गाँव-गाँव पशु चिकित्सालय – समृद्ध राजस्थान की ओर एक कदम

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लोक टुडे न्यूज नेटवर्क

हेमराज तिवारी वरिष्ठ संवाददाता

पशुपालन को सशक्त बनाता एक सार्थक निर्णय

राजस्थान की ग्रामीण संस्कृति में पशुपालन केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा है। खेतों में हल खींचने से लेकर दुग्ध उत्पादन, खाद निर्माण और पारंपरिक मेलों तक, पशु हर कदम पर ग्रामीण जीवन के सहभागी रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में जब राजस्थान के पशुपालन, डेयरी एवं देवस्थान विभाग के केबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत यह घोषणा करते हैं कि “सुमेरपुर विधानसभा क्षेत्र की प्रत्येक ग्राम पंचायत मुख्यालय पर पशु चिकित्सालय खोले जाएंगे”, तो यह केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की आधारशिला है।
राजस्थान का पशुधन: एक विशाल संभावना

वर्ष 2019 की 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, राजस्थान में कुल 5.68 करोड़ पशुधन है। यह आंकड़ा राज्य को देश का दूसरा सबसे बड़ा पशुधन उत्पादक बनाता है। यह केवल संख्या नहीं, बल्कि संभावनाओं, पारिवारिक सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

पशुपालन से जुड़े अनेक उद्योग – जैसे डेयरी, ऊन, जैविक खाद, आदि – करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार देते हैं। ऐसे में पशु चिकित्सालयों की स्थापना, इन सभी क्षेत्रों में गुणवत्ता और स्थायित्व सुनिश्चित करने वाला कदम है।

गाँव-गाँव पशु चिकित्सालय: स्वास्थ्य, सुरक्षा और सम्मान

ग्राम पंचायत स्तर पर पशु चिकित्सालय खुलने से निम्नलिखित लाभ होंगे:

समय पर इलाज – बीमार पशुओं को तुरंत उपचार मिल सकेगा।
मृत्यु दर में कमी – छोटे रोगों को समय रहते पहचान कर गंभीर हानि रोकी जा सकेगी।

दुग्ध उत्पादन में वृद्धि – स्वस्थ पशु अधिक दूध देंगे, जिससे किसान की आय बढ़ेगी।

टीकाकरण और परजीवी नियंत्रण – संक्रमणों पर नियंत्रण होगा और पशुधन अधिक रोग प्रतिरोधक होगा।

स्वदेशी व आधुनिक चिकित्सा का समन्वय – आधुनिक पशु चिकित्सा और स्थानीय ज्ञान मिलकर श्रेष्ठ परिणाम देंगे।

यह पहल पशुपालकों को नजदीक और निःशुल्क या रियायती सेवा की सुविधा देगी, जिससे वे निजी खर्च और समय दोनों की बचत कर सकेंगे।

सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से एक निर्णायक कदम
रोज़गार सृजन – पशु चिकित्सालयों के माध्यम से पैरावेट्स, सहायक तकनीशियन, दवा आपूर्तिकर्ता, इत्यादि के लिए रोजगार के नए अवसर खुलेंगे।
महिलाओं की भागीदारी – पशुपालन में महिलाओं की अहम भूमिका है। यह निर्णय उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को और मजबूती देगा।
स्वस्थ पशु = समृद्ध किसान – एक स्वस्थ पशु एक किसान की आर्थिक रीढ़ होता है।
सतत ग्रामीण विकास – यह योजना कृषि, जल, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण से भी जुड़ी हुई है।

प्रशिक्षित स्टाफ की कमी स्थानीय युवाओं को पशु चिकित्सा में प्रशिक्षण देना।
दवा आपूर्ति की अस्थिरता ब्लॉक स्तर पर दवा गोदाम और मोबाइल यूनिट्स।
जागरूकता का अभाव ग्राम सभाओं, मेले, मोबाइल वैन और रेडियो प्रचार।
सेवा गुणवत्ता की निगरानी ग्राम पंचायतों में जनसुनवाई प्रणाली लागू करना।

जनजागरूकता ही सफलता की कुंजी

सरकारी योजनाएँ तभी सफल होती हैं जब जन-सामान्य को उनके बारे में पूरी जानकारी हो। पशुपालकों को यह समझाना होगा कि चिकित्सालय केवल बीमार पशुओं का इलाज नहीं करता, बल्कि रोग-प्रतिरोध, पोषण परामर्श, प्रजनन सुविधा, एवं पशु कल्याण के सभी पहलुओं को शामिल करता है।

इसके लिए निम्नलिखित प्रयास आवश्यक हैं:
स्थानीय भाषा में रेडियो प्रसारण

मोबाइल क्लीनिक एवं शिविर
लोकनाट्य व कठपुतली के माध्यम से संदेश

“स्वस्थ पशु, समृद्ध किसान” – यही इस योजना का मूल मंत्र है। जोराराम कुमावत का यह निर्णय प्रशासनिक सोच से कहीं आगे, एक जन-संवेदनशील नीति है, जो पशुपालन के माध्यम से राजस्थान की सामाजिक-आर्थिक संरचना को सशक्त बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

यह समय है कि हम सब – सरकार, समाज, और स्वयं पशुपालक – इस योजना को एक साझे उत्तरदायित्व के रूप में स्वीकार करें और इसे व्यवहार में सफल बनाएं।

आइए इस जन-हितैषी योजना का स्वागत करें, अपने गाँवों में इसकी जानकारी फैलाएं, और पशुपालन को आत्मनिर्भर भारत के आधार स्तंभ के रूप में स्थापित करें।

क्योंकि जब पशु स्वस्थ होंगे, तो किसान मुस्कुराएगा – और जब किसान मुस्कुराएगा, तो राजस्थान मुस्कुराएगा।

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