लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
कंटेंट : राखी जैन- वरिष्ठ पत्रकार
मेहरानगढ़ –किला ऐसी ही एक धरोहर है — जो शौर्य की चट्टानों पर बसा
राजस्थान की धरती पर कुछ किले ऐसे हैं जो सिर्फ ईंट और पत्थर के ढांचे नहीं हैं, बल्कि जीवित गाथाएं हैं। जोधपुर का मेहरानगढ़ किला ऐसी ही एक धरोहर है — शौर्य की चट्टानों पर बसा, स्थापत्य की पराकाष्ठा पर खड़ा, और इतिहास की धड़कनों को महसूस करता हुआ।
इस ट्रेवल डायरी में मैं आपको ले चल रही हूँ उस भव्य गढ़ की सैर पर, जो 561 वर्षों से 400 फीट ऊँची चट्टान पर सीना ताने खड़ा है — मेहरानगढ़ फोर्ट।
शौर्य की चट्टान पर बसा महाकाय किला
1459 में राव जोधा द्वारा निर्मित, मेहरानगढ़ न सिर्फ राजस्थान का सबसे विशाल किला है, बल्कि स्थापत्य और सुरक्षा दृष्टि से भी अद्वितीय है। 400 फीट ऊँची चट्टान पर बना ये किला दूर से ऐसा लगता है जैसे बादलों को चीरता हुआ, पूरे शहर पर अपनी निगहबानी कर रहा हो।
यहाँ तक पहुँचने से पहले 7 विशाल दरवाज़े आते हैं — जिनमें से एक है जयपोल, जिसे राव मान सिंह ने जीत के बाद बनवाया था। एक और है लोहा पोल, जिसके पास आज भी राजपूत वीरों की वीरगति को स्मरण करने वाले शहीदों के हाथों की छापें मौजूद हैं।
मेहरानगढ़ फोर्ट अपनी प्रभावशाली स्थापत्य कला, जटिल नक्काशीदार बलुआ पत्थर के पैनल, भव्य आंतरिक भाग और जालीदार खिड़कियों के लिए प्रसिद्ध है. किले में कदम रखते ही एक अलग ही संसार खुलता है। मोती महल, फूल महल, शीश महल, जनाना ड्योढ़ी — हर महल किसी कहानी की तरह सामने आता है। यहाँ का संग्रहालय राजाओं की तलवारें, पालकियां, पोशाकें और संगीत वाद्य यंत्रों से भरा है — हर वस्तु जैसे अपने समय की कहानी कह रही हो।
इस किले की प्राचीरों पर आज भी लगी हैं अलग-अलग आकार की तोपें, जो दर्शकों को कौतूहल से भर देती हैं। लोग आज भी यह सोचते हैं कि क्या ये सच में गरजती थीं?
उत्तर है – हाँ, और न सिर्फ युद्धकाल में।
त्योहारों, खास अवसरों पर भी तोपें दागी जाती थीं। ये केवल शस्त्र नहीं, बल्कि एक परंपरा, एक गूंजती हुई पहचान थीं।
मेहरानगढ़ फोर्ट न केवल स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, राठौड़ों की शौर्यगाथा और राजसी जीवन के गौरव को संजोए हुए है। अगर आप जोधपुर आ रहे हैं, तो इस किले की सैर केवल दर्शनीय नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव होगी।
Lensman Yogesh Sharma की नज़रों से मेहरानगढ़ और भी जीवंत हो उठता है।