दिया जाता है । जिससे पूरी दुनिया में यह मैसेज जाए कि अगर भविष्य में भी फिर किसी ने गलती से भी ऐसी कोशिश की तो उसका हश्र ऐसा ही होगा। कोई भी जो औकात भूलेगा उसे दंड भुगतना ही पड़ेगा। इसके बाद एक इंसान को मारने वाले लोगों का स्वागत करना , उन्हें सिरोपा भेंट कर उनका हौसला बढाना ,सब कुछ इस बात को इंगित करता है कि उनके लिए एक इंसान की कोई कीमत नहीं है। यही श्रेष्ठता का पैमाना है और यही मानसिक दंभ भी है। यही एक वर्ग विशेष का अहंकार भी है जिसने इंसानियत को सूली पर टांग दिया।
मानसिक स्थिति ठीक नहीं
कुछ लोगों का कहना था की मृतक युवक मानसिक रूप से ठीक नहीं था। लंबे समय से आंदोलन में था और मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने वह किसान आंदोलन मैं बने हुए अस्थाई धर्मस्थल में घुस गया जहां से उसने गुरु ग्रंथ साहब को ले जाने का प्रयास किया। जैसा कि उसकी हत्या करने वाले निहंगों ने बताया। निहंगो ने बताया कि आरोपी युवक गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी कर रहा था। उसे लेकर भाग रहा था इसलिए उसके उन हाथों को काट दिया गया । जिन हाथों से उसने गुरु ग्रंथ साहब को छूने का प्रयास किया उन पैरों को भी काट दिया, जिन पर खड़ा होकर भाग रहा था, सर को भी धड़ से अलग कर दिया। जिससे वह बोल रहा था। ये सब कुछ हाल ही में सरेआम हुआ है कोई सदियों पुरानी बात नहीं है। यह सब कुछ घटित होता है लोकतांत्रिक देश मे, जिसमे कानून का राज हैं। जब मृतक युवक को पागल बताया जा रहा है तो उसे मारने से भी कोई फायदा नहीं हुआ । क्योंकि उसे यही होश नहीं होगा कि वह क्या करने जा रहा है ,उसके साथ क्या होने वाला है। तब ऐसे व्यक्ति को मारकर टांगना यह भी तो उचित नहीं है? और जब यहां हर काम , हर गलती , या अपराध की सजा तय हैं, तो फिर क़ानून हाथ में लेने का क्या औचित्य है? यहां कोई तालिबानी शासन व्यवस्था तो है नहीं ,जहां हाथ के बदले हाथ, आंख के बदले आंख और सर के बदले सर कलम करके सजा दी जा सकती हो वाली ? यह सब अहंकार को शांत करने के लिए किया गया।
धर्म स्थलों में आए दिन होती है इस तरह की घटनाएं
धर्मस्थला में प्रवेश को लेकर आज दिन तक टकराव होता रहता है ।महात्मा गांधी, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को भी कई बार दलितों को मंदिर में प्रवेश कराने को लेकर लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा । उस समय भी लोग दलितों के मंदिरों में प्रवेश का विरोध करते थे और गलती करने पर उनकी पिटाई करते थे । मारपीट करना ,गांव से बाहर करना ,जाति से बाहर करना, समाज से बहिष्कृत करना ,अपमानित करना, खम्बे के बांधकर पीटना यह सामान्य दंड होते थे । आजादी के 75 साल बाद भी आए दिन जालौर, सिरोही ,पाली, शेखावाटी ,करौली ,धौलपुर ,जोधपुर ,राजस्थान के कई जिलों, यूपी, कर्नाटका ,उड़ीसा ,मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा के कई राज्यों में ये देखने को मिलती है । वहां पर लोगों का धर्म स्थल में प्रवेश करने पर या मूर्तियों को छूने पर प्रताड़ित करना या अपमानित करना और पिटाई करना आम बात है। फिर भी दलित समाज के बहुत सारे लोग कैसे ना कैसे करके इन धर्मस्थला में जाने की कोशिश