“यह कलयुग नहीं, यह मानसिक पतन का युग है” ✍️ हेमराज तिवारी

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लोक टुडे न्यूज नेटवर्क

“जब गुनाह भारी हो और जमीर बोझिल, तब इंसान बहाना ढूंढता है — और उसे मिल जाता है ‘कलयुग’।”

अक्सर हम सुनते हैं —
किसी ने रिश्ता तोड़ा,
किसी ने अपनों को लूटा,
कहीं बच्चों को बेचा गया,
तो कहीं बहन-बेटियों को दरिंदगी का शिकार बनाया गया ,

और प्रतिक्रिया?
“क्या करें भाई… कलयुग है!”

मानो ‘कलयुग’ एक सर्टिफिकेट ऑफ क्राइम हो —
जिसके नाम पर हर पाप, हर भ्रष्टाचार, हर धोखा, हर अमानवीयता पवित्र घोषित कर दी जाती है।

लेकिन सवाल यह है:
क्या वास्तव में दोष समय का है, या हमारे सोचने के तरीके का?

कलयुग = कल + युग = तकनीक का समय

‘कलयुग’ शब्द का तात्पर्य है — “कल का युग”, यानी आधुनिक, तकनीकी, तेज़, डिजिटल युग, यह वह युग है जिसमें एक क्लिक में सत्य की पड़ताल की जा सकती है,

तकनीक के ज़रिए दुनिया की कोई भी जानकारी मिल सकती है,

मनुष्य अपने निर्णयों का ज़िम्मेदार खुद बन सकता है।

आज का युग अंधकारमय नहीं, बल्कि अतिभौतिक और अतिसचेतन है।
यह युग अवसरों का युग है — परंतु मनुष्यता से कटे हुए लोगों के हाथों में अवसर, केवल विनाश करते हैं।

“दुनिया मुझे वैसी ही दिखती है, जैसी मैं स्वयं हूं”

एक मनोविज्ञान है —
जिसका अंतर्मन कुंठित, स्वार्थी, लालची और संदेहपूर्ण होता है, उसे पूरी दुनिया वैसी ही प्रतीत होती है।

जिस इंसान को खुद पर भरोसा नहीं,
जो हर चीज़ में स्वार्थ तलाशता है,
जो हर रिश्ते में सौदा ढूंढता है —
वो ही कहता है: “अब कोई अच्छा नहीं बचा… सब कलयुग है!”

असल में, ये लोग कलयुग को दोष नहीं देते — वो अपना प्रतिबिंब समाज पर थोपते हैं ,यह आत्मदया नहीं, आत्मवंचना है।

विकास वहीं संभव है जहां ‘स्व’ की पहचान हो

हर युग में अंधकार रहा है, लेकिन प्रकाश भी उतना ही रहा है।
बुद्ध, कबीर, विवेकानंद, गांधी, टैगोर, स्वामी राम, ओशो — हर युग में कुछ लोग ऐसे हुए जिन्होंने अपने भीतर के युग को बदला, और फिर दुनिया को।

प्रश्न यह नहीं कि युग कैसा है —
प्रश्न यह है कि आप कौन हैं इस युग में?
“Before knowing anything, first know yourself.”
— यही चेतावनी नहीं, यही चेतना है।

अगर आप ‘कलयुग’ कह रहे हैं, तो आप स्वयं युगच्युत हैं

जब आप ‘कलयुग’ कहकर पल्ला झाड़ते हैं:तो आप अपराध को आम मान लेते हैं। आप नैतिकता को पुराना मान लेते हैं। आप मनुष्यता को असंभव मान लेते हैं। आप अपने भीतर के साहस को मार देते हैं और यही सबसे बड़ा अपराध है — अपने भीतर के मनुष्य की हत्या।

समाधान क्या है?

1. ‘कलयुग’ कहना बंद करें, ‘मैं क्या कर सकता हूं?’ पूछें।

2. अपने भीतर झांकें, दूसरों को दोष देने से पहले।

3. हर गुनाह को कलयुग का जामा पहनाने की बजाय, उसे उजागर करें।

4. विचारों से युग बनते हैं — और विचार आप चुनते हैं।

युग वो नहीं होता जो समय तय करे, युग वो होता है जो चेतना गढ़े
यह ‘कलयुग’ नहीं, यह ‘तटस्थता युग’ है —
जहां लोग सच्चाई जानते हैं, पर आंखें मूंद लेते हैं।
जहां लोग अन्याय देख सकते हैं, पर चुप रह जाते हैं।
जहां लोग सवाल पूछ सकते हैं, पर डर जाते हैं।

पर याद रखिए — चुप रहना भी एक अपराध है।
और जो मनुष्य स्वयं से सवाल पूछने का साहस रखता है, वही भविष्य को गढ़ता है।

“कलयुग नहीं, यह ‘कर्मयुग’ है — अब सवाल यह है कि आप कौन-सा कर्म चुनते हैं?”

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