बाल विवाह एक अभिशाप, सरकार डाल -डाल, लोग पात -पात
आखातीज पर ही नहीं, पहले और बाद में भी होते हैं बाल विवाह
शादी के खर्चों से बचने के लिए लोग करते हैं बाल विवाह
गरीबी और अशिक्षा के कारण होते हैं बाल विवाह
मुस्लिम समुदाय में भी होते बाल विवाह
लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
नीरज मेहरा की रिपोर्ट
जयपुर। दुध मूंहे बच्चे, उम्र कहीं 5-6 साल,कहीं 8-9 साल तो, कहीं पर 17 से 18 साल की उम्र के बच्चों के लग्न टीके हो चुके हैं। घरों में गणेश जी के बान भी बैठ चुके हैं, रिश्तेदारों, यार दोस्तों , भाई- बंधुओं को शादी में बुलाने के लिए कहीं पर पीले चावल तो ,कहीं पर कार्ड भेज दिए गए है। लेकिन कार्डस में न तो इन बच्चों के नाम है और ना शादी का जिक्र है, लेकिन विवाह में शामिल होने के बाद रिश्तेदारों को पता लगता है कि इस विवाह में छोटे बच्चों के भी पीले हाथ कर दिए गए। इस बार आखातीज 30 अप्रेल की है तो निश्चित तौर पर बाल विवाह भी जरुर होंगे। राजस्थान में प्रशासन – सरकार भले ही कितनी ही ताकत लगा ले, बाल विवाहों पर अंकुश लगाने में अभी भी बड़ी परेशानी आ रही है। हालांकि शिक्षा के साथ- साथ बाल विवाहों में कमी जरुर आई है लेकिन सरकार ये दावा करे की बाल विवाह पुरी तरह रुक गए है, तो ये सिर्फ कोरा कागजी दावा हो सकता है, लेकिन हकीकत में बाल विवाहों पर रोक नहीं लगी है । हां अब इन बाल विवाहों का स्वरुप बदल चुका है। इनके फेरे अब सार्वजनिक नहीं होकर एकाकी होते है, जहां परिवार के कुछ चुनिंदा लोग होते है। पंडित जी के स्थान पर घर के ही लोग फेरे करा लेते हैं। घोड़ी बाजा नहीं होता ,दुल्हे को बिंदायक के रुप में गुपचुप स्थान पर ले जाकर शादी कर ली जाती है। आखातीज 30 अप्रेल की है तो लोग बाल विवाह 27, 28, 29 या फिर एक दो मई को भी हो सकते हैं ,ऐसे में सरकार कैसे रोके बाल विवाह ? कई बार घर के बाहर पुलिस फहरा देती रहती है और घर के आस- पास में बच्चों के फेरे हो जाते है। इनका न तो वीडियो बनता है न फोटो खिंचती है। यदि परिवार में से कोई गलती से फोटो ले ले तो ये प्रशासन तक पहुंच जाती है। समाचार पत्रों के फोटोग्राफरों पर भी मुकदमा दर्ज होने लगा है, इसलिए वे भी फोटो नहीं खिंचते है। इसलिए अब भी बाल विवाह हो रहे है। संख्या जरुर कम हुई है । सरकार की सख्ती का असर भी है लेकिन गरीबी के कारण ही लोग बाल विवाह करते है। क्योंकि उनके पास बच्चों की शादी के लिए पैसा नहीं होता ,बाल विवाह करते समय उनका विवाह बालिग, चाचा, भाई ,बुआ या बहिन के साथ कर दिया जाता है। जिसमें एक साथ पांच- सात विवाह होते है। कार्ड बालिगों के छपते है , बंटते भी वही है जिससे प्रशासन ,स्थानीय लोग चाहकर भी शिकायत नहीं कर पाते। कभी कभार ही इस तरह के बाल विवाहों का खुलासा होता है। सरकार भी हर आदमी के पीछे किसी को लगा नहीं सकती। ये संभव भी नहीं है। इसलिए सरकार बाल विवाह रोकने के लिए बार-बार प्रयास करती है, ठोस कदम भी उठाती है ,सजा का प्रावधान भी है, लेकिन सरकार चलती है, डाल -डाल तो लोग चलते हैं पात-पात।
आखातीज अबूझ सावा इसलिए शादियां ज्यादा
आखातीज को अबूझ सावा माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार आखातीज पर होने वाली बगैर मुहर्त की शादियां लंबी चलती है। इसलिए लोग आखातीज पर सबसे ज्यादा शादियां करते थे। बाल विवाह भी आखातीज पर इसलिए ज्यादा होते थे। लोगों की सोच है की आखातीज के दिन होने वाली शादियां सात- जन्मों का साथ निभाने वाली होती है। इसलिए लोग बगैर किसी भी मुहर्त के आखातीज को शादियां ज्यादा करते है। अबूझ सावा होने के कारण इस दिन बाल विवाह सबसे ज्यादा करते हैं। उन्हें भरोसा होता है की आज के दिन होने वाली शादियां कभी नहीं टूटेगी नहीं। हालांकि ये भ्रांति ही है. शादियां तो आजकल जिस दिन विचार मिलना बंद हो जाते है टूट जाती है।
बाल विवाह खुशी या मजबूरी ?
