लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
खेड़ली, अलवर। (इकलेश शर्मा ) खबर खेड़ली अलवर से है जहां एक 10 साल की अबोध बच्ची अंजू मीणा अपनी समझदारी, हिम्मत और लोगों की सतर्कता से एक नकली साधु के चंगुल में फंसने से बच गई। खुद की सतर्कता और हिम्मत से साधु के हाथ पर काटकर बच्ची रेलवे स्टेशन से भाग कर अपनी जान बचाई । जिसे लोगों की सतर्कता ने उसके परिजनों तक पहुंचाया। आज बच्ची की हिम्मत की चर्चा सब कर रहे हैं ,किस तरह से अंजू जो की छठी क्लास की स्टूडेंट है ने अपने आप को एक बदमाश से बचाया। मासूम अंजू ने बताया कि वह सवेरे अपने माता-पिता की पास खेत पर जा रही थी, इस दौरान एक साधु जो पीले वस्त्र पहने हुए था उसने एक टॉफी खाने को दी ,टॉफी खाने के बाद उसने कुछ पैसे दिए और कहा कि मेरे पीछे-पीछे आ जाओ। साधु के पीछे एक मेरी जैसी ही लड़की और चल रही थी ट्रॉफी खाते ही मैं साधु के पीछे-पीछे जाने लगी। साधु हमें रेलवे स्टेशन खेरली ले गया खेड़ली ले जाने के बाद वह हमसे थोड़ी दूर जाकर बैठ गया और हमें एक कोने में बैठा दिया ।थोड़ी देर में ट्रेन आ गई सब बोले, ट्रेन में बैठो। इसी दौरान मुझे थोड़ा सा होश आ गया, मुझे लगा मैं स्टेशन पर कैसे हूं? तो मैं साधु के हाथ पर काट खाया और वहां से भाग कर स्टेशन के बाहर आ गई। साधु दूसरी लड़की को अपने साथ लेकर चला गया ।
मैं बाहर आकर एक दुकान पर चली गई ,वहां मैंने कुछ खाने पीने की सामग्री खरीदी और मैं रोने लग गई। दुकानदार महेंद्र अग्रवाल ने बताया कि बच्चों के पास ₹120 थे और बच्ची ने ₹20 का खाने-पीने का सामान खरीदा। बच्ची पास में बैठकर खाने लगी, अनजान बच्ची को देखकर मैंने उसके बारे में जानने की कोशिश की लेकिन बच्ची ने कोई भी जानकारी होने से इनकार कर दिया। थोड़ी देर बाद में बच्ची ने 100 का नोट दिया और ₹20 की नमकीन मांगी, तब दुकानदार ने बताया कि मैंने उससे पूछा बच्ची कहां रहते हो ,किराए से रहते हो तो किसके मकान में रहते हो, तुम्हारा नाम क्या है? इतना सुनते ही बच्ची रोने लग गई।
तभी दुकानदार में पास में रहने वाले रिटायर्ड मास्टर जी केदार दीक्षित को बताया कि बच्ची कुछ बता नहीं रही है और रो रही है ।रिटायर्ड मास्टर जी ने जब बच्ची को देखा तो बच्ची रो रही थी और उसे कुछ भी याद नहीं था। मास्टर जी ने सतर्कता दिखाते हुए बच्ची को अपने साथ ले गए और घर ले जाकर खाट पर लिटा दिया। थोड़ी देर बाद में ही बच्ची को थोड़ा सा होश आया तो उसने मास्टर जी से कागज और पेन मांगा । कागज और पेन पर बच्ची ने अपनी स्कूल का नाम लिखा। पिताजी का नाम लिखा और दो स्कूल की टीचर्स का नाम लिखा । बस इसके बाद मास्टर जी ने स्कूल में बच्चोी के मास्टर जी से अपने संपर्क से स्कूल के मार्फत बच्चों के माता-पिता के संपर्क किया। बच्चों के माता-पिता तो बच्ची को ढूंढ रहे थे ।
जानकारी मिलने पर बच्ची के पिता मौके पर पहुंचे । बच्ची माता-पिता को देखकर फूट-फूट कर रोने लगी । बच्चों ने बताया कि किस तरह से एक साधु बने हुए व्यक्ति ने उसे टॉफी खिलाकर अपने साथ ले जाने की कोशिश की । वह अपहरण करके उसे ट्रेन में ले जाना चाहता था लेकिन सतर्कता से उसे होश आने पर वह उसके हाथ पर काटकर भाग गई । लेकिन उसके साथ में जो एक लड़की और थी जिसे वह नहीं जानती है ,उसे वह साधु ले गया । लोगों की सतर्कता, सावधानी और समझदारी से और बच्ची की किस्मत अच्छी थी कि उसे समय पर होश आ गया और उसने हिम्मत दिखाई और वह भाग कर स्टेशन के बाहर आ गई नहीं तो न जाने उस मासूम बच्ची के साथ क्या होता ? लेकिन सबसे बड़ी बात है कि जब स्टेशन पर इस तरह के बदमाश बच्चों का अपहरण करके ले जाते हैं, तब वहां पर मौजूद स्टाफ, सुरक्षाकर्मी ,आरपीएफ के जवान क्या करते हैं? क्योंकि जब दो बच्चियां किसी साधुनुमा व्यक्ति के पीछे-पीछे जा रही है । स्टेशन पर बैठ रही है और उसके बावजूद किसी भी सुरक्षा कर्मी की उन पर नजर नहीं पड़ना यह सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती है, जो दावे किए जाते हैं वह हकीकत में सब खोखले हैं अंजू मीना तो अपनी सतर्कता, हिम्मत और लोगों की जागरूकता के चलते एक बदमाश के चंगुल में फंसने से बच गई। उसके पिता इंतराम मीना और उनके परिजन खुश है कि उनकी बच्ची बच गई । आज उनके पास है लेकिन अंजू मीना चाहती है कि और बच्चे भी सतर्क रहें ,किसी भी व्यक्ति से कोई भी चीज खाने-पीने की नहीं ले और उनसे दूरी बनाकर रखें।