लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
जयपुर । जयपुर के भांकरोटा थाने के हेड कांस्टेबल बाबूलाल बैरवा को आत्महत्या किए हुए आज चार दिन हो चुके हैं, लेकिन अभी तक भी सरकार की तरफ से कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है। जिसके चलते अभी तक उनका अंतिम संस्कार तक नहीं हुआ है । मृतक हेड कांस्टेबल की पत्नी मीना देवी, बेटा तनुज और बेटी भी पिछले चार दिनों से अपने परिवार और समाज बंधुओ के साथ जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के मुर्दाघर पर धरने पर बैठे हैं । लेकिन प्रशासन की ओर से भी कोई ठोस भरोसा नहीं दिया गया ,जिसके चलते सभी लोगों में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है।
बीती रात उनकी पत्नी मीना देवी बेटे, तनुज ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था, जिसमें दोनों मां, बेटे और बेटी तीनों ने कहा था कि वह न्याय मिलने तक धरने पर डटे रहेंगे । वे लोग चाहते हैं कि जिन अधिकारियों के नाम सुसाइड नोट में लिखे हुए हैं उन्हें बर्खास्त किया जाए ।उनकी गिरफ्तारी हो, पत्रकार की गिरफ्तारी हो ,चारों पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो ।परिवार के नौकरी मिले और 2 करोड रुपए का आर्थिक मुआवजा दिया जाए, यदि ऐसा नहीं किया गया और शव का जबरन पोस्टपार्टम किया गया तो वह तीनों भी कोई भी कदम उठा सकते हैं ?
आधी रात बात पत्नी ने फिर वीडियो वायरल किया
हेड कांस्टेबल बाबूलाल बैरवा की पत्नी मीना देवी ने बेटे तनुज के साथ में आधी रात में एक वीडियो फिर बात वायरल किया और कहा कि सरकार और प्रशासन ध्यान दें यदि किसी भी सामाजिक संगठन या किसी अन्य के दबाव में आकर सरकार के दबाव में आकर मेरे पति का पोस्टमार्टम किया जाता है परिवार सहित कोई भी कदम उठा सकती है, जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी। जाहिर सी बात है कि इस वीडियो के बाद सरकार और प्रशासन के हाथ फूल गए। धरने पर भी प्रदेश भर के लोग रात भर बरसात के बावजूद मौजूद रहे । यहां मौजूद अधिकांश लोगों का एक ही सवाल था क्या आखिर एक दलित व्यक्ति की मौत पर ऐसा ही तमाशा होता है। यदि यही व्यक्ति किसी दूसरी जाति समाज का होता तो सरकार अब तक धरना स्थल पर पहुंचकर कई लोक लुबावनी घोषणाएं कर देती।
आज जूटेगी भीड़
कांस्टेबल के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए आज सवाई मानसिंह अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ जुड़ सकती है। आज रविवार का दिन है और भीम आर्मी, सर्व समाज ,सभी दलित संगठनों और बैरवा समाज के लोगों ने भी अधिक से अधिक संख्या में धरना स्थल पर पहुंचने की अपील की है । माना जा रहा है कि आज धरना स्थल पर लोगों की भीड़ जुट सकती है ।इसके चलते प्रशासन ने भी तैयारी कर ली है।
सुसाइड मामलों में पहले भी सरकारों ने दी है मदद
सरकारी कर्मचारियों के सुसाइड करने पर यदि कर्मचारी सुसाइड नोट में अधिकारियों के या किसी के भी नाम लिखा है या कोई भी व्यक्ति सुसाइड से पहले अगर सुसाइड नोट में किसी पर भी आरोप लगता है तो पुलिस प्रशासन उन्हें गिरफ्तार करती है। पूछताछ करती है, कई बार आरोप झूठे निकलते हैं और कई बार जांच में आरोपी बिल्कुल दोषी पाए जाते हैं। लेकिन प्रथम दृष्टा इस तरह के मामले आने पर पुलिस मुकदमा दर्ज कार्यवाही जरूर करती है ।यदि किसी थाने में या किसी पुलिस चौकी में कोई अपराधी भी सुसाइड कर लेता है तो पूरा का पूरा थाना बर्खास्त कर दिया जाता है। लेकिन बाबूलाल बैरवा के मामले में पूरा प्रशासन मौन नजर आ रहा है। जबकि बैरवा समाज से ही आने वाले प्रेमचंद बैरवा डिप्टी सीएम है, जो राजस्थान सरकार की बड़ी पोस्ट है। बैरवा समाज के खुद के 7 विधायक है। एससी के बीजेपी में लगभग 24 विधायक है । एसटी के 18 विधायक है। इसके बावजूद भी इन विधायकों की धरना स्थल पर जाकर परिवार या समाज के लोगों से बातचीत करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है। सबको या तो टिकट कटने का डर है, या फिर आने वाले समय में मंत्रिमंडल विस्तार में कहीं उनका नाम नहीं कट जाए, इसका डर है। यही कारण है कि यह लोग इस मामले से पीछे हट रहे हैं। किसी भी विधायक ने अभी तक इस मामले में पहल नहीं की है जिससे लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है।
उपचुनाव में दौसा, देवली उनियारा और झुंझुनू सीट पर होगा सीधा नुकसान
विधानसभा चुनाव के दौरान अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग में भारतीय जनता पार्टी को जमकर वोट कास्ट किया । यही कारण की विधानसभा चुनाव के दौरान अनुसूचित जाति की 90 फ़ीसदी से ज्यादा सीटों पर भाजपा जीती और एसटी वर्ग की भी अधिकांश सीटों पर भाजपा के विधायक जीते। राजस्थान में देवली उनियारा, दौसा, झुंझुनू, सहित 5 सीटों पर उप चुनाव होने हैं। इनमें से दौसा और देवली उनियारा में तो सीधे-सीधे एससी वर्ग में बैरवा समाज का ही बाहुल्य है। अनुसूचित जाति, जनजाति बहुल सीटों पर इसका सीधा सा असर पड़ेगा और सरकार ने यदि जल्द इस विषय में फैसला नहीं किया तो, विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। झुंझुनू सीट पर भी एससी वर्ग निर्णायक भूमिका में है। ऐसी स्थिति में यहां भी भारतीय जनता पार्टी को नुकसान झेलना पड़ेगा। एक सीट तो वैसे ही आदिवासी बहुल है और वहां पर मौजूद सांसद राजकुमार रोत पूर्व विधायक रहे हैं ऐसे में ऐसे में वहां भी एससी एसटी ही निर्णायक भूमिका में है और खींवसर विधानसभा से आरएलपी का विधायक था अब हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने स वह सीट खाली हो गई यह अनुसूचित जाति में मेघवाल बाहुल्य है और यदि मेघवाल समाज ने यहां भी बीजेपी के विरोध में वोट कास्ट कर दिया तो जहां भी भारतीय जनता पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा और हेड कांस्टेबल बाबूलाल बैरवा के सुसाइड के बाद जिस तरह से मुआवजे और अन्य सहायता को लेकर सरकार का जो रूखापन रहा है उसे दलित आदिवासी वर्ग में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है लोगों को लगता है कि यह सरकार हमारे खिलाफ है पैसे में सरकार को आगे जाकर पहल करनी होगी जिससे सरकार की साथ बच सके