कभी बाल विवाह करना परिवारों की मजबूरी थी । गरीबी- अशिक्षा और संतानों के ज्यादा होने के साथ – साथ मुगलकाल में मुगलों से बेटियों को बचाने के लिए भी बाल विवाह की शुरुआत मानी जाती है। लेकिन धीरे- धीरे ये डर लोगों में परम्परा बन गई। कई सालों तक राजस्थान, मध्यप्रदेश और कई हिंदी भाषी प्रदेशों में बाल विवाह करना एक रिवाज सा बन गया था। लोग बाल विवाह करना सौभाग्य मानने लगे। माता-पिता को लगता था उन्होंने अपने बच्चों की शादी करके पिता के ऋण से मुक्ति ले ली। लेकिन ये बाल विवाह माता- पिता को बच्चों की खुशियां का गला घोंटने वाली साबित होती थी, क्योंकि इस उम्र के बच्चे समझते भी नहीं थे की आज उनका विवाह हो रहा है। इसलिए कई परिवार तो मजबूरी में अपने बच्चों का बाल विवाह करते थे, अधिकांश लोग सिर्फ शादी के खर्चे से बचने के लिए बाल विवाह करते हैं।
गरीबी- अशिक्षा बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण
गरीबी और अशिक्षा ही बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। क्योंकि लोगों के संतानें ज्यादा होती थी और विवाह करने में पैसा बहुत खर्च होता था । पैसों के खर्चों से बचने के लिए ही माता- पिता बच्चों की शादी कर देते थे। कई बार भाईयों के बड़े बेटे- बेटियों के कारण भी छोटे बच्चों की शादी कर दी जाती थी। लेकिन बाल विवाह करने का सबसे बड़ा कारण गरीबी और अशिक्षा ही माना जाता था। लोग खर्चे से डरते थे जिसके चलते एक साथ एक परिवार की कई – कई बेटे- बेटियों की शादी कर देते थे।
इसलिए अब भी बाल विवाह हो रहे है। संख्या जरुर कम हुई है । सरकार की सख्ती का असर भी है लेकिन गरीबी के कारण ही लोग बाल विवाह करते है। क्योंकि उनके पास बच्चों की शादी के लिए पैसा नहीं होता इसलिए बाल विवाह करते समय उनका विवाह बालिग, चाचा, भाई ,बुआ या बहिन के साथ कर दिया जाता है। जिसमें एक साथ पांच- सात विवाह होते है। कार्ड बालिगों के छपते है , बंटते भी वही है जिससे प्रशासन स्थानीय लोग चाहकर भी शिकायत नहीं कर पाते। कभी कभार ही इस तरह के बाल विवाहों का खुलासा होता है। सरकार भी हर आदमी के पीछे किसी को लगा नहीं सकती। ये संभव भी नहीं है।
विवाह के खर्च से बचने को बाल विवाह
लोगों ने बताया की गरीबी- अशिक्षा के साथ- साथ विवाह में होने वाले भारी भरकम खर्च से बचने के लिए ही लोग बाल विवाह करते है। जिससे शादी के दौरान होने वाले भारी कर्जे से बचा जा सके। आज भी गांवों में लोग शादियों में कर्जा करके ही शादियां करते है। जब उन्हें लगता है परिवार के तीन बालिगों के सात उनके चार नाबालिग बच्चों की भी शादी हो जाएगी तो वे इसके लिए तुरंत तैयार हो जाते है और फिर उनकी गुपचुप शादी करा देते है। जबकि मन उनका भी बाल विवाह करने का नहीं होता लेकिन मजबूरी होती है।
बाल विवाह करना अपराध
