लोक टुडे न्यूज नेटवर्क
“सुधांश पंत:
“कुछ लोग शोर से नेतृत्व करते हैं,
कुछ मौन से व्यवस्था बदलते हैं।
सुधांश पंत उन्हीं में से एक हैं —
जिनकी आवाज़ कभी ऊँची नहीं हुई,
पर हर निर्णय व्यवस्था की नसों तक पहुँचा।”
जब राजस्थान प्रशासन को एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता थी, जो नीति में नैतिकता, कर्म में संवेदना और विवेक में स्पष्टता का समन्वय कर सके, तब एक नाम धीरे से उभरा — सुधांश पंत, 1991 बैच के एक सादे मगर सारगर्भित अधिकारी, जिनकी उपस्थिति शक्ति की तरह दिखाई नहीं देती, पर महसूस अवश्य होती है।
जन्मभूमि और बाल्यकाल — लखनऊ से नैनीताल तक की यात्रा
14 फरवरी 1967, लखनऊ की सांस्कृतिक मिट्टी में जन्मे सुधांश पंत का व्यक्तित्व आरंभ से ही संयमित और सौम्य था।
जीवन की पहली शिक्षा उन्होंने St. Joseph’s College, Nainital जैसे अनुशासित शैक्षणिक संस्थान से प्राप्त की — जहाँ अनुशासन और मूल्य सिर्फ पढ़ाए नहीं जाते, जिए जाते हैं।
खड़गपुर की प्रयोगशाला से भविष्य की तैयारी
जहाँ अधिकांश प्रशासनिक अधिकारी कला या मानविकी से आते हैं, वहाँ सुधांशु पंत विज्ञान की सूक्ष्मता और तकनीकी की स्पष्टता के वाहक हैं।
उन्होंने IIT खड़गपुर से B.Tech (Honours) (Electronics and Telecommunication) में स्नातक किया — और यही वह आधार था जिसने उन्हें विश्लेषणात्मक निर्णयों में अद्वितीय बनाया।
UPSC से राजस्थान कैडर तक — एक साधक की चढ़ाई
UPSC परीक्षा में 45वीं रैंक के साथ 1991 बैच में चयनित होकर वे राजस्थान कैडर में शामिल हुए। यह वही समय था जब भारत उदारीकरण के द्वार खोल रहा था, और प्रशासनिक तंत्र एक नए दृष्टिकोण की तलाश में था।
सुधांशु पंत ने राजस्थान में जैसलमेर, झुंझुनूं, भीलवाड़ा, जयपुर जैसे जिलों के कलेक्टर रहते हुए नीतियों को ज़मीन से जोड़ा, और आमजन के दर्द को केवल काग़ज़ों में नहीं, कार्यों में दर्ज किया।
केंद्र में भूमिका — स्वास्थ्य, चिकित्सा और फार्मा क्षेत्र में क्रांति
जब उन्हें भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में नियुक्त किया गया, तो उन्होंने मात्र विभाग नहीं संभाला — बल्कि National Medical Commission Bill, Allied Healthcare Professionals Bill, और 75 नए मेडिकल कॉलेज की नींव भी रखी।
राजस्थान को इनमें से 15 कॉलेज मिले यह उनके राजस्थान प्रेम और योजना-दृष्टि का स्पष्ट प्रमाण है।
बाद में फार्मास्युटिकल्स विभाग में जाकर उन्होंने दवा मूल्य निर्धारण नीति को आम जनता के हित में पुनर्परिभाषित किया।
राजस्थान लौटना — एक विचारशील नेतृत्व की वापसी
1 जनवरी 2024, जब वे राजस्थान के मुख्य सचिव नियुक्त हुए, तो यह केवल एक पदभार नहीं था — यह विश्वास की पुनर्स्थापना थी।
छह वरिष्ठ अधिकारियों को पार करते हुए उनकी नियुक्ति ने यह स्पष्ट किया कि अब योग्यता और कार्यदक्षता ही प्रशासन की दिशा तय करेगी।
उन्होंने आते ही सचिवालय में उत्तरदायित्व, समयबद्धता और जवाबदेही की परंपरा शुरू की। उन्होंने ‘नंबर–2’ पदाधिकारी की पारदर्शी घोषणा कर यह संदेश भी दिया कि संविधानिक मर्यादा और प्रशासकीय नैतिकता सर्वोच्च हैं।
नीति में संवेदना, अनुशासन में करुणा
सुधांश पंत उस पीढ़ी के अफसर हैं जो कागज़ों से पहले ज़मीन पर उतरते हैं।
उनकी कार्यशैली में न कोई अतिरेक है, न कोई दंभ — बस एक सहज आत्मविश्वास है, जो नीतियों को दृष्टि और दिशा देता है।
विकास उनके लिए ग्राफ का नहीं, जन का विषय है।
“एक प्रशासक नहीं, एक विचारक”
सुधांश पंत न तो मीडिया में दिखते हैं, न सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं —
पर उनकी फाइलें बोलती हैं,
उनकी व्यवस्थाएँ गवाही देती हैं,
और राजस्थान की नौकरशाही उनके कदमों के साथ गति पकड़ती है।
“वे मुख्य सचिव हैं, पर पद से अधिक एक परंपरा हैं —
जो यह याद दिलाती है कि शासन में भी शालीनता संभव है,
और व्यवस्था में भी संवेदना जीवित रह सकती है।”