करते है। छिपकर जाए ,या अपनी पहचान छुपाकर जाए और जब पहचान उजागर होती है तो उनके साथ भी इस तरह का बर्ताव होता है। हालांकि ऐसा सभी मंदिरों और सभी धार्मिक स्थलों पर नहीं होता है । लेकिन फिर भी इस तरह घटनाएं आए दिन किसी न किसी कोने से आती रहती है । जिससे साफ है कि दलितों के साथ आज भी कई स्थानों पर धार्मिक स्थलों पर इस तरह का बर्ताव होना सामान्य यहां तक की नेताओं के बीच मंदिर में प्रवेश करने पर मंदिरों को पंचामृत से स्नान कराया जाता है । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लेकर इस तरह की बात सामने आई थी। डॉक्टर किरोडी लाल मीणा ने जालौर के मंदिर में एससी ,एसटी के लोगों के साथ प्रवेश करने की बात कही थी, तो मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया था और कानून व्यवस्था बिगड़ने के नाम पर दूर ही रोक दिया गया था। कई मंदिरों में दलित अधिकारियों, नेताओं मंत्रियों ,दलित,आदिवासियों ,महिलाओं को आज भी प्रवेश नहीं दिया जाता है । घनश्याम तिवारी को शिक्षा मंत्री रहते हुए उनकी धर्मपत्नी को मंदिर में प्रवेश रोक दिया गया था। जब तिवाड़ी मंदिर में घुसे थे उनके आने के बाद मंदिर का शुद्दीकरण किया गया था। ऐसे बहुत सारे उदाहरण है जब इस तरह का बर्ताव सामने आता है । जब इन लोगों के साथ ऐसा होता है तो इन वर्गों के लोगों के साथ कैसा होता होगा इसका अंदाजा सहज लगा सकते हैं।
संविधान से ही मिलेगा न्याय
जहां बाबा साहेब का बना हुआ संविधान सब के लिए काम करता है। संविधान के अनुसार लोगों को न्याय मिलता है ओर मिलेगा भी। लेकिन युवक की हत्या करने वाले आरोपी इस बात का जश्न मनाते हैं कि उन्होंने उस पापी का नाश कर दिया जिसने गुरु ग्रंथ साहब का अपमान किया। बेअदबी की, और भी खुलेआम यह भी कहते हैं भविष्य में यदि कोई भी धार्मिक ग्रंथ का अपमान करेगा उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। यही नहीं आरोपियों ने उस युवक को काटने के बाद पुलिस बैरिकेड से लटका दिया और यह मैसेज देने की कोशिश की थी उन्हें कानून का भय नहीं है और उन्हें किसी का डर भी नहीं है ।जाहिर सी बात है कि एक इंसान के छूने भर से या फिर , गुरु ग्रंथ साहब को ले जाना से भी कैसे बेअदबी हो सकती है। जिस आदमी को अदब और बेअदबी के बारे में ही पता नहीं है, अगर उससे से कोई गुनाह हो भी गया , उसे माफ करना भी गुरु ग्रंथ साहब ने ही सिखाया है। लेकिन इन सब बातों को लिखने का कोई औचित्य नहीं है। जाहिर सी बात है कि यह मामला जातिगत आधार पर एक दलित युवक को दंडित कर मैसेज देने का प्रयास है। जहां आज भी दलितों की इज्जत कीड़े मकोड़े से बढ़कर कुछ नहीं है। उन्हें कभी भी, कहीं भी, इस तरह से आसान टारगेट किया जा सकता है। ऐसे में दलित वर्ग के लोगों को भी चाहिए कि वे दूसरे लोगों के बनाए गए धर्म स्थलों चाहे वह किसी भी देवी, देवता या किसी का भी हो जाने ,अनजाने में वहां पर जाने से बचना चाहिए । क्योंकि हो सकता है अगला नंबर आपका हो, और आप पर भी आरोप बेअदबी या फिर अपवित्र करने का लगे। आपको भी सरेआम मार दिया जाए । फिर सरकार ,शासन, प्रशासन, नेता, अभिनेता ,मंत्री, संत्री ,एनजीओ सब लोगों के मुंह पर ताले पड़ जाए ।