आजादी के पूर्व तो बाल विवाह करना सामान्य बात थी। लेकिन आजादी के बाद बाल विवाह के कई बदरुप भी देखने को मिले। जिसके चलते बाल विवाह के दुष्परिणाम ज्यादा दिखने लगे। छोटे बच्चों की शादी हो जाती तो लड़कियां छोटी उम्र में मां बन जाती। इस दौरान बहुत सी बच्चियां मां बनते समय मर जाती थी। कई बार बेमेल विवाह भी हो जाते। धीरे- धीरे लोगों में भी जागरुकता आई और लोगों के साथ सरकार ने भी शारदा एक्ट 1229 लागू कर बाल विवाह को अमान्य करार दिया।
संयुक्त परिवारों में बाल विवाह ज्यादा
बाल विवाह संयुक्त परिवारों में ज्यादा होते है। यहा एक भाई के बच्चे 22 से 25 साल के है और उससे छोटे भाई के बच्चे यदि 5-7 साल के है तो वे एक ही खर्चे में सबकी शादियां कर देते है। इस तरह से चाहे छोटे भाई और उसकी पत्नी अपने बच्चों के विवाह से इंकार करे तो भी परिवार के अन्य लोग दबाव बनाकर खर्चे से डराकर बच्चों की शादियां कर देते है। जिससे बाल विवाह टूटते भी बहुत ज्यादा है। लेकिन ये विवाह भी होते आपसी रिश्तेदारी में ही जहां एक दूसरे पर सामाजिक दबाव बना रहता है। इसलिए संयुक्त परिवारों में बाल विवाह ज्यादा होते है। ये लोग दिखाने के लिए शादी बालिगों की करते है लेकिन उस विवाह की आड़ में दो- चार छोटे बच्चों की भी शादी करके जिंदगी बर्बाद कर देते है। ऐसे में प्रशासन भी इनको कैसे रोके। यदि कोई रिश्तेदार भी शिकायत करना चाहे तो नहीं कर पाता है। क्योंकि जिस दिन प्रशासन चैक करने जाए उसे वहां कुछ नहीं मिलता। इसलिए वे लोग बाल विवाह करके भी अपराध करने से बच जाते है।
मुस्लिम परिवारों में भी होते है बाल विवाह
लोगों को लगता है की बाल विवाह केवल हिंदुओं में ही होते है। हकीकत ये है की मुस्लिम समुदाय में भी बाल विवाह खूब होते है। वहां भी गरीबी और अशिक्षा के चलते ही लोग अपने छोटे बच्चों के निकाह करते है। मुस्लिम समुदाय में गरीबी और अशिक्षा सबसे ज्यादा है।
बाल विवाह पर रोक संभव
शिक्षा के साथ-साथ आ रही जागरुकता से ही बाल विवाह पर रोक संभव है। अब लोगों के संतानें भी कम हो रही है। बच्चों की पढाई पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जिससे भी बाल विवाह में कमी आई है। अब तो लड़कियों की शादी में दिए जाने वाले दहेज को लड़की के माता- पिता बड़ा बोझ मानते है इससे बचने के लिए ही लड़कियों की शादी बचपन में अपनी दूसरी बड़ी संतानों के साथ करते है। धीरे- धीरे शिक्षा का विस्तार भी हो रहा है। सरकार ने जबसे बाल विवाह में शामिल पंडित, फोटोग्राफर, बैंड वादक, हलवाई, रिश्तेदारों, मास्टर, सरपंच, वार्ड मैंबरों आरोपी बनाना शुरु किया है। बाल विवाह में कमी जरुर आई है। अब लोगों में प्रशासन का डर जरुर बैठने लगा है। कई बाल विवाह भी अमान्य घोषित होने से अशिक्षित माता- पिता को भी लगता है कि कल को यह विवाह अमान्य सिद्द हो गया तो फिर क्या। इसलिए अब लोग डर के साये में ही करते हैं बाल विवाह। वो भी गरीबी के कारण विवाह के होने वाले खर्चे से बचने के लिए ही बाल विवाह सबसे ज्यादा होते है। इसलिए सरकार को दहेज पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। जिससे बाल विवाह रुक सके।