उत्तराखंड। उत्तराखंड में अनुसूचित जाति वर्ग की भोजन माता महिला के हाथों से बना खाना खाने से सामान्य वर्ग के बच्चों ने इंकार कर दिया था। इसके बाद स्थानीय लोगों की शिकायत सरकार तक पहुंची और सरकार ने खाना बनाने वाली अनुसूचित जाति वर्ग की भोजनमाता को नौकरी से हटा दिया। जबकि एससी, एसटी एक्ट के अनुसार सार्वजनिक स्थान पर इस तरह का आचरण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए थी। सरकार ने एससी वर्ग की महिला के खिलाफ भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए उस गरीब महिला को ही हटा दिया जिसे सरकार ने नियमानुसार नियुक्ति दी थी।
एससी वर्ग के बच्चों ने खाना खाने से इंकार किया
सरकार के निर्देश पर स्कूल प्रशासन में अनुसूचित जाति वर्ग की भोजनमाता महिला को हटाकर उसके स्थान पर दूसरी सामान्य वर्ग की महिला को भोजनमाता के पद पर रख लिया ।जब सामान्य वर्ग की भोजनमाता ने सब बच्चों के लिए भोजन बनाया और उन्हें भोजन खिलाने का प्रयास किया तो स्कूल में 50 फ़ीसदी से ज्यादा बच्चों ने जो एससी वर्ग के थे, उनके हाथों से बना भोजन खाने से इंकार कर दिया । यह सरासर सामान्य वर्ग की उस सोच पर तमाचा था जिसके कारण स्कूल में सरासर भेदभाव किया जा रहा था। स्कूल प्रशासन ने इन बच्चों को खूब समझाने का प्रयास किया लेकिन बच्चों ने कहा कि जब हमारे वर्ग की महिला भोजनमाता के हाथ का भोजन दूसरे बच्चे नहीं कर सकते ,तो फिर भला हम इनकी भोजनमाता के हाथ से बना हुआ भोजन कैसे खा सकते हैं!
सरकार की हो रही है किरकिरी
अब तक तो आपने एससी एसटी के हाथों बनावा खाने से इनकार करने के मामले बहुत सुने होंगे, लेकिन यह पहला मामला है जब इस तरह से अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों ने सामान्य वर्ग की महिला की आंखों के बनावा खाना खाने से इंकार कर दिया। इस मामले की खबर स्कूल प्रशासन ने सरकार और जिला प्रशासन को भी दी। जिसके बाद सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। विपक्ष ने भी सरकार के रवैए की निंदा की है और उनका कहना है कि जब संवैधानिक रूप से सब समान है । तब सरकारी स्कूल में इस तरह से जातिगत आधार पर भेदभाव करना , बच्चों में इस तरह की भावनाएं भरता सरासर गलत है। इससे सरकार की दलित और आदिवासी विरोधी सोच का पता लगता है। इस घटना के बाद सरकार भी बचाव की मुद्रा में है।