कोई मुंह खोलने बर की हिम्मत नहीं जुटा पाए तो फिर ऐसे किसी धार्मिक स्थल में जाने का क्या फायदा जहां आपको सिर्फ प्रताड़ना अपमान और मौत मिले । ऐसे में सिर्फ बाबा साहब के संविधान पर भरोसा करना चाहिए और कानूनी लड़ाई के आधार पर ही अपने अधिकार हासिल करना चाहिए । क्योंकि उन्हें और कोई ग्रंथ न्याय नहीं देने वाला है। उन्हें सिर्फ भारतीय संविधान ही न्याय देने वाला है और दोषियों को दंडित करने वाला है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा संविधान पढ़ना चाहिए।
शिक्षा के मंदिर में जाएं
आप शिक्षा के मंदिर में जाएं जहां से आपको संविधान ओर कानून की जानकारी मिले जिसे पढ़कर कम से कम आप अपने हितों की रक्षा तो कर सकेंगे। एक इंसान की हत्या करने वालों का मान सम्मान हो उनके समर्थन में नारेबाजी लगे इससे साफ बात है कि लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं हुआ है। भले ही हम चांद पर जाएं, सूरज पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। दलित राष्ट्रपति बने या प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री, फिर उद्योगपति इससे भी कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है । जब तक लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा उसको दलित होने के कारण तिल तिल कर मरना ही है। भले ही वह एक धर्म से दूसरे धर्म मैं शामिल हो जाए ग्रहण कर ले उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । क्योंकि वहां भी उसके साथ ऐसा ही आचरण होता है। ऐसे में बचाव ही उपचार है।
सब ने साधी चुप्पी
बेरहमी से हत्या के बाद सब ने साधी चुप्पी एक युवक की सरेआम हत्या कर दी जाती है ,और जिस तरीके से उसका कत्ल किया जाता है, जिस बात का आरोप लगाकर उसकी हत्या की जाती है। उसके बाद में चारों तरफ सन्नाटा और एक खामोशी है। एक अजीब सा डर भी है । जिसके चलते किसी ने भी अभी तक एक बयान तक जारी करके इस घटना की निंदा नहीं की है । लाखों संगठन ,सैकड़ों राजनीतिक पार्टियां ,हजारों की संख्या में एनजीओ, हजारों की संख्या में नेता ,अभिनेता, किसी के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला । विपक्षी पार्टियां कोई भी इस विषय में बोलना ही नहीं चाहते। छोटी-छोटी बातों पर टीवी चैनलों पर बड़ी-बड़ी बहस करके गला फाड़ने वाले लोगों ने भी इसे मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं की। बड़े समाचार पत्रों में भी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कोई बहस नहीं छेड़ी गई । जाहिर सी बात है कि उनके लिए एक दलित की हत्या तो मुद्दा है ही नहीं। हत्या करने का तरीका भी उनके लिए कोई विषय नहीं है जिस पर एक बड़ी बहस खड़ी की जा सकती है ।इसलिए वह न तो इस पर स्पेस जाया करना चाहते हैं और मैं ही अखबार के पन्ने भरना चाहते। हालांकि सब चाहते हैं कि एक धर्म ग्रंथ को अपमानित करने वाले को सजा मिलनी चाहिए । लेकिन यह सलाह देने का काम यदि कोर्ट के माध्यम से होता तो सब इसका स्वागत करते हैं । लेकिन जिस तरह की सजा दी गई है और जिस तरीके से की गई है वह तालिबानी तरीका तो किसी भी स्थिति में देश में मंजूर नहीं किया जा सकता है । वरना क़ानून के राज का इंकलाब ही खत्म हो जाएगा।