लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
हेमराज तिवारी वरिष्ठ पत्रकार
“जब प्रहरी ही पीड़ा का शिकार हो जाए, तो प्रश्न केवल व्यक्ति का नहीं होता, व्यवस्था की आत्मा पर चोट होती है।”
राजस्थान की अफसरशाही इस समय एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां ईमानदार अफसरों की आवाज़ को दबाने के लिए पद, सत्ता और राजनीतिक गठजोड़ का दुरुपयोग एक स्वाभाविक प्रक्रिया बनता जा रहा है। इसका ताज़ा उदाहरण है—IPS पंकज चौधरी द्वारा ADG रैंक के वरिष्ठ अधिकारी संजीव नार्जरी और मुख्य सचिव सुंधाश पंत के विरुद्ध की गई शिकायत।
यह मामला केवल एक अफसर की व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है; यह हमारे नौकरशाही तंत्र के उस हिस्से को बेनकाब करता है, जहाँ ईमानदारी को सज़ा और चापलूसी को इनाम मिलता है।
जब ‘ग्रेस’ ही ‘क्रूरता’ बन जाए
जिस Annual Confidential Report (ACR) का उद्देश्य अफसर के काम की निष्पक्ष समीक्षा है, वही अगर प्रतिशोध का औजार बन जाए, तो प्रशासन का स्तंभ ही हिल जाता है। पंकज चौधरी को पहले 9.11 और 9.27 की उच्च ग्रेडिंग मिलती है और अचानक एक ADG उन्हें 7 अंक दे देता है—ऐसा कैसे?
क्या यह महज़ एक ‘दुर्घटना’ है या एक सटीक ‘राजनीतिक निर्देश’? और अगर ऐसा है, तो राज्य का मुख्य सचिव उसमें शामिल कैसे हो सकता है?
सत्ता-प्रशासन-राजनीति की तिकड़ी
सवाल यह भी है कि क्या कोई ADG‑रैंक अधिकारी अपनी मर्जी से ऐसा कर सकता है या उसके पीछे सत्ता के संकेत काम कर रहे हैं? शिकायत में यह आरोप भी शामिल है कि यह सब कुछ उस समय हुआ जब राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं गर्म थीं।
अगर एक वरिष्ठ अधिकारी ईमानदारी से सेवा कर रहा है, और उसे उसकी स्पष्टवादिता या “राजनीतिक न झुकने की आदत” की वजह से निशाना बनाया जाता है—तो यह केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि प्रशासनिक आतंकवाद है।
न्याय की तलाश या न्याय का विसर्जन?
IPS पंकज चौधरी जैसे अधिकारी यदि CAT (Central Administrative Tribunal) में जाकर न्याय मांगने को मजबूर हैं, तो यह पूरे सिस्टम की असफलता है। और अगर CS जैसे सर्वोच्च नौकरशाह भी इस साजिश में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल पाए जाते हैं, तो यह केवल ‘पद की मर्यादा’ ही नहीं, बल्कि ‘जन विश्वास’ की भी हत्या है।
चुप रहना अब अपराध है
जो मौन हैं – वे भी भागीदार हैं। यदि वरिष्ठ IPS अधिकारियों की आवाज़ को इस तरह कुचला जा सकता है, तो एक आम सरकारी कर्मचारी या जनता का क्या होगा? ये घटनाएं हमें उस गहरे सड़ांध की ओर इशारा करती हैं जो हमारी शासन प्रणाली में फैल चुकी है।
यह वक्त केवल ‘सुनने’ का नहीं, बोलने का है।
यह वक्त केवल ‘शिकायत’ का नहीं, सुधार का है।
यह मामला एक अफसर की ‘ACR’ से शुरू हुआ था, लेकिन अब यह एक राज्य की ‘ECR’ (Ethical Confidential Report) बन चुका है।
राजस्थान सरकार और न्यायिक संस्थानों को यह दिखाना होगा कि वह निष्पक्षता, ईमानदारी और प्रतिष्ठा की रक्षा कर सकते हैं—वरना नौकरशाही को ‘अदृश्य सत्ता’ की गुलामी से बचाना असंभव होगा।
“जब सच्चाई को कुचलने वाले ही प्रशंसा के पात्र बन जाएं, तो व्यवस्था नहीं, गुलामी जन्म लेती है।”