संडे मेगा स्टोरी – Loktoday
हेमराज तिवारी | विशेष संपादकीय
“आज के बच्चे बहुत सवाल पूछते हैं…”
ये वाक्य हम सबने सुना है। लेनकिन जब ये ‘बच्चे’ अब युवाओं में बदल चुके हैं और समाज की धारा को प्रभावित कर रहे हैं — तो सवाल सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बन चुके हैं।
यह लेख उन 50 सवालों से शुरू होता है जो आज की Gen Z (1997 से 2012 के बीच जन्मे युवा वर्ग) अक्सर पूछती है। लेकिन वह यहीं नहीं रुकता — यह उस सोच का गहन विश्लेषण भी करता है कि आखिर इस पीढ़ी की बेचैनी, बौद्धिकता और बैचेनी हमें क्या सिखा रही है?
सवाल नहीं, चेतावनी हैं!
Gen Z सिर्फ सवाल नहीं पूछती — वे “क्यों”, “क्यों नहीं” और “अब क्यों नहीं?” जैसे प्रश्नों से एक नई वैचारिक चुनौती पेश करती है।
उदाहरण के लिए:
“क्या मैं अपनी नौकरी AI से खो दूंगा?”
“क्या खुद से प्यार करना सेल्फिश है?”
“क्या रिश्ते अब टिकते नहीं?”
इन सवालों में कहीं भय है, कहीं भ्रम — लेकिन सबसे ज़्यादा है बदलाव की भूख।
डिजिटल जन्म, वर्चुअल संघर्ष
Gen Z वह पीढ़ी है जिसने अपना बचपन यूट्यूब के ट्यूटोरियल में बिताया, किशोरावस्था इंस्टाग्राम के फोल्डर्स में और अब अपनी व्यस्कता ChatGPT, LinkedIn और डिस्कॉर्ड के स्पेस में जी रही है।
यही कारण है कि वह सामाजिक संवाद और व्यक्तिगत पहचान के बीच एक जद्दोजहद में जी रही है।
वे कहते हैं:
“हम सबसे ज्यादा जुड़े हुए हैं, फिर भी सबसे ज्यादा अकेले हैं।”
“हमारे पास हजारों फॉलोअर्स हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।”
मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-स्वीकृति:
Gen Z की खासियत है कि वो mental health पर बात करने से नहीं डरती।
जहां पिछली पीढ़ियाँ डिप्रेशन या एंग्जायटी को “कमज़ोरी” कहकर दबा देती थीं, वहीं Gen Z उसे “हीलिंग” की दिशा में पहला कदम मानती है।
वे थेरेपी को एक शर्म नहीं, बल्कि साहस मानते हैं।
वे toxic positivity को पहचानते हैं और “it’s okay not to be okay” कहने से नहीं हिचकते।
रिश्तों का नया व्याकरण:
Gen Z प्यार को सिर्फ “status update” या शादी के रजिस्ट्रार तक नहीं सीमित मानती।
वे commitment में “ईमानदारी”, space में “सम्मान”, और संबंधों में “mutual growth” खोजते हैं।
रिश्ते उनके लिए ownership नहीं, partnership हैं।
और breakup को वो अंत नहीं, सीख मानते हैं।
करियर और शिक्षा की परिभाषा बदली है:
जहां पिछली पीढ़ियों के लिए ‘इंजीनियर–डॉक्टर–सरकारी नौकरी’ ही सफलता थी, वहीं Gen Z के लिए ये सब “विकल्प” हैं, आवश्यकताएं नहीं।
वे Digital Nomad बनना चाहते हैं।
उन्हें Side Hustles की आज़ादी चाहिए।
वे नौकरी से ज़्यादा Work-Life Balance को अहमियत देते हैं।
सामाजिक चेतना और जागरूकता:
Gen Z ने सोशल मीडिया को सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक्शन प्लैटफॉर्म में बदल दिया है।
वे climate change, gender equality, mental health, LGBTQ+ rights जैसे मुद्दों पर सिर्फ हैशटैग नहीं चलाते, बल्कि रियल बदलाव लाने की कोशिश करते हैं।
पुराने फ्रेम में नई तस्वीर नहीं फिट होती:
आज की युवा पीढ़ी को अगर भ्रमित, अस्थिर और विद्रोही कहा जाता है — तो यह उस समाज का आईना है जो अपने पुराने नियमों को ढोता जा रहा है।
उनकी मांग नहीं है – सम्मान, आज़ादी और स्वीकृति।
उनकी सोच है – “तुम्हारा अनुभव है, हमारा एक्सपेरिमेंट है।”
एक मंथनशील क्रांति
Gen Z को समझने के लिए पुराने शब्दकोष काम नहीं आएंगे।
उन्हें न ‘खोई हुई पीढ़ी’ समझना चाहिए, न ‘बिगड़ी हुई’।
वे एक ऐसी क्रांति हैं जो भीतर से शुरू हुई है — जहां खुद को जानना ही पहला आंदोलन है।
वे अपनी कहानी लिखना चाहते हैं, न कि पहले से तय स्क्रिप्ट को निभाना।
वे दुनिया नहीं बदलना चाहते – खुद को बदलकर दुनिया में फर्क लाना चाहते हैं।
“अगर आप Gen Z से डरते हैं, तो शायद आपको खुद के स्थायित्व से डर है।
क्योंकि Gen Z की बेचैनी में ही वो बीज है — जो आने वाले समाज का चेहरा गढ़ेगा।”
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